जम्मू कश्मीर

कश्मीर के सैकड़ों मूक बधिर किशोरों व युवाओं की प्रेरणा है 16 वर्षीय अरवां

कश्मीर के युवाओं को बरगलाकर उनके हाथ में पत्थर-बंदूकें थमाने वाले कट्टरपंथियों को नौगाम की 16 वर्षीय अरवां बड़ा सबक दे रही है। अरवां बट कश्मीर के सैकड़ों मूक बधिर किशोरों व युवाओं की प्रेरणा है और उनकी बुलंद आवाज भी। वह स्वयं कभी खेल के मैदान में नहीं उतरी थी पर सैकड़ों मूकबधिरों को खेल में पहचान बनाने के लिए प्रेरित कर रही है। उसकी बदौलत आज 300 से अधिक मूकबधिर युवा खेल के मैदान में बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं।

अरवां की कहानी कुछ अजब है। उसकी मां बचपन से सुन व बोल नहीं पाती थी। परिवार में मामा और मौसी की भी स्थिति जुदा नहीं थी। मामा मुहम्मद सलीम वानी ने दिल्ली में साइन लैंग्वेज का चार साल का कोर्स किया और लोगों को सिखाने लगे। पांचवीं कक्षा से ही अरवां ने मामा से साइन लैंग्वेज सीखना शुरू कर दिया ताकि वह मूक बधिर बच्चों की आवाज बन सके।

अरवां ने जब मूक-बधिर बच्चों से संवाद कर उनके मन को समझना शुरू किया तो पाया कि वे भी सामान्य बच्चों की तरह जीना चाहते हैं। खेलना चाहते हैं। आगे बढ़ना चाहते हैं। अरवां उनकी आवाज बन गई।

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