कभी गूंजती थी टापें अब खामोशी से गुजर जाती है मेट्रो, बदलता लखनऊ का मिजाज
लखनऊ, । एक दौर था जब हजरतगंज चौराहे से मेफेयर सिनेमा होते हुए बड़े-छोटे इमामबाड़े तक इक्के और टमटम के घोड़ों की लयबद्ध टापों की आवाज गूंजा करती थीं। नवाबों के शहर की सड़कों पर एक से बढ़कर एक सजी-धजी बग्घियां दौड़ती थीं, लेकिन समय के पहिए के साथ जब दौर बदला, तो शहर का मिजाज व रौनक दोनों बदले गए।
अब हम भले ही इक्का-तांगा छोड़ कैब में सवारी करने के साथ अत्याधुनिक सिस्टम संग सुविधाओं से लैस मेट्रो में सफर करने लगे हों, लेकिन आज भी जब हमारे कानों में बड़े इमामबाड़े से छोटे इमामबाड़े तक घोड़े की टापों की आवाज सुनाई देती हैं तो गुजिश्ता लखनऊ के बीते उन दिनों की तस्वीर जहन में उभर आती है। जब, बड़े-बड़े लोग गजिंग का लुत्फ उठाने अपनी बग्घियों से आते थे। बीते दिनों में शहर ने बहुत कुछ देखा और महसूस किया। रिक्शे-तांगे हों या फिर टमटम बग्घियां। शहर ने गणोश छाप टेम्पो से निकलने वाले धुएं से लेकर विक्रम-ऑटो-ई रिक्शे का दौर देखा है।
खटारा सिटी बसों से एसी वोल्वो बसों तक और वर्तमान की लो फ्लोर इलेक्ट्रिक बस। समय के साथ आधुनिक होते लखनऊ का ट्रेंड भी बदला गया। अब यहां के लोग तीन पहिए के ऑटो की जगह ओला-उबर में एसी की ठंडी हवा में सफर तय कर रहे हैं, वहीं लखनऊ मेट्रो ने यहां के लोगों को एक अलग ही रोमांच का अहसास कराया है। दिन प्रतिदिन मेट्रो में बढ़ती भीड़, यह साबित कर रही है कि लोग लखनऊ के इस बदलते ट्रेंड के साथ कदमताल कर रवायतों को लेकर शहर के साथ शाना बशाना आगे बढ़ रहे हैं।
अब भी कायम है रवायत
ऐसा नहीं है कि बदलते ट्रेंड के साथ शहर ने अपनी रवायतों को पीछे छोड़ दिया। अब भी पुराने शहर में इक्के-तांगे में बंधे घुंघरू और घोड़ों की टापों की आवाज सुनाई दे जाती है। जो शहर आने वाले पर्यटकों के लिए बेहद खास है। बड़े इमामबाड़े से छोटे इमामबाड़े तक पर्यटक घोड़े की बग्घियों में बैठ ऐतिहासिक इमारतों का दीदार करते हैं। मौजूदा दौर में करीब 20 इक्के-तांगे हैं, जो रोजाना पर्यटकों का दिल लुभाने सड़क पर निकलते हैं।
लखनऊ मेट्रो की अलग पहचान
शहर की विरासत को खुद में समेटे लखनऊ मेट्रो अपनी अलग पहचान रखती है। करीब 6800 करोड़ रुपये की लागत से तैयार चौधरी चरण सिंह अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से मुंशी पुलिया तक (नोर्थ-साउथ कॉरिडोर, 23 किमी.) रोजाना 65 हजार लोग सफर कर रहे हैं। चारबाग से बसंतकुज (ईस्ट-वेस्ट कॉरिडोर, 11.5 किमी.) बनने के बाद यह आंकड़ा 1.25 लाख पार करने की संभावना है। इसके अलावा भविष्य में इंदिरा नगर से शहीद पथ होते हुए पीजीआइ तक मेट्रो चलाने की योजना है। मेट्रो से शहर में रोजगार भी बढ़ेगा। खासबात यह है कि लखनऊ मेट्रो कम्यूनिकेशन बेस ट्रेन कंट्रोल सिस्टम से लैस है, जो बिना ड्राइवर के भी रन कर सकती है।