ड्रग्स के केस पर मुंबई बॉलीवुड के संगीन कई चेहरे आये है सामने
नशा, अपने आप में अपराध है और नशे की वजह से होने वाले अपराधों की सूची तो अंतहीन है। स्वच्छता अभियान जोरों पर है। लेकिन क्या यह गंदगी सिर्फ बॉलीवुड में है? ईमानदारी से दिल पर हाथ रख कर समाज पर नजर दौड़ाइए…. न राजनीति बची है, न मीडिया पवित्र है, न हमारे अपने घरों के आसपास का वातावरण शुद्ध रह गया है।
अब यह ज़िन्दगी की जंग के बराबर लड़ाई जारी है । हर कोई कुछ नया, कुछ रोमांचक, कुछ हटकर करने की बेचैनी में है और संतुष्टि कहीं नहीं मिल रही क्योंकि व्यक्ति जानता ही नहीं है कि आखिर वह चाहता क्या है.. आखिर ऐसा क्या मिल जाएगा तो उसे राहत मिल जाएगी… हालांकि बात करें तो चमकदार बॉलीवुड के चौंधियाते उजालों की.. . जहां तेज लाइट और ऊंचा म्यूजिक अब तक हर काबिलियत को दबा देता था हर ऊंची आवाज को रौंद देता थ। आज वही लाइट खुद उन्हें चुभ रही है, वही आवाज खुद उनके कानों को झिंझोड़ कर रखे दे रही है।
नशा, बच्चे से लेकर महिलाओं तक के जिस्म के कारोबार, एक दूसरे से आगे निकल जाने की छटपटाहट, में है की लड़ाई, नकली दुनिया के नकली रंग रूप को बनाए रखने की अलग ही धुन में मगन है। जगह को छीन जाने की असुरक्षा के चलते यहां एक दूसरे को बर्दाश्त करने का मुद्दा खत्म होता जा रहा है।
कहते है न पाप का घड़ा एक न एक दिन फूटता ज़रूर है बहाना सुशांत बना दिशा बनी, रिया बनी और अब यह लिस्ट बढ़ती जा रही है। कोई आश्चर्य नहीं कि आने वाले दिनों में इस चमकती दुनिया से कुछ और नाम आत्महत्या और हत्या के शिकार हो, कुछ गायब हो जाए, कुछ वस्त्रहीन हो जाए।
ये जो छोटी मछलियां-बड़ी मछलियां तड़पती दिखाई दे रही हैं दरअसल यह बॉलीवुड का कचरा है। कुछ उम्रदराज हैं, खुद बेटियों के बाप हैं जो बरसों से ना जाने कितने न्यूकमर को अपना शिकार बना चुके हैं।
जाने कितनी रहस्यमयी मौतों पर जिनका दबे और खुले स्वर में नाम आता रहा है।
कुछ उम्रदराज हैं जिन्हें चिरयुवा बनने का शौक चर्राया है इसलिए अब तक अविवाहित हैं और तमाम अनैतिक गतिविधियां जिनके नाम पर दर्ज हैं। कुछ हैं जो अपने पड़ोसी देश के प्रति अटूट प्रेम को जाहिर करने से रोक ही नहीं पाते हैं….
लेकिन ऐसा क्या है कि कोई अब तक उन पर हाथ नहीं डाल सका, ये वही गीला कचरा है जिसे ग्लव्ज पहन कर ही उठाया जा सकता है।
और जो नाम नए हैं, कच्चे हैं, आदतन अपराधी नहीं हैं मजबूरी के चलते लपेटे में आ गए हैं वे सूखा कचरा है जिसे हाथ से उठाकर रिसाइकिलिंग में डाला जा सकता है। ये अबोध किशोर, युवा और लड़कियां हैं जिन्हें वक्त रहते संभाला जा सकता हैं। इन्हें अहसास करवाया जा सकता है कि बॉलीवुड में बने रहने की ऐसी कोई अनिवार्यता नहीं है कि ‘यह सब करना ही पड़ेगा’. .. अपनी प्रतिभा और लगन के बल पर, अपनी नैतिकता को गवाए बिना जगह बनाई जा सकती है और कई युवा ऐसा कर भी रहे हैं।
आप खुद देखिए कि गंदगी के नाम कितना कुछ सामने आ रहा है। अचानक किसी अर्जुन के ‘कपूर’ में ऐसी आग लगती है कि तुरंत अपनी ‘दियासलाई’ के साथ कोरोना पीड़ित हो जाते हैं, वही कोई अर्जुन को ‘राम’ भी ‘पाल’ नहीं सके और कोरोना ने संभाल लिया। कोरोना अचानक से वरदान बन गया है इनके लिए।
एक और हैं बहुत बहुत बड़े नायक जिन्हें अपने धन की तिजोरी भरने से फुरसत ही नहीं है.. उनका कोरोना भी कम संदेहास्पद नहीं था.. मैं भी, मेरा बेटा भी और उसके बाद भी मनचाही सहानुभूति नहीं मिली तो बहू भी और तो और पोती भी… फिर सब ठीक हो गए, सब काम पर लग गए क्योंकि वैसा माहौल नहीं बना जैसा कभी बरसों पहले चोट लगने पर बना था।
बहरहाल, ये सब बॉलीवुड के गीले-सूखे कचरे हैं जिन्हें हमें खुद उठाकर सावधानी से कचरा गाड़ी में डालना है। लेकिन हां याद रखें कि हमारे अपने घर में तो कहीं कोई फंगस, जाला,धूल, मिट्टी, गीला कचरा-सूखा कचरा एकत्र नहीं हो रहा है… समय पर सफाई कर लीजिएगा|