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जब महज 40 वर्ष की उम्र में PM बन गए थे राजीव गांधी, सभी को कर दिया था हैरान

31 अक्‍टूबर 1984 को जब इंदिरा गांधी की हत्‍या हुई थी उस वक्‍त राजीव गांधी पश्चिम बंगाल के दौरे पर थे। ये खबर मिलते ही वो तुरंत दिल्‍ली लौट आए थे। इंदिरा गांधी के निधन से पीएम पद खाली हो गया था जिसको भरना बेहद जरूरी था। ऐसे में आनन-फानन में कांग्रेस की बैठक हुई और राजीव गांधी को सर्वसम्‍मति से दल का नेता चुन लिया गया। इसके बाद उन्‍हें पीएम पद की शपथ दिलाई गई। राजीव गांधी महज 40 वर्ष की उम्र में प्रधानमंत्री बन गए थे। इस लिहाज से वो सबसे कम उम्र के प्रधानमंत्री भी थे। उनका पीएम बनना कांग्रेस के ही कई नेताओं के लिए हैरानी से भरा था। इसकी वजह उनका राजनीति में नया होना था।

उन्‍हें कांग्रेस में आए हुए भी कुछ ही समय बीता था। 1980 में संजय गांधी की आकस्मिक मौत के बाद इंदिरा गांधी ही उनकी कमी को पूरा करने के लिए राजीव गांधी को राजनीति में लेकर आई थीं। कांग्रेस का सदस्‍य बनने के बाद उन्‍हें पार्टी का महासचिव बनाया गया था। कांग्रेस में आने के बाद उनके कंधों पर दिल्‍ली में एशियन गेम्‍स को सफलतापूर्वक करवाने की बड़ी जिम्‍मेदारी थी। इसको उन्‍होंने बखूबी पूरा किया था। राजनीति में आने से पहले वो इंडियन एयरलाइंस में पायलट थे। राजीव गांधी पहली बार अमेठी से लोकसभा चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे थे।

इंदिरा गांधी की हत्‍या के बाद जब देश में लोकसभा चुनाव हुए तो कांग्रेस को लेकर आम जनता में सहानुभूति की लहर थी। इस चुनाव में राजीव गांधी के नेतृत्‍व वाली कांग्रेस को रिकॉर्ड सीटें हासिल की थीं। उनकी केबिनेट में युवा मंत्रियों की संख्‍या अधिक थी, इसलिए उन्‍हें एक नई पीढ़ी का नेता कहा जाता था। इसकी वजह ये भी थी कि उन्‍होंने अपने पीएम बनने के बाद से ही 21वीं सदी की बात करनी शुरू कर दी थीं। युवा पीएम होने के नाते उनसे देश को काफी उम्‍मीदें भी थीं। युवा पीढ़ी उन्‍हें अपने एक आदर्श के रूप में देखा करती थी।

लेकिन उनके कार्यकाल में ही इंदिरा गांधी की हत्‍या के बाद देश में सिख विरोधी दंगों ने सारा माहौल खराब कर दिया था। उनके कार्यकाल के दौरान सिर्फ एक यही मसला नहीं था जिसकी वजह से उनकी छवि खराब हुई बल्कि दिसंबर 1984 में हुआ भोपाल गैस कांड, शाह बानो मामला, 1987 में हुआ बोफोर्स दलाली के मामले से उनकी और पार्टी की छवि को काफी नुकसान पहुंचा था। इसके अलावा 1987 में श्रीलंका में शांति सेना को भेजना भी उनके कार्यकाल की बड़ी भूल साबित हुई। इसी दौरान उन्‍होंने श्रीलंका का दौरा भी किया था।

इस दौरान जब वो सलामी गार्ड का निरीक्षण कर रहे थे तब श्रीलंका की नौसेना के जवान विजिता रोहाने ने राइफल की बट से उनके ऊपर हमला तक कर दिया था। हालांकि उसका ये हमला नाकाम रहा और राजीव गांधी के साथ चल रहे सुरक्षाकर्मी ने तुरंत उन्‍हें धक्‍का दे दिया और जवान पर काबू पा लिया था। विदेशी राष्‍ट्राध्‍यक्ष की हत्‍या करने की कोशिश के लिए रोहाने को ढाई साल की सजा सुनाई गई थी। उनके खिलाफ लगातार उठे कई मामले और नाकामयाबियों की बदौलत 1989 में पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा था। चुनावों का प्रचार के दौरान 21 मई,1991 को लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम के उग्रवादियों ने उनकी मानव बम से हत्‍या कर दी थी।

कई आरोपों और आलोचनाओं के बाद भी ऐसी कई चीजें हैं जिनके लिए राजीव गांधी को कभी कमतर नहीं आंका जा सकता है। उन्‍हें भारत में सूचना क्रांति का जनक माना जाता है। देश में कंप्यूटराइजेशन और टेलीकम्युनिकेशन क्रांति का श्रेय उन्हें ही जाता है। स्थानीय स्वराज्य संस्थाओं में महिलाओं को 33 फीसदी रिजर्वेशन दिलवाने का काम भी उन्होंने किया था। मतदाता की उम्र 21 वर्ष से कम करके 18 वर्ष तक के युवाओं को चुनाव में वोट देने का अधिकार भी राजीव गांधी ने ही आम जनता को दिलवाया था।

राजीव गांधी यूं तो एक बड़े राजनीतिक परिवार से थे लेकिन सक्रिय राजनीति में आने से पहले वे इससे पूरी तरह से बाहर ही रहे। वे भारत के छठे प्रधान मंत्री थे। 20 अगस्त, 1944 को मुंबई में जन्‍मे राजीव गांधी ने इटली की एंटोनिया माईनो से शादी की थी। इन्‍हें आज हम सब सोनिया गांधी के नाम से जानते हैं। राजीव गांधी से उनकी मुलाकात कैम्ब्रिज में पढ़ाई के दौरान हुई थी।

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