भीष्म पितामाह जयंती, जानिए उनके जीवन की गाथाएं
आज भीष्म पितामाह जयंती है. ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं उनके जीवन की वो कहानी जिसे बहुत कम लोग जानते हैं. आइए बताते हैं. यह कथा पौराणिक किताबों के अनुसार है जो आज हम आपको बताने जा रहे हैं. आइए बताते हैं. पौराणिक कथा – भीष्म पितामह का असली नाम देवव्रत था. वे हस्तिनापुर के राजा शांतनु की पटरानी गंगा की कोख से उत्पन्न हुए थे. एक समय की बात है. राजा शांतनु शिकार खेलते-खेलते गंगा तट के पार चले गए. वहां से लौटते वक्त उनकी भेंट हरिदास केवट की पुत्री मत्स्यगंधा (सत्यवती) से हुई. मत्स्यगंधा बहुत ही रूपवान थी. उसे देखकर शांतनु उसके लावण्य पर मोहित हो गए.
राजा शांतनु हरिदास के पास जाकर उसका हाथ मांगते है, परंतु वह राजा के प्रस्ताव को ठुकरा देता है और कहता है कि- महाराज! आपका ज्येष्ठ पुत्र देवव्रत है. जो आपके राज्य का उत्तराधिकारी है, यदि आप मेरी कन्या के पुत्र को राज्य का उत्तराधिकारी बनाने की घोषणा करें तो मैं मत्स्यगंधा का हाथ आपके हाथ में देने को तैयार हूं. परंतु राजा शांतनु इस बात को मानने से इन्कार कर देते है. ऐसे ही कुछ समय बीत जाता है, लेकिन वे मत्स्यगंधा को न भूला सके और दिन-रात उसकी याद में व्याकुल रहने लगे.
यह सब देख एक दिन देवव्रत ने अपने पिता से उनकी व्याकुलता का कारण पूछा. सारा वृतांत जानने पर देवव्रत स्वयं केवट हरिदास के पास गए और उनकी जिज्ञासा को शांत करने के लिए गंगा जल हाथ में लेकर शपथ ली कि ‘मैं आजीवन अविवाहित ही रहूंगा’. देवव्रत की इसी कठिन प्रतिज्ञा के कारण उनका नाम भीष्म पितामह पडा़. तब राजा शांतनु ने प्रसन्न होकर अपने पुत्र को इच्छित मृत्यु का वरदान दिया. महाभारत के युद्ध की समाप्ति पर जब सूर्यदेव दक्षिणायन से उत्तरायण हुए तब भीष्म पितामह ने अपना शरीर त्याग दिया.