लड़ाई के बाद गोवा के पुर्तगाली गवर्नर ने भारतीय सेना के समक्ष किया था ‘सरेंडर’।
वह गोवा मूल के एक कवि ओर्लान्दो के बेटे हैं। उन्होंने गोवा की औपनिवेशिक सामंतवादी व्यवस्था पर एक किताब ‘ओ सिंग्नो दा इरा’ भी लिखी है। कोस्टा को लिस्बन का गांधी भी कहा जाता है। गोवा में आज भी उनकी बहन रहती है और यहां पर उनका पुराना घर आज भी है।
पुर्तगाली 1510 में भारत आए थे और वह यहां पर आने वाले पहले यूरोपीय शासक थे। वहीं 1961 में वह भारत छोड़ने वाले भी अंतिम यूरोपीय शासक थे। गोवा में पुर्तगालियों का शासन अंग्रेजों से काफी अलग था।यहां के शासकों ने गोवा के लोगों को वही अधिकार दिए थे तो पुर्तगाल के लोगों को थे।
गोवा क्षेत्रफल में छोटा जरूर था लेकिन रणनीतिकतौर पर काफी अहम था। छोटे आकार के बावजूद यह बड़ा ट्रेड सेंटर था और यहां पर विदेशी व्यापारी काफी आते थे। इसकी भौगोलिक स्थिति की वजह से ही मौर्य, सातवाहन और भोज राजवंश भी इसकी तरफ आकर्षत होने से खुद को नहीं रोक पाए थे। गोवा पर काफी समय तक बाहमानी सल्तनत और विजयनगर सम्राज्य की हुकूमत रही है।
भारत सरकार ने गोवा सरकार से लगातार बातचीत करने की कोशिश की लेकिन हर बार यह पेशकश ठुकरा दी गई। 1 सितंबर 1955 को भारत ने गोवा में मौजूद अपने कॉन्सुलेट को बंद कर दिया। साथ ही पंडित नेहरू ने कहा कि भारत सरकार गोवा में पुर्तगाली शासन की मौजूदगी को किसी भी सूरत से बर्दाश्त नहीं करेगी।