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बांगर की धरती से बदलते हैं हरियाणा के सियासी समीकरण…

हरियाणा की बांगर बेल्ट शुरू से ही प्रदेश की राजनीति की दिशा और दशा तय करती आई है। यहां के कद्दावर नेता चौधरी बीरेंद्र सिंह सियासत के केंद्र बिंदु रहे हैं। 

10 साल पहले कांग्रेस छोड़ भाजपा में जाकर उन्होंने कांग्रेस को इस बेल्ट में खासा नुकसान पहुंचाया था। उनके सांसद बेटे बृजेंद्र सिंह ने रविवार को साढ़े नौ साल बाद घर वापसी कर ली है। चौधरी बीरेंद्र सिंह भी अपनी पूर्व विधायक पत्नी के साथ कांग्रेस में दोबारा सियासी पारी खेलते नजर आएंगे। बेटे व उनके इस कदम से बांगर की धरती एक बार फिर आने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में अहम भूमिका निभाती दिखेगी।

चौधरी छोटूराम की विरासत संभाल रहे बीरेंद्र सिंह का अपनी बैल्ट के साथ-साथ पूरे प्रदेश में प्रभाव है। दूसरा, बीरेंद्र सिंह के इस कदम से भाजपा में घुटन महसूस कर रहे नेताओं को भी एक रास्ता मिल गया है, क्योंकि भाजपा के अधिकतर सांसद कांग्रेस से ही गए हुए हैं। इनमें राव इंद्रजीत सिंह, धर्मबीर सिंह, अरविंद शर्मा, रमेश कौशिक के नाम शामिल हैं। इनके अलावा, कई विधायक और पूर्व विधायक भी हैं, जो चुनावों से पहले कांग्रेस छोड़कर भाजपा में पहुंचे थे। 

बीरेंद्र सिंह अपने क्षेत्र में किसी भी सियासी हवा का रूख मोड़ने की महारत रखते हैं। कांग्रेस को उम्मीद है कि सिंह हरियाणा में कांग्रेस को मजबूती देंगे। भले ही उनका पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ 36 का आंकड़ा रहा हो, लेकिन उन्होंने कांग्रेस में वापसी कर कई राजनीतिक संदेश दिए हैं। भाजपा-जजपा के एक साथ चुनाव लड़ने से लोकसभा में उनके बेटे की टिकट कट सकती थी, जिसे देखते हुए उन्होंने बेटे का राजनीतिक कैरियर सुरक्षित करने के लिए कांग्रेस की ओर दोबारा कदम बढ़ाए हैं। देखना यह है कि बांगर नेता के इस सियासी स्ट्रोक से प्रदेश की अन्य बेल्ट में कितने समीकरण बदलते हैं। बांगर बेल्ट में जींद, कैथल और हिसार का क्षेत्र आता है और यहां पर तीन लोकसभा के साथ साथ 28 विधानसभा क्षेत्र पड़ते हैं।

नेताओं के लिए लॉन्चिग पैड रही जींद की धरती
1986 में कांग्रेस की बंसीलाल सरकार के खिलाफ चौ. देवीलाल ने न्याय युद्ध जींद से शुरू किया था। इसका असर ये रहा कि 1987 में हुए विधानसभा चुनाव में जनता दल-भाजपा गठबंधन को 90 में से 85 सीटें मिली थी। 

चौ. बंसीलाल ने 1995 में हरियाणा विकास पार्टी की बड़ी रैली की थी, जिसके बाद प्रदेश में उनकी लहर बनी और 1996 में वह सत्ता तक पहुंचे थे। वहीं, कंडेला कांड के बाद भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने 2002 में जींद से किसान पदयात्रा शुरू की थी, जिसके बाद 2005 में वह सीएम की कुर्सी तक पहुंच गए थे। 2014 के विधानसभा चुनाव से पहले भी भाजपा ने जींद में बड़ी रैली की थी, जिसमें अमित शाह भी पहुंचे थे। प्रदेश के मध्य में पड़ने वाले जींद से उठने वाली राजनीतिक आवाज का पूरे प्रदेश में असर पड़ता है। 

इनेलो का शुरू से ही जींद गढ़ रहा है, खुद ओमप्रकाश चौटाला नरवाना से विधायक बनकर सीएम बने थे। इसके बाद, इनेलो टूटने के बाद जजपा ने भी 9 दिसंबर, 2018 को इसी बांगर की धरती से नई शुरुआत की थी और सत्ता की चाबी उनके हाथ लगी। उचाना से विधायक दुष्यंत सरकार में डिप्टी सीएम हैं।

पुरानों के साथ नए दलों को भी जींद से ही आस
इस धरती की ताकत का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि हरियाणा में राजनीतिक जमीन तलाश रही आम आदमी पार्टी खुद यहां पर दो बड़ी रैली कर चुकी है। दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल और पंजाब के सीएम भगवंत मान यहां के लोगों से सीधे रूबरू हो चुके हैं। वहीं, महम से निर्दलीय विधायक बलराज कुंडू ने अपनी नई पार्टी हरियाणा जनसेवक पार्टी का आगाज भी जींद से किया और लगातार इस क्षेत्र में सक्रिय हैं।

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