जन्मदिवस विशेष: भारत का स्वतंत्र क्रांतिकारी चंद्रशेखर आज़ाद
भारत के महान क्रन्तिकारी चंद्र शेखर आज़ाद का जन्म आज ही के दिन सन 1906 में हुआ था. मध्यप्रदेश के भाँवर में जन्मे चंद्रशेखर आज़ाद कट्टर सनातन धर्मी ब्राहाण परिवार में पैदा हुए थे. इनके पिता नेक और धर्मनिष्ठ थे और उनमें अपने पांडित्य का कोई अहंकार नहीं था. वे बहुत स्वाभिमानी और दयालु प्रवृति के थे. उनका बचपन घोर गरीबी में गुजा, जिस कारण चंद्रशेखर को अच्छी शिक्षा नहीं मिल पाई, लेकिन लिखने पढ़ने का ज्ञान उन्हें गाँव के ही एक बुज़ुर्ग श्री मनोहरलाल त्रिवेदी ने निशुल्क दे दिया था.
चंद्रशेखर अपने बचपन से ही अंग्रेज़ों के जुल्म सितम की कहानियां सुनते आ रहे थे, जिससे उनके मन में देश को आज़ाद करने की प्रबल भावना बचपन से ही घर करने लगी थी, इसीलिए उन्होंने अपना नाम भी आज़ाद रख लिया था. लेकिन इस आग को हवा 13 अप्रैल 1919 को हुए जलियांवाला बाग़ में हुए नरसंहार के बाद मिली. इसके बाद इस नरसंहार के जिम्मेदार जनरल डायर के खिलाफ आंदोलन जोर पकड़ने लगा. जब इस आंदोलन के दौरान प्रिंस ऑफ़ वेल्स भारत के मुंबई शहर में आए तो उनका भारी विरोध किया गया, विरोध करती इस भीड़ में चंद्रशेखर भी शामिल थे.
जब प्रिन्स का विरोध करती इस भीड़ को हटाने के लिए पुलिस ने लाठी चार्ज किया, आज़ाद के सभी दोस्त पुलिस से बचने के लिए भाग निकले , लेकिन आज़ाद वहीँ निडर खड़े थे. यही से आज़ाद का नया जन्म हो चुका था. आंदोलन के बीच ही एक दरोगा ने धरना दे रहे कुछ क्रांतिकारियों पर लाठियां बरसाना चालु की, तो आज़ाद का सब्र टूट गया और उन्होंने एक पत्थर उठाकर दरोगा को दे मारा, आज़ाद का निशाना अचूक था, पत्थर सीधे दरोगा के सर पर लगा, इस अपराध में आज़ाद को गिरफ्तार कर लिया गया. लेकिन आज़ाद तनिक भी विचलित नहीं हुए.
आज़ाद को गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया गया, 15 वर्षीय आज़ाद से जब मजिस्ट्रेट ने पूछाः “तुम्हारा नाम ?” बालक ने निर्भयता से उत्तर दिया – “आज़ाद”, “पिता का नाम ?” – मजिस्ट्रेट ने कड़े स्वर में पूछाः, ऊँची गरदन किए हुए बालक ने तुरंत उत्तर दिया – “स्वाधीन”. युवक की हेकड़ी देखकर न्यायाधीश क्रोध से भर उठा. उसने फिर पूछाः – “तुम्हारा घर कहाँ है ?” चंद्रशेखर ने गर्व से उत्तर दिया – “जेल की कोठरी” . न्यायाधीश ने क्रोध में चंद्रशेखर को 15 बेंत (कोड़े) लगाने की सजा दी. जेलर के 15 कोड़े भी आज़ाद की देशभक्ति नहीं तोड़ सके और हर कोड़े के साथ आज़ाद ने ‘भारत माता की जय’ और ‘वन्दे मातरम’ के नारे लगाए.
जब आज़ाद जेल से बाहर निकले तो उनका नाम घर-घर में पहुँच चुका था, देश के सभी लोग उनकी देशभक्ति की प्रशंसा कर रहे थे, साथ ही माताएं बहनें फूल मालाएं लेकर उनके स्वागत के लिए खड़ी थीं. इसी बीच आज़ाद की दोस्ती भगत सिंह से हुई, जो उन्ही की तरह क्रांति और इंक़लाब के समर्थक थे. जिसके बाद इन्होंने राजगुरु के साथ लाला लाजपत राय को मारने वाले सांडर्स की हत्या कर लाला की मौत का बदला लिया. जब भगत सिंह और राजगुरु गिरफ्तार किए गए, तो उन्हें अंग्रेज़ हुकूमत ने फांसी की सजा सुनाई. आज़ाद ने इन दोनों क्रांतिकारियों की सजा काम करने के काफी प्रयास किए, यहाँ तक कि वे जवाहरलाल नेहरू से भी मिले, लेकिन नेहरू से भी आशाजनक जवाब ना पाकर वे अपनी सायकिल पर बैठकर अल्फ्रेड पार्क तरफ चले गए, जहाँ उन्हें अंग्रेज़ अफसरों ने घेर लिए, बचने का कोई रास्ता ना पाकर 27 फ़रवरी 1931 को आज़ाद ने अपनी पिस्तौल से खुद को गोली मार ली. लेकिन वे अंत तक अंग्रेज़ सरकार के हाथ ना आए. वे आज़ाद थे, आज़ाद हैं और आज़ाद ही रहेंगे.