लखनऊ के शिल्पी ने साकार किया ट्रेन 18 का सपना, दो और रैक इसी साल
जापान और यूरोप के कई देशों में बिना इंजन वाली तेज रफ्तार ट्रेन सेट तकनीक अपनाने पर भारतीय रेलवे बोर्ड ने 1990 में विचार किया। तकनीक आयात नहीं हुई और मामला ठंडा पड़ गया। लेकिन, 26 साल बाद वर्ष 2016 में एक शिल्पकार ने ट्रेन 18 को मूर्त रूप देने की मुहिम छेड़ी। ये शिल्पकार थे इंटीगेट्रेड कोच फैक्ट्री, चेन्नई के जीएम एस. मणि, जोकि लखनऊ के आंगन में पले और बड़े हुए।
रेलवे बोर्ड से न तो टेन सेट बनाने की मंजूरी थी, न कोई डिजाइन और देश में बिना इंजन की ट्रेन वाली तकनीक। कानपुर की एक कंपनी ने ट्रेन 18 का फ्रेम बनाकर दिया। इस फैक्ट्री में दो महीने में 35 लोगों ने डिजाइन और फिर 250 लोगों की टीम ने 18 महीने में 16 बोगी वाली ट्रेन 18 का सपना सच कर दिखाया।
भारतीय रेलवे के कामयाब मैकेनिकल इंजीनियर रहे एस मणि अगस्त 2016 में आइसीएफ चेन्नई के जीएम बने। वे इस पद से तीन दिन पहले ही सेवानिवृत्त हुए हैं। एस मणि बताते हैं बिना इंजन वाली स्वदेशी तकनीक की ट्रेन सेट की मंजूरी जनवरी 2017 तक नहीं थी। अप्रैल 2017 में रेलवे बोर्ड के तत्कालीन चेयरमैन ने इसे स्वीकृति दी। उसी समय इस ट्रेन सेट का नाम ट्रेन 18 रखा गया। ट्रेन 18 को केवल 18 महीने के भीतर वर्ष 2018 में ही चलाने के लिए काम शुरू हुआ। शुरू के तीन महीने 35 विशेषज्ञों की टीम ने मिलकर डिजाइन तैयार कराया। एक ऐसी सेमी हाईस्पीड ट्रेन, जो 180 किलोमीटर प्रतिघंटे की गति से दौड़ सके। इसका डिजाइन पोलैंड की मदद से तैयार किया गया।
दो और रैक इसी साल
ट्रेन 18 की अनुमानित लागत सौ करोड़ थी, लेकिन यह 97 करोड़ में बन गई। दूसरा रैक भी बनकर तैयार होने वाला है। जबकि, तीसरा रैक भी इस साल मार्च तक बाहर आ सकता है। आने वाले समय में आठ से 10 रैक बनाए जाएंगे, जिनकी लागत पांच से 10 प्रतिशत कम होगी।
सेंट फ्रांसिस से प्रारंभिक शिक्षा ली
एस मणि की प्रारंभिक शिक्षा सेंट फ्रांसिस कॉलेज से हुई और फिर कॉल्विन कॉलेज से इंटरमीडिएट किया। रुड़की इंजीनियरिंग कॉलेज से 1975 में पढ़ाई के बाद वह रेलवे मैकेनिकल सेवा में आ गए। आरडीएसओ में वह दो बार डिजाइन निदेशालय में तैनात रहे। वर्ष 1991 से 2000 और फिर 2007 से 2010 तक वह आरडीएसओ में रहे। जर्मनी में तीन साल वह रेलवे एडवाइजर भी रहे। उन्होंने रेलवे पर चार किताबें लिखी हैं। उनकी नई किताब जल्द ही आने वाली है।