कोर्ट के बाहर सुलझ सकता है अयोध्या विवाद, सुप्रीम कोर्ट मध्यस्थता पैनल के पास पहुंचे सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्वाणी अखाणा
देश के सर्वोच्च न्यायालय में लगातार 23 दिनो से अयोध्या मामल की सुनवाई चल रही है। यह विवाद अयोध्या की 2.77 एकड़ जमीन के मालिकाना हक को लेकर है। इस मामले में दोनो पक्ष सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्वाणी अखाणा ने कोर्ट द्वारा गठित मध्यस्थता पैनल को पत्र लिखा है। जिसमें दोनो पक्षों ने इस मामलें को एक बार फिर कोर्ट के बाहर बातचीत से हल निकालने की बात रखी है।
बता दें कि सु्प्रीम कोर्ट ने रोजाना सुनवाई शुरू करने से पहले आपसी सहमति से सुलझाने के लिए मध्यस्थता पैनल गठित किया था। इस पैनल में सेवानिवृत न्यायाधीश की अध्यक्षता में तीन सदस्य थे। इस पैनल की अगुवाई में पांच महीने तक कई दौर की मध्यस्थता कार्यवाही चली लेकिन मामले का हल नहीं निकला। इसके बाद कोर्ट ने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता में पांच जजों की संविधानपीठ ने मामले की रोजाना सुनवाई शुरू की।
गौरतलब है कि मध्यस्थता पैनल में शीर्ष अदालत के पूर्व जज एफएम कलीफुल्ला, आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर और मध्यस्थता के लिए मशहूर और वरिष्ठ वकील श्रीराम पंचू शामिल थे। इस पैनल की अध्यक्षता जज कलीफुल्ला कर रहे थे। पैनल ने 29 जुलाई को बातचीत बंद कर दी थी क्योंकि जमीयत उलेमा ए हिंद (मौलाना अरशद मदनी) ने कट्टरपंथी स्टैंड अपनाया और राम जन्मभूमि न्यास ने विवादित स्थल पर मंदिर बनाने की मांग की। जिसके बाद बात बिगड़ गई थी।
उलेमा ए हिंद और राम जन्मभूमि न्यास की वजह से बात बिगड़ने से पहले तक दोनों पक्ष लगभग अंतिम निर्णय पर आ गए थे लेकिन दो पक्षकारों के हार्ड स्टैंड के कारण यह कोशिश रुक गई थी। मध्यस्थता पैनल की प्रक्रिया आठ मार्च से शुरू हुई थी और 155 दिनों तक चली थी।
बता दें कि साल 1961 में सुन्नी वक्फ बोर्ड विवादित जमीन के मालिकाना हक को लेकर केस किया था। यह अयोध्या के तीन रामआनंदी अखाड़े में से एक है जो हनुमान गढ़ी मंदिर का संचालन और देखरेख करता है। अब कमेटी एक बार फिर जमीन विवाद को सुलझाने के लिए दोनों पक्षों के प्रभावशाली लोगों के साथ बातचीत करेगी। मध्यस्थता प्रक्रिया संभवत: अक्टूबर से शुरू होगी।