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श्रम कानूनों में बदलाव पर मचा हंगामा,विपक्षी दलों ने सीएम योगी पर साधा निशाना

उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार ने अगले तीन साल के लिए कई श्रम कानूनों को निलंबित करते हुए अध्यादेश को अंतिम रूप दे दिया है. कोरोना काल में यह मौजूदा और नई औद्योगिक इकाइयों को मदद करने का एक प्रयास है. राज्य मंत्रिमंडल ने राज्य में तीस से अधिक श्रम कानूनों को निलंबित करते हुए श्रम कानूनों के अध्यादेश से उत्तर प्रदेश को अस्थायी छूट दी है.श्रम विभाग में 40 से अधिक प्रकार के श्रम कानून हैं, जिनमें से कुछ अब व्यर्थ हैं. अध्यादेश के तहत इनमें से लगभग आठ को बरकरार रखा जा रहा है, जिनमें 1976 का बंधुआ मजदूर अधिनियम, 1923 का कर्मचारी मुआवजा अधिनियम और 1966 का अन्य निर्माण श्रमिक अधिनियम शामिल है.

अन्य श्रम कानून, जो औद्योगिक विवादों को निपटाने, श्रमिकों व ट्रेड यूनियनों के स्वास्थ्य और काम करने की स्थिति, ठेका व प्रवासी मजदूर से संबधित है, उन्हें तीन साल तक के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया है.श्रम कानून को स्थगित करने के यूपी सरकार के फैसले के खिलाफ अब विपक्ष समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने तो सीधे सीएम योगी का इस्तीफा मांगा है. उन्होंने कहा कि यह बेहद आपत्तिजनक और अमानवीय है. श्रमिकों को संरक्षण न दे पाने वाली गरीब विरोधी बीजेपी सरकार को तुरंत त्यागपत्र दे देना चाहिए.उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने एक ऐसा अध्यादेश पारित किया है, जो राहत के बजाए इस वर्ग के लिए बड़ी आफत लेकर आया यूपी सरकार द्वारा श्रम कानूनों में किए गए बदलावों को तुरंत रद्द किया जाना चाहिए.

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