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मुख्यमंत्री ने ‘भूजल सप्ताह-2022 के राज्य स्तरीय समापन समारोह’ को सम्बोधित किया

त्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने कहा कि आदिकाल से ही भारतीय मनीषा ने जल को बहुत पवित्र भाव के साथ देखा था। पृथ्वी सूक्त में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के कल्याण के साथ ही जल के कल्याण की बात भी निहित है। भारतीय मनीषा इस बात को जानती है कि जीव-जन्तु और सृष्टि की कल्पना जल के बगैर नहीं की जा सकती। इस परिकल्पना को साकार करने के लिए अलग-अलग कालखण्ड में लोगों द्वारा जल संरक्षण के पवित्र कार्य के रूप में तालाब तथा कुआं खुदवाने जैसे कार्य किये जाते थे। उस समय पाइप पेयजल की परियोजनाएं नहीं थीं।
मुख्यमंत्री जी आज यहां लोक भवन सभागार में ‘भूजल सप्ताह-2022 के राज्य स्तरीय समापन समारोह’ को सम्बोधित कर रहे थे। ज्ञातव्य है कि भूजल सप्ताह का आयोजन प्रदेश के सभी जनपदों में 16 से 22 जुलाई, 2022 के बीच किया गया है। इस अवसर पर उन्होंने प्रदेश में जल संरक्षण एवं संवर्धन के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वाली संस्थाओं व व्यक्तियों को सम्मानित किया। इनमें परमार्थ समाज सेवी संस्थान जालौन, ग्रामीण एवं पर्यावरण विकास संस्थान बागपत, आई0टी0सी0 लि0 सहारनपुर, सपोर्ट फॉर इम्प्लीमेंटेशन एण्ड रिसर्च झांसी, वॉटर ऐड इण्डिया लखनऊ, स्वप्न फाउण्डेशन लखनऊ, नीर फाउण्डेशन मेरठ संस्थाओं सहित श्री रामवीर तवर गौतमबुद्धनगर, डॉ0 वेंकटेश दत्ता लखनऊ, श्री उमा शंकर पाण्डेय बांदा, श्री अनुराग पटेल जिलाधिकारी बांदा तथा आजमगढ़ के कार्यशाला अनुदेशक श्री कुलभूषण सिंह शामिल थे।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि उत्तर प्रदेश प्रकृति व परमात्मा की कृपा से अत्यन्त उर्वरा भूमि रखता है। हमारे पास पर्याप्त मात्रा में जल संसाधन है। प्रदेश में ग्राउण्ड वॉटर के साथ ही सरफेस वॉटर भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। जल है तो जीवन है। जल और जीवन के इस सम्बन्ध को सभी जानते हैं, लेकिन इसके उचित प्रबन्धन के बारे में जो प्रयास होना चाहिए, उसमें व्यक्ति चूक जाते हैं। हमारे देश में नदियों में गन्दगी न करने के लिए लोग प्रोत्साहित करते थे। नदियों को पवित्र भाव से देखा जाता था। उसे मां जैसा दर्जा प्रदान किया गया था। गंगा मैया के रूप में हमने भारत की सबसे पवित्र नदी को मान्यता दी। गांवों में भी लोग छोटी नदी अथवा नाले को इसी पवित्र भाव के साथ गंगा कहकर सम्बोधित करते हैं। भारत की ऋषि और कृषि दोनों परम्पराओं के संवर्धन में अपना योगदान देने वाली गंगा हैं। गंगा का पवित्र नाम लेकर लोग जल संरक्षण के लिए अपनी प्रतिबद्धता व पवित्रता बनाये रखते हुए कृतसंकल्पित रहे हैं।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि जिस तेजी के साथ आबादी बढ़ी और औद्योगीकरण हुआ फलस्वरूप भूगर्भीय जल का दोहन भी बढ़ा। उस अनुपात में भूगर्भीय जल के संरक्षण और संवर्धन के लिए जो कदम उठाये जाने चाहिए थे उनमें, बीच के कालखण्ड में, लापरवाही बरती गयी। इसका व्यापक असर प्रदेश के भूजल स्तर पर पड़ा। प्रदेश के अनेक विकास खण्ड अतिदोहित की श्रेणी में आकर डार्क जोन की श्रेणी में चले गये थे। आज उन्हें धीरे-धीरे सामान्य स्थिति में लाने की कार्यवाही की जा रही है।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि वर्ष 2000 में प्रदेश में जितने विकास खण्ड अतिक्रिटिकल थे, 17-18 वर्षाें में उनकी संख्या बढ़कर कई गुना हो गयी थी। आज प्रदेश की आबादी लगभग 25 करोड़ है। स्वाभाविक रूप से पेयजल, सिंचाई एवं अन्य औद्योगिक उत्पादन के लिए हमारी जो आवश्यकता है, उसके लिए भूगर्भीय जल का अधिकाधिक प्रयोग किया गया है। लेकिन भूगर्भीय जल के संरक्षण के लिए किसी अभियान को जोड़ने का कार्य नहीं किया गया था। इसीलिए देश व प्रदेश में डार्क जोन की संख्या बढ़ी, खारेपन के साथ ही आर्सेनिक व फ्लोराइड की समस्या एक चुनौती के रूप में दिखायी दी।

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