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उत्तराखंड फॉरेस्ट ड्रोन फोर्स अब सक्रिय रूप से करने लगी कार्य, पढ़े पूरी खबर

उत्तराखंड में जंगलों और वन महकमे के परिप्रेक्ष्य में अक्सर कही जाने वाली कहावत ‘जंगल में मोर नाचा किसने देखा’ अब नेपथ्य में चली जाएगी। जंगल भी दिखेंगे और मोर नाचते, यानी वहां होते कार्य भी दिखेंगे। पता चलेगा कि जंगल के किस क्षेत्र में कौन-कौन सी वनस्पतियां, वन्यजीव हैं। ये भी नजर आएगा कि जंगल में कब कौन आ-जा रहा है। अर्थात वन एवं वन्यजीवों की सुरक्षा भी चाक चौबंद होने जा रही है। आप सोच रहे होंगे कि अचानक ऐसा क्या हो गया। चलिए, इस पहेली बुझाए देते हैं। दरअसल, उत्तराखंड फॉरेस्ट ड्रोन फोर्स अब सक्रिय रूप से कार्य करने लगी है। वन विभाग के 10 सर्किलों व 15 वन प्रभागों को 47 ड्रोन मिल चुके हैं। इनमें आसमान से ड्रोन पर लगे कैमरों के जरिये निगहबानी प्रारंभ होने से इसके बेहतर नतीजे आए हैं। ऐसे क्षेत्रों पर नजर रखी जा रही, जहां कार्मिकों का पहुंचना कठिन है।

सिस्टम की बेपरवाही

उत्तर भारत में गजराज की अंतिम पनाहगाह उत्तराखंड में बिगड़ैल हाथियों की निगरानी को उन पर रेडियो कॉलर लगाने की मुहिम पर सिस्टम की बेपरवाही भारी पड़ रही है। बात तब खुली, जब हरिद्वार में 10 हाथियों पर रेडियो कॉलर लगाने की कवायद को अंतिम रूप दिया गया। पता चला कि इन्हें बेहोश करने में इस्तेमाल होने वाली दवा ही उपलब्ध नहीं है। राज्य में सिर्फ कार्बेट टाइगर रिजर्व के पास ही यह दवा रखने का लाइसेंस है और उसके पास इसकी तीन शीशियां ही बची हैं। ऐसे में अफसरों के हाथ-पांव फूलना लाजिमी था। आनन-फानन लखीमपुर खीरी (उप्र) से यह दवा मंगाने का निर्णय लिया गया। भविष्य में ऐसी मुहिम में दवा बाधक न बने, इसके लिए अब राजाजी टाइगर रिजर्व को भी इसका लाइसेंस दिलाने की कसरत शुरू की गई है। हालांकि, दवा तो मिल जाएगी, मगर सिस्टम की बेपरवाही से हुई देरी के लिए कौन जिम्मेदार होगा।

बेहाल वन वाटिकाएं

शहरी क्षेत्रों में नागरिक कुछ पल सुकून की छांव में बिता सकें, इसके लिए केंद्र सरकार ने नगर वन योजना की शुरुआत की है। इसके लिए उत्तराखंड में भी कसरत हो रही है, मगर शहरों के नजदीक तय मानकों के अनुरूप 10 से 50 हेक्टेयर वन भूमि जुटाना मुश्किल हो रहा। इसे देखते हुए राज्य ने नगर वन योजना में भूमि के मानक से छूट चाही है। साथ ही आग्रह किया है कि पांच हेक्टेयर भूमि में भी नगर वन विकसित करने की छूट मिलनी चाहिए। केंद्र ने सकारात्मक रुख अपनाने के संकेत दिए हैं, मगर सवाल ये भी है कि वन महकमे ने शहरों के नजदीक जो वाटिकाएं तैयार की हैं, क्या वह उनकी तरफ भी देख रहा है। जवाब ढूंढे तो नहीं में मिलेगा। फिर चाहे कोटद्वार की नक्षत्र-नवग्रह वाटिका की बात हो अथवा दूसरे शहरों की वन वाटिकाएं, सभी देखरेख के अभाव में दम तोड़ रही हैं।

नंधौर आंचलिक महायोजना

नैनीताल और चंपावत जिलों में स्थित नैसर्गिक सौंदर्य और वन्यजीवन से परिपूर्ण नंधौर वन्यजीव अभयारण्य के ईको सेंसिटिव जोन की प्रारूप अधिसूचना को केंद्र सरकार की विशेषज्ञ समिति हरी झंडी दे चुकी है। अभयारण्य के चारों तरफ सात सौ मीटर से लेकर 12.5 किलोमीटर तक का क्षेत्र सेंसिटिव जोन के दायरे में है। इस सेंसिटिव जोन के लिए अब दो वर्ष के भीतर आंचलिक महायोजना राज्य सरकार को तैयार करनी है। पारिस्थितिकीय और पर्यावरणीय सराकारों को शामिल करते हुए महायोजना बनाई जानी है। इसके तहत विभिन्न कदम उठाने के साथ ही पारिस्थितिकीय पर्यटन को भी बढ़ावा दिया जाना है। इस दिशा में गंभीरता से कदम उठाए गए तो आने वाले दिनों में नंधौर अभयारण्य के ईको सेंसिटिव जोन में पारिस्थितिकीय पर्यटन से क्षेत्रवासियों के लिए रोजगार के अवसर सृजित होंगे। वर्तमान में इसकी जरूरत भी है और इससे वन एवं वन्यजीव संरक्षण में स्थानीय जनसमुदाय की भागीदारी सुनिश्चित हो सकेगी।

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