जल्द ही आपकी जेब में होगा नए रंगरूप का सौ रुपये का नोट
इंतजार खत्म होने वाला है। नए रंगरूप का सौ रुपये का नोट जल्द ही आपकी जेब में होगा। मध्य प्रदेश के देवास स्थित बैंक नोट प्रेस में इनकी छपाई शुरू हो गई है। अभी तकरीबन 2000 करोड़ रुपये की राशि में नोट छापे जाएंगे। नए नोटों का पुराने नोटों पर असर नहीं पड़ेगा और वह चलते रहेंगे।
इस नोट की खासियत इसका पूरी तरह भारतीय होना है। यह पहला नोट होगा, जिसमें तकनीक से लेकर सामान तक, सब कुछ भारतीय है। इस नोट में लगने वाला कागज भारत में तैयार किया गया है। प्रिंटिंग में लगने वाली स्याही भारतीय है और सिक्योरिटी फीचर भी पूरी तरह भारत में ही तैयार किए गए हैं। नोट की एक और खासियत इसमें छपने वाला स्मारक भी है।
नोट के पिछले हिस्से में यूनेस्को की विश्वदाय सूची में शामिल गुजरात के पाटण स्थित रानी की बावड़ी नोट दिखाई देगी। आमतौर पर लोगों के बीच कम चर्चित इस ऐतिहासिक इमारत को यूनेस्को ने बावडिय़ों की रानी की उपाधि दी है। गत 10 अप्रैल को ही दैनिक जागरण ने यह खबर प्रकाशित की थी कि सौ रुपये के नोट पर विश्वदाय सूची में शामिल किसी स्मारक की फोटो छापी जाएगी।
ये होंगे सिक्योरिटी फीचर
नए नोट की सिक्योरिटी फीचर में सबसे प्रमुख गांधी जी का चित्र होगा। इस सिक्योरिटी फीचर को गुप्त रखा जाएगा लेकिन यह नोट के रंग से कंट्रास्ट में होगा। नोट का रंग हल्का जामुनी होगा। आरबीआइ सूत्रों के अनुसार यही सबसे बड़ा सिक्योरिटी फीचर है। इसके अलावा करीब दो दर्जन सूक्ष्म सिक्योरिटी फीचर बढ़ाए गए हैं, जो पुराने नोट में नहीं है।
छोटा होगा नोट
अन्य नए नोटों की तरह सौ रुपये का नोट भी पुराने नोट से छोटा होगा। एक गड्डी का वजन तकरीबन 83 ग्राम होगा। नोट की लंबाई और चौड़ाई में करीब 10 फीसद की कमी की गई है।
जल्द बदलेगी एटीएम की कैश ट्रे
सौ रुपये के नोट के आकार प्रकार में बदलाव के चलते एटीएम के कैश ट्रे भी बदले जाएंगे। हालांकि अभी इस संबंध में कोई आदेश नहीं जारी हुआ है लेकिन, आरबीआइ के एक सूत्र का कहना है कि अगस्त माह तक इस संबंध में सभी बैंकों को आदेश जारी कर दिए जाएंगे। हालांकि कुछ बैंकों ने आटोमेटिक कैश ट्रे वाले एटीएम का आर्डर दे रखा है लेकिन, इनकी संख्या अभी कम है।
जल प्रबंधन और आध्यात्मिकता का संगम है रानी की बावड़ी
रानी की बावड़ी को रानी की बाव भी कहते हैं। पत्थरों पर महीन नक्काशी वाले इस सीढ़ीदार कुएं को भूमिगत जल के उपयोग और प्रबंधन की तकनीक के लिए श्रेष्ठ मानकर यूनेस्को ने 2014 में इसे विश्वदाय इमारत में शामिल किया था। केवल जल प्रबंधन ही नहीं इसे श्रेष्ठ आध्यात्मिक इमारत भी माना गया। इसका जल इस सात मंजिला इमारत की प्रतिमाओं का अभिषेक भी करता है। हालांकि मूल रूप से सात मंजिला इमारत अब पांच मंजिला ही है।
कहा जाता है कि 700 साल तक यह इमारत सरस्वती नदी की गाद में छिपी थी। इसे वर्ष 1980 में पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने खोजा था। प्रबंध चिंतामणि में 800 मूर्तियों का जिक्र मिलता है लेकिन, वर्तमान में 500 मूर्तियां ही मिली हैं। इस बावड़ी का निर्माण सोलंकी राजवंश के शासनकाल में राजा भीमदेव सोलंकी की पत्नी उदयमति ने उनकी याद में कराया था। इसका निर्माण वर्ष 1022 से वर्ष 1063 के बीच माना जाता है।