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वेटर की नौकरी से लेकर अभिनय तक, कमजोरियों को हराकर एक्‍टर बोमन ईरानी ने खुद को तराशा

लखनऊ – ”मुझे स्पीच डिफेक्ट था। बचपन में जुबान निकालकर बात करता था। लोग हंसते थे। मुझे डर लगता था। मां मुझे स्पीच थेरेपिस्ट के पास ले गई। हकलाना बंद हुआ और मैं बन गया शेर…। मां ने सबसे पहले मेरी प्रतिभा को पहचाना। मेरी सफलता मां के कारण है। चाहे जितनी बुलंदी पर पहुंच जाएं, कभी भूलना नहीं चाहिए कि आपने शुरुआत कहां से की।”

सफलता के शिखर पर पहुंचने से पहले अभिनेता बोमन ईरानी ने संघर्ष का स्वाद भी बखूबी चखा। वेटर की नौकरी से लेकर बीमा पॉलिसी बेचने तक का काम किया। कमजोरी को हराकर खुद को तराशा। अभिनय के शौक को जिया। हर किरदार संग कुछ नया किया। संवाद सत्र में अभिनेता बोमन ईरानी के रील और रियल लाइफ के अनछुए पहलू सामने आए। लेखक असीम छाबड़ा की अभिनेता से बातचीत के बाद दर्शकों ने भी उनसे संवाद किया। असीम छाबड़ा ने प्रियंका चोपड़ा : द इन्क्रेडिबल स्टोरी ऑफ एक ग्लोबल बॉलीवुड स्टार और शशि कपूर : द हाउसहोल्डर द स्टार किताबें लिखी हैं

रुपहले पर्दे से पहले अपने थिएटर के सफर के बारे में बोमन ईरानी ने बताया कि महात्मा वर्सेज गांधी प्ले में महात्मा गांधी का किरदार निभाना था। मैं बार-बार सोचता कि छह फुट दो इंच लंबाई और 108 किलो वजन वाला इंसान महात्मा गांधी के रोल को कैसे निभाएगा। डायरेक्टर ने मुझे डाइटिशियन के पास जाने को कहा। मैंने 30 किलो वजन घटाया। तब डायरेक्टर ने कहा, खुद पर विश्वास करोगे तो ही दर्शकों का भी भरोसा जीत पाओगे। ऐसा काम करो जिससे डर लगे। ये मेरी थिएटर लाइफ की सीख रही।

43 साल की उम्र में फिल्म कॅरियर लॉन्च

बोमन बोले, 16-17 साल पहले की बात है। एक दिन निर्देशक राम माधवानी ने कहा, फिल्म बनाते हैं। उस फिल्म को मैंने ही लिखा था। शूटिंग पूरी होने के बाद मैंने राम माधवानी से पूछा, फिल्म रिलीज कब होगी। जवाब मिला, कभी नहीं। आठ साल बाद न्यूयार्क फिल्म फेस्टिवल में यह फिल्म रिलीज की गई। एडिट रूम में फिल्म के कुछ दृश्य देखने के बाद मुझे एक ने बुलाया और दो लाख का चेक दिया। बोले, ये मेरी अगली फिल्म के लिए है। उन्होंने कहा अगर आप बॉलीवुड फिल्में करेंगे तो आप मुझे डेट नहीं देंगे। आठ महीने बाद मेरे पास फोन आया… यारा कहानी मिल गई। फिल्म मिल गई। नाम है मुन्ना भाई एमबीबीएस…। …और इसी के साथ 43 साल की उम्र में डॉक्टर के रोल के साथ मेरा फिल्म कॅरियर लॉन्च हुआ।

पहले दिन की शूटिंग सुनील दत्त साहब के साथ थी। मैं घबराया हुआ था। दत्त साहब आए और बोले, डॉक्टर साहब को बुलाओ। उन्होंने मुझसे कहा, 16 साल बाद कैमरा फेस कर रहा हूं। मैंने सीखा कि आप चाहे जितने बड़े कलाकार बन जाओ पर हर फिल्म में एक नये किरदार के साथ नयी शुरुआत करनी होती है। मैं प्रसिद्ध होने नहीं, एक्टर बनने आया था। दर्शक बहुत प्यार देते हैं। हमें घमंडी नहीं आभारी होना चाहिए।

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