Main Slideउत्तर प्रदेशखबर 50देशप्रदेशबड़ी खबर

डीडीहाट में एरोमेटिक गार्डन बनाने की तैयारी

वन विभाग की अनुसंधान शाखा ने पर्वतीय क्षेत्र में लोगों की रूचि बढ़ाने और रोजगार के नए विकल्प तैयार करने के लिए एरोमेटिक गार्डन बनाने का काम शुरू किया है। यहां पर्वतीय क्षेत्र में आने वाली एरोमेटिक गतिविधि की 70 प्रतिशत वृद्धि होगी। पिथौरागढ़ के डीडीहाट गार्डन को विकसित करने का काम जुलाई तक पूरा होने की संभावना है।

अभी तक पारंपरिक खेती के अलावा कुछ स्थानों पर औषधीय खेती भी होती है। अब वन अनुसंधान के अलावा गंध प्राणियों की कल्पना के माध्यम से लोगों को अपनी आय बढ़ाने और विकल्प तलाशने में मदद के लिए एरोमेटिक गार्डन को विकसित करने की योजना पर काम शुरू किया गया है।

अभी तक वन अनुसंधान ने मैदानी क्षेत्र में कुमाऊं मंडल के अंतर्गत लालकुआं में एरोमेटिक गार्डन को विकसित किया था, अब इसी तरह पर्वतीय क्षेत्रों में भी एरोमेटिक गार्डन को विकसित करने की तरफ कदम बढ़ाया गया है।
वन अनुसंधान के उपवन संरक्षक बीएस शाही का कहना है कि इस गार्डन को मुख्य वन संरक्षक वन अनुसंधान के निर्देशन में तैयार किया जा रहा है, यह पर्वतीय क्षेत्र में एरोमेटिक गार्डन विकसित करने का पहला प्रयास है। यहां पर जो सुगंधयुक्त पर्वतीय क्षेत्र में जाते हैं, उन्हें रोपित किया जाएगा। यह कैम्पमद गार्डन निकटवर्ती भूभागीय भूभाग से विकसित होगा।

शाही परिवार का कहना है कि एरोमेटिक प्लांट को लगाने के साथ ही लोगों को उनके बारे में जानकारी मिलेगी। इसकी खेती कैसे की जाती है, इसके बारे में जानने के साथ प्रशिक्षण देने की भी योजना है। एरोमेटिक प्लांट को चालू करने में रुचि है, उन्हें निशुल्क पौधे उपलब्ध कराने की योजना भी है।

वन्य जीवों से कम नुकसान होने की संभावना
वन अनुसंधान के विद्वान मनोज कहते हैं कि खेती को बंदर, जंगली सूअर नुकसान पहुंचाते हैं। एरोमेटिक प्लांट में वन्य प्रजातियों से नुकसान होने की सबसे ज्यादा संभावना है, इसके साथ ही लोगों को रोजगार के नए अवसर के विकल्प की भी जानकारी हो सकती है। लोग इस गार्डन में आएंगे तो पर्यटन गतिविधियों में भी बढ़ोतरी होगी।


अनुसंधान विद्वान मनोज कहते हैं कि केदार पैड और जटामासी का उपयोग धूप बत्ती से लेकर फ्यूम बनाने में एरोमेटिक प्लांट का उपयोग होता है। इसी तरह वनीला का इस्तेमाल आइसक्रीम के फ्लेवर में होता है। चंपा का इस्तेमाल सोप बनाने में होता है। शिलोग का उपयोग फ्यूम इंडस्ट्री में (आठ लाख रुपया प्रति लीटर तेल बिकता है) होता है।


इस उद्यान में 2000 मीटर की ऊंचाई पर बनने वाले इस जीव को वन अनुसंधान के लिए लगाया जाएगा जिसमें रोजमेरी, कपूरकचरी जूफा, चंपा, गुग्गल, धूप लड्डू साल्विया, बद्रीतुलसी, भूतकेशी जैसे अन्य गंध जीव लगेंगे।

Related Articles

Back to top button