अब डिस्पेंसरी रोड पर बॉटलनेक बने बुक स्टोर हटेंगे, जानिए वजह
डिस्पेंसरी रोड पर बॉटलनेक बने दो बुक स्टोर (नेशनल बुक डिस्ट्रीब्यूटर व नेशनल बुक हाउस) के मामले में मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण (एमडीडीए) को बड़ी राहत मिली है। हाई कोर्ट के आदेश के बाद इन दुकानों को हटाने का रास्ता साफ हो गया है। इसके अलावा कोर्ट ने नेशनल बुक डिस्ट्रीब्यूटर पर पर 25 हजार रुपये का जुर्माना लगाया, जबकि नेशनल बुक हाउस से वर्ष 1984 से किराया वसूल करने के भी आदेश दिया है।
एमडीडीए ने डिस्पेंसरी रोड के चौड़ीकरण के लिए वर्ष 2013 में अभियान चलाया था। चौड़ीकरण की जद में आने वाली दुकानों के लिए राजीव गांधी बहुद्देशीय कॉम्पलेक्स का निर्माण कर उन्हें कॉम्पलेक्स में शिफ्ट किया गया। इस प्रक्रिया का विरोध करते हुए दोनों बुक स्टोर संचालकों ने न तो दुकानों को तोड़ने दिया, न ही कॉम्पलेक्स में दुकान प्राप्त करने का प्रस्ताव स्वीकार किया। साथ ही एमडीडीए की कार्रवाई के विरोध में हाई कोर्ट में वाद दायर कर दिया था। तब कोर्ट ने अंतरिम आदेश में कहा था कि बिना विधिक प्रक्रिया के दोनों बुक स्टोर से कब्जा न छुड़ाया जाए।
इसका अनुपालन करते हुए प्राधिकरण ने कोर्ट को अवगत कराया कि जिस भूमि बुक स्टोर संचालित किए जा रहे हैं, वह संपत्ति नजूल भूमि का एक भाग है और इस भूमि पर अतिक्रमण किया गया है। केस का निस्तारण करते हुए अब हाई कोर्ट ने नेशनल बुक डिस्ट्रीब्यूटर पर जुर्माना लगाने के साथ एक सप्ताह के भीतर अवैध निर्माण को हटाने के आदेश दिए हैं। ऐसा न करने पर एमडीडीए को अपने स्तर पर कार्रवाई करने की छूट दी गई है।
वहीं, नेशनल बुक हाउस के मामले में वर्ष 1984 से वर्तमान तक का किराया (जैसा कि नगर निगम देहरादून निर्धारित करेगा) 15 जनवरी 2019 तक वसूल करने के आदेश दिए। साथ ही 31 जनवरी तक अवैध कब्जे को खाली करने को कहा गया।
इंदिरा मार्केट की दुकानें भी आएंगी जद में
अतिक्रमण पर आए हाई कोर्ट के इस आदेश का दूरगामी असर इंदिरा मार्केट की दुकानों पर भी दिख सकता है। जो कारोबारी इंदिरा मार्केट री-डेवलपमेंट प्लान का विरोध कर एमडीडीए के साथ एमओयू नहीं कर रहे हैं, उन पर अब कार्रवाई की जा सकती है।
री-डेवलपमेंट प्लान के तहत एमडीडीए ने यहां पर कॉम्पलेक्स का निर्माण कर 404 दुकानों को शिफ्ट करने की योजना बनाई है। यहां पर मल्टीस्टोरी पार्किंग का भी प्रावधान किया जाएगा। अधिकतर कारोबारियों ने इसके लिए एमडीडीए के साथ एमओयू कर लिया है, जबकि 52 कारोबारी इस पर सहमत नहीं हैं। जबकि यहां की भूमि नजूल की है, जो एमडीडीए के पक्ष में फ्री-होल्ड भी हो चुकी है। वहीं, इससे पहले एमडीडीए इन कारोबारियों को नोटिस भी जारी कर चुका है। जिसके तहत इन्हें 31 जनवरी तक एमओयू करने का अवसर दिया गया है। क्योंकि इसके बाद संभव है कि विरोध करने वाले कारोबारियों को यह अवसर भी न मिले।
कोर्ट सख्त और सरकार नजर आ रही पस्त
कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि अतिक्रमणकारियों को किसी भी कीमत पर शह नहीं दी जाएगी। हालांकि, सरकार इसके बाद भी सख्त कार्रवाई का साहस नहीं दिखा पा रही है।
कुछ समय पहले भी जब कोर्ट ने सड़कों व सरकारी भूमि से अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया तो, उसके बाद भी सरकार उसे अब तक अंजाम तक नहीं पहुंचा पाई है। सड़कों पर आधे-अधूरे ढंग से अतिक्रमण हटाए गए हैं और कई स्थानों पर दोबारा कब्जे कर लिए गए हैं। जबकि दूसरी तरफ सरकारी भूमि के मामले में सरकार अभी तक भी इंतजार की मुद्रा में खड़ी है। यही नहीं, कुछ दिन पहले शहरी विकास मंत्री व सरकार के प्रवक्ता मदन कौशिक ने कॉलोनियों में अतिक्रमण अभियान न चलाने की बात कहकर सरकार के पस्त होने का संकेत भी दे डाला।