अमिताभ बच्चन को दादा साहब फाल्के अवॉर्ड मिलने पर हर तरफ से बधाइयों का सिलसिला जारी है। इसी क्रम में कवि यश मालवीय ने इस मौके पर बच्चन को बधाई देते हुए उनसे जुड़ी अपनी पुरानी यादों को ताजा किया। उन्होंने कहा कि सदी के महानायक अमिताभ बच्चन को दादा साहब फाल्के अवॉर्ड दिए जाने की घोषणा से हम इलाहबादियों की छाती गर्व से फूलकर छाता हो गई है।
इस कलाकार ने जीवन भर इलाहाबाद की संवेदना को जीया है। अमिताभ दुनिया में कहीं भी रहे इलाहाबाद के ही कहलाए। शायद इसी कारण जब चौरासी के लोकसभा चुनाव में अमिताभ प्रखर नेता हेमवती नंदन बहुगुणा के ख़िलाफ़ उम्मीदवार के रूप में खड़े थे तो चुनाव प्रचार के दौरान कविवर डॉ. हरिवंशराय बच्चन यही कहा करते थे, ‘हाथी घूमे गाँव-गाँव, जेकर हाथी ओकर नाँव’।
उन्होंने कहा कि इस वक्त मुझे वह ऐतिहासिक दृश्य भी याद आ रहा है जब हरिवंश राय बच्चन, अमिताभ को लेकर महादेवी जी के अशोक नगर स्थित आवास पर उनका आशीर्वाद दिलाने ले गए थे। महादेवी जी ने बड़ी बहन की तरह बच्चन जी को ऐसी डांट पिलाई थी कि अमिताभ भी सिटपिटा गए थे।
महादेवी जी का वह तेवर आज भी नहीं भूलता, उन्होंने कहा था बच्चन भाई क्या तुम्हारी अक़्ल पर पत्थर पड़ गया हैं, जो बेटे को ज्वालामुखी के मुहाने पर बैठा रहे हो ? ‘ अमिताभ ने उन्हें मुस्कुराते हुए आश्वस्त किया था कि बुआ जी आप निश्चिन्त रहें जैसे ही मुझे कुछ गड़बड़ लगेगा मैं अपने आप को इस पूरे तंत्र से अलग कर लूंगा क्योंकि मेरे भीतर आपके, बाबूजी और इलाहाबाद के संस्कार हैं। कालान्तर में हुआ भी यही, अमिताभ ने बड़ी विनम्रता से अपने आप को राजनीति की चकाचौंध से अलग कर लिया।
उसी दौरान मैंने डॉ धर्मवीर भारती के आग्रह पर एक लम्बा इंटरव्यू धर्मयुग के लिए हरिनवंश राय बच्चन से लिया था । इंटरव्यू में पहला ही सवाल मैंने उनसे पूछा कि आप अपनी सर्वश्रेष्ठ रचना किसे मानते हैं ? मुझे आशा थी कि वह मधुशाला का नाम लेंगे मगर प्रश्न के उत्तर में छूटते ही उन्होंने जवाब दिया था ‘अमिताभ बच्चन’, यह इंटरव्यू सर्किट हाउस में लिया गया था । इंटरव्यू के समय अमिताभ भी मौजूद थे और हरिवंश राय बच्चन जी का यह उत्तर सुनकर शरमा गए थे।
वास्तव में अमिताभ के मन में इलाहाबाद दिल की ही तरह धड़कता रहा है। कुली की शूटिंग के दौरान जब अमिताभ गम्भीर रूप से अस्वस्थ हो गए थे तो उन दिनों बांध के हनुमान जी पर उनकी स्वास्थ्य कामना के लिए अहर्निश सुंदरकांड और हनुमान चालीसा का पाठ होता था।
अमिताभ की फ़िल्में पिता उमाकान्त मालवीय फर्स्ट डे, फर्स्ट शो देखा करते थे। मां से कहते थे कि चलो निरंजन, गौतम या पायल में भतीजे की फ़िल्म लगी है चलकर देख आएं। फ़िल्मों में अमिताभ की सेकेंड इनिंग और भी शानदार रही है , केबीसी के शोज़ ने तो उसमें चार चांद ही लगा दिए हैं। अभी कल ही की बात है, इलाहाबाद की एक बेटी से वह इलाहाबाद की बातें और यादें इस तरह से साझा कर रहे थे कि मन भर आया था।
दादा साहब फ़ाल्के से जुड़ा यह सम्मान हासिल करके अमिताभ ने अपने आलोचकों का मुंह ही बंद कर दिया है। जो लोग अमिताभ को नचनिया, गवनिया या विज्ञापनबाज़ कहकर उनकी प्रतिभा को नकारते रहे हैं आज वह भी उनका लोहा मानने पर विवश हैं क्योंकि कला जगत के भीष्म पितामह दादा साहब फ़ाल्के के नाम से दिया जाने वाला यह पुरस्कार या सम्मान केवल एक अवॉर्ड भर नहीं बल्कि संस्कृति का रेखांकन है।