देशभर में 2 अगस्त को नागपंचमी का पर्व मनाया जाएगा। मध्यप्रदेश में नागदेवता के कई चमत्कारी और पुरातन नाग मंदिर हैं। जहां नागपंचमी के दिन भक्तों का सैलाब उमड़ता है। उज्जैन के महाकालेश्वर धाम में स्थित नागचंद्रेश्वर मंदिर साल भर में केवल एक बार 24 घंटे के लिए खुलता है तो वहीं सागर, बड़वानी में भी नागदेवता के कई पुरातन ठौर मौजूद हैं। आइए आपको एमपी के प्रसिद्ध नागमंदिरों के दर्शन कराते हैं।
मानवरूप में विराजमान हैं नागदेवता
सागर जिले के रेहली में सूर्य मंदिर में नागदेवता की 9वीं सदी की प्रतिमा स्थापित है। प्रतिमा में नागदेवता का मुख मानव का है, जबकि कमर के नीचे का शेष भाग नाग का है। नाग नागिन दोनों ही एक दूसरे से कुंडली में गुथे हैं। नागपंचमी पर नागयुग्म की प्रतिमा के दर्शन और पूजा अर्चना करने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। सूर्य मंदिर की पिछली दीवार पर स्थित इन प्रतिमाओं का ऐतिहासिक महत्व है। वहीं, धार्मिक दृष्टि से भी इन प्रतिमाओं का विशेष महत्व है। नागयुग्म की प्रतिमा में मस्तिष्क के ऊपर तीन-तीन सर्पों के फनों से बना मुकुट है। प्रतिमा में नागदेव ने कुंडल, केयूर, कंकड़ तथा कटि सूत्र धारण किए हैं।
पंचमुखी नागदेवता
इंदौर जिले से करीब 30 किमी दूर नागपुर गांव में नागदेवता का एक बेहद प्राचीन मंदिर है। मंदिर की स्थापना कब हुई थी, इसकी स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती। मंदिर में नागदेवता की पांच फनों वाली तीन फुट ऊंची काले रंग की दिव्य प्रतिमा स्थापित है। कहा जाता है मंदिर में उल्टा स्वास्तिक बनाने से लोगों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। यहां नागपंचमी पर दूर-दूर से श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचते हैं। मेले का आयोजन किया जाता है।
मंदिर को लेकर प्रचलित है कथा
नागपुर गांव के नागमंदिर को लेकर एक प्राचीन कथा प्रचलित है। कहा जाता है कि एक महिला ने एक बालक और नाग को जन्म दिया था। महिला नाग को देखकर डर गई और अपने बच्चे को नाग से बचाने के लिए बेटे को लेकर चली गई, नाग को भी महिला ने ही जन्म दिया था, मां के सौतेले व्यवहार से दुखी होकर नाग पत्थर में बदल गया। वहीं, कुछ लोगों का कहना है कि यहां लोगों ने नाग-नागिन का जोड़ा देखा था। लोगों ने नागिन को मार दिया जिससे दुखी होकर नाग पत्थर में बदल गया।