HC के आदेश के बाद भी UP सरकार ने नहीं हटाए पोस्टर, CM योगी के सलाहकार बोले- विकल्पों पर हो रही है चर्चा
HC के आदेश के बाद भी UP सरकार ने नहीं हटाए पोस्टर, CM योगी के सलाहकार बोले- विकल्पों पर हो रही है चर्चा
मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा की खंडपीठ ने कहा, ‘हमें इस बात में कोई संदेह नहीं है कि राज्य सरकार की कार्रवाई, जो कि इस जनहित याचिका का विषय है, और कुछ नहीं बल्कि लोगों की निजता में अवांछित हस्तक्षेप है.’
लखनऊ:
नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा के आरोपियों के नाम और तस्वीर वाले पोस्टरों को यूपी सरकार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद सोमवार शाम तक नहीं हटाया है. चर्चा है कि यूपी सरकार इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे सकती है. सरकार से जुड़े सूत्रों के मुताबिक यूपी सरकार होली के बाद सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के इस फैसले को चुनौती देगी.
मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा की खंडपीठ ने कहा, ‘हमें इस बात में कोई संदेह नहीं है कि राज्य सरकार की कार्रवाई, जो कि इस जनहित याचिका का विषय है, और कुछ नहीं बल्कि लोगों की निजता में अवांछित हस्तक्षेप है. इसलिए यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है.’ कोर्ट ने यूपी सरकार को सभी पोस्टर हटाने के आदेश देते हुए लखनऊ प्रशासन से इस मामले में 16 मार्च तक रिपोर्ट तलब की है.
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न्यूज एजेंसी एएनआई ने सीएम योगी आदित्यनाथ के मीडिया सलाहकार शलभमणि त्रिपाठी के हवाले से लिखा है, ‘अभी हम लोग इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को जांच रहे हैं. इसमें देखा जा रहा है कि किसके आधार पर पोस्टर हटाने का आदेश दिया गया है. हमारे विशेषज्ञ इसे जांच रहे हैं.’ साथ ही उन्होंने कहा, ‘सरकार तय करेगी कि अब कौनसे विकल्प का सहारा लिया जाएगा. मुख्यमंत्री को इस पर फैसला लेना होगा. लेकिन यह तय है कि सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने वाले लोगों को बिल्कुल नहीं बख्शा जाएगा.’
पोस्टर हटाने का आदेश देते हुए मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा की खंडपीठ ने कहा, ‘इसलिए, लखनऊ के जिलाधिकारी और पुलिस आयुक्त को सड़कों के किनारे लगे इन पोस्टरों को तत्काल प्रभाव से हटाने का निर्देश दिया जाता है. राज्य सरकार को बगैर कानून के लोगों के निजी विवरण वाले इस तरह के बैनर सड़क किनारे नहीं लगाने का निर्देश दिया जाता है. इस निर्देश के संतोषजनक अनुपालन की एक रिपोर्ट लखनऊ के जिलाधिकारी द्वारा इस अदालत के रजिस्ट्रार जनरल को 16 मार्च या इससे पूर्व सौंपना आवश्यक है. इस अनुपालन रिपोर्ट के प्राप्त होने पर इस याचिका को निस्तारित हुआ माना जाएगा.”
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सीएए का कथित तौर पर विरोध करने और निजी एवं सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के आरोपियों के पोस्टर चस्पा करने की राज्य सरकार की कार्रवाई से जुड़े मामले में इस पीठ ने रविवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. रविवार को राज्य सरकार की ओर से पेश हुए महाधिवक्ता राघवेंद्र प्रताप सिंह ने दलील दी थी कि अदालत को इस तरह के मामले में जनहित याचिका की तरह हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए. उन्होंने कहा था कि अदालत को ऐसे कृत्य का स्वतः संज्ञान नहीं लेना चाहिए जो ऐसे लोगों द्वारा किए गए हैं जिन्होंने सार्वजनिक और निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया है.
इससे पूर्व, इस अदालत ने 7 मार्च, 2020 को पिछले साल दिसंबर में सीएए के विरोध के दौरान हिंसा के आरोपियों के पोस्टर लगाए जाने पर स्वतः संज्ञान लिया था. 7 मार्च के ही आदेश में अदालत ने लखनऊ के जिलाधिकारी और पुलिस आयुक्त को उस कानून के बारे में बताने को कहा था जिसके तहत लखनऊ की सड़कों पर इस तरह के पोस्टर एवं होर्डिंग लगाए गए.
बता दें, पुलिस ने पिछले साल दिसंबर में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ विरोध के दौरान हिंसा में लिप्त आरोपियों की पहचान कर पूरे लखनऊ में उनके कई पोस्टर और होर्डिंग्स लगाए हैं. उन होर्डिंग्स में आरोपियों के नाम, फोटो और आवासीय पतों का उल्लेख है. इसके परिणाम स्वरूप नामजद लोग अपनी सुरक्षा को लेकर आशंकित हैं. इन आरोपियों को एक निर्धारित समय सीमा के भीतर सार्वजनिक और निजी संपत्ति को हुए नुकसान की भरपाई करने को कहा गया है और भुगतान नहीं करने पर जिला प्रशासन द्वारा उनकी संपत्तियां जब्त करने की बात कही गई है.