जानें क्यों मनाया जाता है अप्रैल फूल?
हम सब को पता है कि 1 अप्रैल का दिन पूरे विश्व भर में मूर्ख दिवस के रुप में मनाया जाता है.इस दिन हर कोई अपने आस पास के लोंगों को अपने सगे सम्बन्धियों को मूर्ख बनाने की फिराक में रहता है.आज आपको बताएंगे कि क्यों अप्रैल फूल(मूर्ख दिवस) मनाया जाता है,और इसको मनाने की शुरुआत कब हुई. यूं समझिए कि यह दिन खास इसलिए ही रखा कि आप अपनों के साथ कुछ मजाक कर उन्हें मूर्ख बना सकें और उनके चेहरे पर कुछ समय के लिए हंसी ला सके.
लेकिन यहां पर एक बात सोचने वाली यह है कि आखिर एक अप्रैल की ही तारीख मूर्ख दिवस के लिए क्यों रखी गई। आइए जानते हैं
आपको बता दें कि इसकी शुरुआत 17वीं सदी में हुई थी. इसके पीछे बड़ी दिलचस्प कहानी है. सन् 1564 से पहले यूरोप के लगभग सभी देशों में एक जैसा कैलेंडर प्रचलित था, जिसमें हर नया साल 1 अप्रैल से शुरू होता था. सन 1564 में वहां के राजा चार्ल्स नवम ने एक बेहतर कैलेंडर को अपनाने का आदेश दिया. इस नए कैलेंडर में 1 जनवरी को वर्ष का प्रथम दिन माना गया था. अधिकतर लोगों ने इस नए कैलेंडर को अपना लिया, लेकिन कुछ ऐसे भी लोग थे, जिन्होंने नए कैलेंडर को अपनाने से इन्कार कर दिया था. वह पहली जनवरी को वर्ष का नया दिन न मानकर पहली अप्रैल को ही वर्ष का पहला दिन मानते थे. ऐसे लोगों को मूर्ख समझकर नया कैलेंडर अपनाने वालों ने पहली अप्रैल के दिन विचित्र प्रकार के मजाक करने और झूठे उपहार देने शुरू कर दिए और तभी से आज तक पहली अप्रैल को लोग मूर्ख दिवस के रूप में मनाते हैं.
एक कहानी यह भी है कि बहुत पहले यूनान में मोक्सर नामक एक मजाकिया राजा था. एक दिन उसने स्वप्न में देखा कि किसी चींटी ने उसे जिंदा निगल लिया है. सुबह उसकी नींद टूटी तो स्वप्न की बात पर वह जोर-जोर से हंसने लगा. रानी ने हंसने का कारण पूछा तो उसने बताया कि रात मैंने सपने में देखा कि एक चींटी ने मुझे जिंदा निगल लिया है. सुन कर रानी भी हंसने लगी. तभी एक ज्योतिष ने आकर कहा, महाराज इस स्वप्न का अर्थ है, आज का दिन आप हंसी-मजाक व ठिठोली के साथ व्यतीत करें. उस दिन अप्रैल महीने की पहली तारीख थी. बस तब से लगातार एक हंसी-मजाक भरा दिन हर वर्ष मनाया जाने लगा.
एक अन्य कथा के अनुसार बहुत पहले चीन में सनन्ती नामक एक संत थे, जिनकी दाढ़ी जमीन तक लम्बी थी. एक दिन उनकी दाढ़ी में अचानक आग लग गई तो वे बचाओ-बचाओ कह कर उछलने लगे. उन्हें इस तरह उछलते देख कर बच्चे जोर-जोर से हंसने लगे. तभी संत ने कहा, मैं तो मर रहा हूं, लेकिन तुम आज के ही दिन खूब हंसोगे, इतना कह कर उन्होंने प्राण त्याग दिए.