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आज महालया अमावस्या वही नवरात्रि पितृपक्ष की समाप्ति के एक महीने बाद होंगे आरंभ

महालया अमावस्या पितृ पक्ष का आखिरी दिन होता है. हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन माह की अमावस्या को महालया अमावस्या कहते हैं . इसे सर्व पितृ अमावस्या, पितृ विसर्जनी अमावस्या और मोक्षदायिनी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है. इस बार महालया 17 सितंबर को पड़ा है.

महालया से दुर्गा पूजा की शुरुआत हो जाती है. बंगाल के लोगों के लिए महालया का विशेष महत्‍व है और वह साल भर इस दिन की प्रतीक्षा करते हैं. महालया के साथ ही जहां एक तरफ श्राद्ध खत्‍म हो जाते हैं वहीं मान्‍यताओं के अनुसार इसी दिन मां दुर्गा कैलाश पर्वत से धरती पर आगमन करती हैं और अगले 10 दिनों तक यहीं रहती हैं लेकिन इस साल ऐसा नहीं हो पा रहा है. इस बार महालया अमावस्या की समाप्ति के बाद शारदीय नवरात्रि आरंभ नहीं हो सकेगी.

आमतौर पर महालया अमावस्या के अगले दिन प्रतिपदा पर शारदीय नवरात्रि शुरू हो जाती है. लेकिन इस बार अधिकमास के कारण नवरात्रि पितृपक्ष की समाप्ति के एक महीने बाद आरंभ होगी. इस तरह का संयोग 19 साल पहले 2001 में बना था जब पितृपक्ष के समाप्ति के एक महीने बाद नवरात्रि शुरू हुई थी. अधिक मास 18 सितंबर से शुरू हो रहा है जो 16 अक्टूबर को समाप्त होगा.

नवरात्रि में दुर्गा पूजा के दौरान जगह-जगह दुर्गा प्रतिमाएं बनाई जाती हैं. महालया के दिन ही मां दुर्गा की उन प्रतिमाओं को चक्षु दान किया जाता है यानी दुर्गा प्रतिमाओं के नेत्र बनाए जाते हैं. शास्त्रों में महालया अमावस्या का बड़ा महत्व बताया गया है.

ऐसा कहा जाता है कि जिन पितरों की मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं होती है उन पितरों का श्राद्ध कर्म हिमालय अमावस्या के दिन किया दाता है. इस दिन अपने पूर्वजों को याद और उनके प्रति श्रद्धा भाव दिखाने का समय होता है. पितृपक्ष के दौरान पितृलोक से पितरदेव धरती अपने प्रियजनों के पास किसी न किसी रूप में आते हैं. ऐसे में जो लोग इस धरती पर जीवित है वे अपने पूर्वजों को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए पितृपक्ष में उनका तर्पण करते हैं.

Pitru Paksha 2018: महालया या सर्वपितृ अमावस्या कब है, जानिये महत्व और कैसे  करें पितरों की विदाई - Pitru paksha mahalaya sarvapitra amavasya date time  significance sarv pitra amavasya puja ...

इस साल नवरात्रि पर्व 17 अक्टूबर से प्रारंभ हो रहा है जो 25 अक्टूबर तक चलेगा. राम नवमी 24 अक्टूबर को मनाई जाएगी. हिन्दू पंचांग के अनुसार, आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवरात्र पर्व शुरू होता है जो नवमी तिथि तक चलते हैं.जिस चंद्रमास में सूर्य संक्रांति नहीं पड़ती उसे ही अधिकमास या मलमास कहा गया है.

जिस चन्द्रमास में दो संक्रांति पड़ती हो वह क्षयमास कहलाता है. यह अवसर 28 से 36 माह के मध्य एक बार आता है. ज्योतिषीय गणना के अनुसार सूर्य के सभी बारह राशियों के भ्रमण में जितना समय लगता है उसे सौरवर्ष कहा गया है जिसकी अवधि 365 दिन 6 घंटे और 11 सेकंड की होती है. इन्हीं बारह राशियों का भ्रमण चंद्रमा प्रत्येक माह करते हैं जिसे चन्द्र मास कहा गया है.

एक वर्ष में हर राशि का भ्रमण चंद्रमा 12 बार करते हैं जिसे चंद्र वर्ष कहा जाता है. चंद्रमा का यह वर्ष 354 दिन और लगभग 09 घंटे का होता है. परिणामस्वरुप सूर्य और चन्द्र के भ्रमण काल में एक वर्ष में 10 दिन से भी अधिक का समय लगता है. इस तरह सूर्य और चन्द्र के वर्ष का समीकरण ठीक करने के लिए अधिक मास का जन्म हुआ है. लगभग तीन वर्ष में ये बचे हुए दिन 31 दिन से भी अधिक होकर अधिमास, मलमास या पुरुषोत्तम मास के रूप में जाने जाते

Pitru Paksha 2018: Mahalaya or Sarvapitri Amavasya 2018 Dates, Schedule,  importance and Timing : महालया या सर्वपितृ अमावस्या तिथि और महत्व, जानें  कैसे करनी है पितरों की विदाई

अधिक मास में सभी शुभ कार्य यज्ञ, विवाह, मुंडन, गृहप्रवेश नहीं होता है. इस माह का कोई भी देवता नहीं होता है तथा सूर्य की संक्रांति नहीं होने के कारण यह माह मलिन हो जाता है जिसे मलमास कहा जाता है. धार्मिक ग्रंथो के अनुसार दैत्यराज हिरण्यकश्यप का वध करने के लिए भगवान विष्णु ने नरसिंह रूप धारण इसी अधिक मास में किया था. तभी से यह पुरुषोत्तम मास के नाम से जाना जाता है. मान्यता है कि इस माह में भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करने व कथा श्रवण करने से 10 गुना अधिक पुण्य फल की प्राप्ति होती है.

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