उत्तर प्रदेशप्रदेश

चिडिय़ाघर में जैव सुरक्षा न होने का खामियाजा भुगत रहे वन्यजीव, हो रहे संक्रमण का शिकार

कानपुर प्राणि उद्यान में जैव सुरक्षा (बायोसिक्योरिटी प्लान) तार-तार हो रही है। इसका खामियाजा वन्यजीवों को उठाना पड़ रहा है, जो संक्रमण का शिकार हो रहे हैं। इन हालात ने चिडिय़ाघर प्रशासन की चिंता बढ़ा दी है, मगर जैव सुरक्षा के नियमों का पालन कराने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा सके हैं। 

चिडिय़ाघर प्रशासन की नींद कुछ दिनों पहले तब उड़ गई जब यहां पर शेरनी नंदिनी का शावक शंकर बीमार हुआ। स्थानीय स्तर पर हुई जांच में बीमारी का कारण सामने नहीं आया। 

भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आइवीआरआइ) की टीम ने जब जांच की तो संक्रमण की बात निकली। आइवीआरआइ के वैज्ञानिकों ने जैव सुरक्षा के तरीके पूछे। इनमें कमी पाई गई तो आइवीआरआइ ने निर्देश दिए कि संक्रमण रोकने के लिए बायोसिक्योरिटी प्लान का क्रियान्वयन जमीनी स्तर पर करें। हालांकि, यह अभी मुकम्मल नहीं हो पाया है। फिलहाल दर्शकों के लिए लगे नियमों के बोर्ड पालन की अपील कर रहे हैं। नियमों की अनदेखी से निपटने के कारगर उपाय गायब हैं।

 
ऐसे टूट रहे नियम 
रोक के बावजूद दर्शक खाने-पीने का सामान अंदर न केवल लाते हैं बल्कि बाड़े में फेंकते हैं। बीमार व्यक्तियों का प्रवेश रोकने का भी इंतजाम नहीं है, जो संक्रमण फैलाने का कारण बनते हैं। प्राणि उद्यान में लाल व काले मुंह वाले बंदरों का झुंड भी इधर से उधर मंडराते रहता है। बाहरी पक्षी भी यहां आकर संक्रमण का खतरा बढ़ाते हैं। 

बीमार पड़ते वन्यजीव 
प्राणि उद्यान में रोजाना तीन से पांच वन्यजीव बीमार पड़ रहे हैं, जिन्हें इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराना पड़ता है। इसके अलावा भी अन्य वन्यजीवों की सेहत आए दिन चिंता का विषय बनी रहती है।

ये हैं नियम 
– टायरबाथ (पोटेशियम परमैग्नेट मिला हुआ पानी) से गुजरकर हर वाहन जाए 
– फुटबॉथ से होकर हर दर्शक गुजरे 
-हर दो-तीन माह में वन्यजीवों से जुड़े रोगों की जानकारी 
-संक्रमण से जुड़ी कई बीमारियां हवा में फैलने वाले वायरस से होती हैं, इसके लिए एजुकेशन प्रोग्राम चलाने हैं। 
-लाल दवा से धुलकर मांस परोसा जाना है। 
-खाना वितरित करने वाले वाहन पर कवर का प्रयोग 
-15-15 दिनों में दवा का छिड़काव 
– मौसम बदलने पर बाड़ों की मिट्टी (ऊपरी परत) हटाना 
– जो बाहरी पक्षी गंदगी गिरा देते हैं, उसकी सफाई 

जिम्मेदारों की बात 
चिकित्सक आरके सिंह के मुताबिक बायो सिक्योरिटी प्लान में कुछ कमियां हैं, जिन्हें अभी दूर करने की जरूरत है। इसके लिए लगातार कवायद की जा रही है। वहीं चिडिय़ाघर के निदेशक केके सिंह का कहना है कि नेवला, साही, लाल मुंह व काले मुंह वाले बंदरों को बाहर करने की कोशिश चल रही है। नियम तोडऩे पर पांच सौ से दो हजार रुपये जुर्माने की कार्रवाई की जाती है। 

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