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पांडवो की नजरो से बचकर यहाँ छुप गए थे भोलेनाथ

आप सभी ने वैसे तो कई पौराणिक कथाएं सुनी और पढ़ी होंगी जिन्हे सुनने के बाद आप हैरान रह गये होंगे. ऐसे में आप सभी को शायद ही पता होगा कि पांडवो से छिप कर स्वयं महादेव शिव को भागना पड़ा था. जी हाँ, यह एक ऐसी पौराणिक कथा है जिसके बारे में आप शायद ही जानते होंगे. तो आइए आज हम आपको बताते हैं इस कथा के बारे में.

पौराणिक कथा – महाभारत के युद्ध में युद्ध के समाप्ति पर असंख्य योद्धा मारे गए. अंत में यह युद्ध पांडवो ने भगवान श्री कृष्ण की सहायता से जीत लिया था. परन्तु पांडवो के द्वारा इस युद्ध में उनके गुरुओ एवम सगे सम्बन्धियो की हत्या से महादेव शिव उनसे नाराज हो गए. महादेव शिव की नारजगी को जान पांडवो भयभीत हो गए क्योकि ये तो सभी जानते है की महादेव का क्रोध बहुत ही विनाशकारी होता है. इस भय के कारण पांडव आपस में मन्त्रणा करने लगे की आखिर भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किया कीया जाए.

तब अर्जुन अपने ज्येष्ठ भ्राता युधिस्ठर से बोले की हे भ्राता मुझे लगता है की हमे वासुदेव श्री कृष्ण के पास सहायता के लिए जाना चाहिए, अब तक वही हमें जटिल से जटिल समस्या से उबारते आये है. युधिष्ठर और तीन अन्य भाई भी अर्जुन की इस बात से सहमत हुए. पांडव वासुदेव श्री कृष्ण से मिलने द्वारिका पहुचे तथा उन्हें अपनी समस्या बताई. श्री कृष्ण ने पांडवो को भगवान शिव की वन्दना कर उनसे क्षमा मांगने की सलाह दी. भगवान श्री कृष्ण के कहने पर पांडव महादेव शिव को मनाने गुप्त काशी की ओर चल दिए. उस समय भगवान शिव गुप्त काशी में अपने ध्यान साधना में मगन थे. जब उन्होंने अपने ध्यान से यह जाना की पांडव उन्हें ढूढने के लिए गुप्त काशी की ओर आ रहे है तो भगवान शिव पांडवो की नजरो से छिपते हुए केदारनाथ की ओर चल दिए. जब पांडव गुप्त काशी पहुचे तो भगवान शिव को वहां से विलुप्त पाकर वे आश्चर्य में पड़ गए. तब सहदेव अपनी शक्ति से भगवान शिव को ढूढने की कोशिश करी तथा पांडव केदारनाथ की ओर बढ़े. जब भगवान शिव यह भाप गए की पांडव उन्हें ढूढते हुए केदारनाथ आ रहे है तो वह यह सोच में पड़ गए की पांडवो की नजरो से कैसे बचा जाए. पांडवो की नजरो से बचने के लिए महादेव शिव ने एक भैस का रूप धारण करा तथा कुछ दुरी पर पानी पीते भैसो के झुण्ड में जाकर वे मिल गए. भगवान शिव का पीछा करते हुए पांडव केदारनाथ आ पहुचे पर उन्हें वहां कहि भगवान शिव नही दिखाई दिए, वहां तो भैसो के झुण्ड के अलावा कोई भी नही था.

तभी पांडवो की नजर भैसो के झुण्ड में शामिल एक दिव्य भैस पर पड़ी, उसके तेज को जान पांडव पहचान गए की यही भगवान शिव है. पांडव तुरन्त शिव रूपी उस दिव्य भैस की ओर बढ़े परन्तु भगवान शिव उसी रूप में जमीन में धसने लगे. तभी भीम ने दिव्य भैस के दोनों सींगो को अपने हाथो से पकड़ लिया तथा पूरी ताकत से उन्हें बाहर खीचने लगे. अंत में भगवान शिव को अपने असली रूप में आना ही पड़ा तथा उन्होंने पांडवो को दर्शन देकर उन्हें क्षमा कर दिया. ऐसा कहा जाता है की जब भगवान शिव पांडवो को क्षमादान कर रहे थे उस समय उनका आधा देह जमीन के भीतर ही धसा था जो केदारनाथ पहुच गया . तथा जो भगवान शिव का अग्र हिस्सा अर्थात मुह वाला भाग था वह उस स्थान पर पशुपतिनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ.

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