होम स्टे से बेरोजगारी पर स्टे लगा रहे हैं यहां के ग्रामीण युवा, जानिए
पहाड़ से पलायन रोकने के साथ ही बेरोजगारी दूर करने में होम स्टे योजना बेहद कारगर साबित हो रही है। इसकी बानगी पेश कर रहे हैं उत्तरकाशी के रैथल गांव के दस बेरोजगार युवा, जिन्होंने होम स्टे अपनाकर अपने घर में ही सम्मानजनक रोजगार पा लिया और हर माह 15 से 30 हजार रुपये की कमाई कर रहे हैं। वहीं, पर्यटक भी ग्रामीणों के बीच मेहमान नवाजी से खुश हो रहे हैं। ऐसे में अब आसपास स्थित अन्य गांवों के बेरोजगार भी इससे प्रेरणा ले रहे हैं।
जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से 42 किमी दूर रैथल गांव प्रसिद्ध दयारा बुग्याल का बेस कैंप भी है। इस गांव में 175 परिवार निवास करते हैं, जिनकी आर्थिकी का मुख्य जरिया पशुपालन और खेती है। हालांकि, इससे उनका बमुश्किल ही गुजारा होता है। ऐसी परिस्थितियों में एक साल पहले एकीकृत आजीविका सहयोग परियोजना ने ग्रामीणों को होम स्टे के लिए प्रेरित किया।
इससे गांव के बेरोजगारों विजय सिंह राणा, सुमित रतूड़ी, अरविंद रतूड़ी, देवेंद्र पंवार, यशवीर राणा, सोबत राणा, मनवीर रावत, जयराज रावत, अनिल रावत और रविंद्र राणा को होम स्टे के बारे में प्रशिक्षण दिया गया। इसके बाद उन्होंने अपने ही पुश्तैनी घर में एक-एक, दो-दो कमरों की साफ-सफाई कर उन्हें होम स्टे के लिए तैयार किया। शुरुआत में दयारा बुग्याल आने-जाने वाले पर्यटकों से संपर्क किया गया। जो पर्यटक एक बार होम स्टे में ठहरा, उसने लौटकर अपने मित्र-परिचितों को भी होम स्टे में ठहराने के लिए भेजा। फिर तो पर्यटकों के होम स्टे में ठहरने का सिलसिला-सा चल पड़ा।
पर्यटकों का परिजनों जैसा सत्कार
होम स्टे संचालक 39 वर्षीय विजय सिंह राणा बताते हैं कि उन्होंने इंटर तक की ही पढ़ाई की। कोई रोजगार न होने के कारण वह गांव में ही खेती और पशुपालन से परिवार की गुजर कर रहे थे। लेकिन, जब से होम स्टे शुरू किया, घर बैठे ही बेहतर रोजगार मिल गया। नवंबर 2018 में उन्होंने होम स्टे से 25 हजार रुपये कमाए, जबकि दिसंबर में 30 हजार से अधिक की कमाई कर चुके हैं। स्नातक तक पढ़े 30 वर्षीय सुमित रतूड़ी ने कहा कि पहाड़ों में होम स्टे से बेहतर कोई रोजगार नहीं है। इसमें पर्यटकों को वही भोजन परोसना है, जिसे आप स्वयं के लिए हर रोज बनाते हैं। बस! आवास के साथ शौचालय की सुविधा होनी चाहिए। अगर घर पुराना है तो पर्यटकों के लिए उसका आकर्षण बढ़ जाता है। सुमित कहते हैं अब गांव के अन्य बेरोजगार भी होम स्टे की शुरुआत करने के लिए प्रेरित हो रहे हैं।
यह है होम स्टे योजना
रैथल निवासी एवं होम स्टे संचालक अरविंद रतूड़ी बताते हैं कि होम स्टे में देशी-विदेशी सैलानियों को पहाड़ की संस्कृति, सभ्यता, खानपान और रहन-सहन से अवगत कराया जाता है। ताकि पहाड़ की संस्कृति का देश के विभिन्न प्रांतों के साथ ही विदेशों में भी प्रचार-प्रसार हो सके। इसके अलावा पर्यटक पहाड़ के दूर-दराज के गांवों में पहुंचे तो उन्हें कोई परेशानी नहीं हो और वे ग्रामीणों के बीच उनके मेहमान बनकर रहें।
आर्थिकी में आया बहुत अधिक सुधार
जगमोहन सिंह नेगी (सहायक प्रबंधक, एकीकृत आजीविका सहयोग परियोजना, उत्तरकाशी) का कहना है कि रैथल गांव में जो बेरोजगार युवा होम स्टे का संचालन कर रहे हैं, उनकी आर्थिकी में बहुत अधिक सुधार आया है। घर बैठे ही इन युवाओं की 15 से 30 हजार तक की आमदनी हो रही है। इन युवाओं से प्रेरित होकर नटीण, बार्सू और पाला सहित अन्य गांवों के बेरोजगार युवा भी होम स्टे शुरू करने के लिए आगे आ रहे हैं।