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क्या अशोक गहलोत की सरकार बचाने में इतिहास होगा मददगार ?

राजस्थान की राजनीति में विधानसभा सत्र आहूत करने को लेकर अब सियासत तेज हो गई है. राजभवन और सरकार के बीच सीधे टकराव की स्थिति बन हुई नजर आ रही है.

इन दिनों प्रदेश की सियासत में सरकार सत्ता में बहुमत के आधार पर है या नहीं है इसको लेकर भी अपने अपने अटकलें लगाई जा रही हैं. इतिहास के पन्नों को खंगालने पर पता चलता है

कि विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लाता है, पर ऐसा नहीं है, सत्ता पक्ष भी विश्वास प्रस्ताव लाकर सरकार में बने रहने का दावा पेश करता है.

इतिहास को देखें तो प्रदेश में सरकारों के गठन से लेकर अब तक चार बार ऐसे मौके आए हैं, जिसमें सरकार विश्वास मत सदन में लेकर आई और सत्ता में बने रहने का हक विधानसभा से प्राप्त किया.

बता दें कि हमेशा अविश्वास प्रस्ताव विपक्ष की ओर से सत्ता पक्ष के विरोध में लाया जाता है, लेकिन विश्वास प्रस्ताव सरकार की ओर से ही अपने लिए सत्ता में बने रहने के लिए पर्याप्त बहुमत है या नहीं है

यह बताने के लिए होता है. वर्तमान प्रदेश की राजनीति में गहलोत सरकार सम्भवतः विधानसभा सत्र बुलाकर विश्वास मत हासिल करना चाहती है.

4 बार विधानसभा में लाया गया विश्वास प्रस्ताव

राजस्थान विधानसभा के इतिहास के पन्नों को देखने पर पता चलता है कि विभिन्न सरकारों की ओर से अब तक 4 बार विश्वास प्रस्ताव सदन में लाया गया है.

इन चार बार के विश्वास प्रस्ताव में तीन बार तो अकेले भैरों सिंह शेखावत सदन में लेकर आए हैं और विश्वास प्रस्ताव को पारित कराने में सफल हुए हैं. वहीं मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपनी पूर्व की सरकार

यानी साल 2009 से 2013 के बीच में एक बार विश्वास प्रस्ताव लेकर आए थे और वह भी प्रस्ताव को पास करवाने में सफल हुए. ऐसे में उम्मीद जताई जा रही है कि इस बार भी इतिहास अशोक गहलोत के लिए मददगार होगा.

नवम विधानसभा के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरों सिंह शेखावत ने विश्वास मत का प्रस्ताव सदन में रखा. नवम विधानसभा के दूसरे सत्र में 23 मार्च 1990 को तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरों सिंह शेखावत ने विश्वास मत प्रस्ताव सदन के पटल पर रखा और ध्वनि मत से यह पारित हो गया.

इसके बाद इसी तरह दूसरी बार विश्वास प्रस्ताव आया नवम विधानसभा के तीसरे सत्र में यानि 20 माह के बाद ही 8 नवम्बर 1990 को तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरों सिंह शेखावत ने सदन के पटल पर विश्वास प्रस्ताव रखा

जिस पर मत विभाजन भी हुआ, जिसमें विश्वास मत के पक्ष में 116 वोट पड़े तो विपक्ष में 80 इस विश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान कुल 45 सदस्यों ने भाग लिया था.

इसके बाद तीसरी बार भी दसवीं विधानसभा के पहले सत्र में तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरों सिंह शेखावत ने 31 दिसंबर 1993 को विश्वास प्रस्ताव सदन के पटल पर रखा

जिसमें मत विभाजन के बाद पक्ष में 108 वोट पड़े वहीं विपक्ष की ओर से बहिर्गमन यानी वाकआउट करने के कारण वोटिंग में भाग नहीं लिया.

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