मतदान से ठीक पहले कोरोना की चपेट में आये डोनाल्ड ट्रंप क्या होगा चुनाव यहाँ जाने पूरा मामला
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के लिए मतदान होने में एक महीने से भी कम का वक्त बचा है. पहली प्रेसिडेंशियल डिबेट के बाद अमेरिका और पूरी दुनिया को चौंकानी वाली खबर सामने आई. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और फर्स्ट लेडी मेलानिया ट्रंप कोरोना वायरस से पीड़ित हो गए.
दोनों ही अब अस्पताल में हैं और व्हाइट हाउस के डॉक्टर्स उनपर नज़र बनाए हुए हैं. चुनाव से ठीक पहले इस तरह की परिस्थिति पैदा होने से कई तरह के सवाल खड़े कर दिए हैं. जो अमेरिका के साथ-साथ दुनिया की मीडिया की ओर से पूछे जा रहे हैं.
डोनाल्ड ट्रंप ने सबसे पहले अपनी एक सहयोगी के कोरोना पॉजिटिव होने की जानकारी दी, कुछ ही देर बाद उन्होंने खुद के और फर्स्ट लेडी के कोरोना पॉजिटिव होने के बारे में बताया. दरअसल, कुछ ही वक्त पहले व्हाइट हाउस के गार्डन में एक कार्यक्रम हुआ था, जहां ये सभी मौजूद थे. रविवार तक व्हाइट हाउस में 20 से अधिक लोग कोरोना पॉजिटिव पाए जा चुके हैं.
डोनाल्ड ट्रंप को शुरुआत में व्हाइट हाउस में ही इलाज दिया गया, लेकिन जब उनका बुखार नहीं उतरा तो उन्हें Walter Reed National Military Medical Center ले जाया गया. ये अमेरिका का सबसे बड़ा आर्मी अस्पताल है, अभी डोनाल्ड ट्रंप का यहां पर ही इलाज चल रहा है और वो कुछ काम भी करते नज़र आ रहे हैं.
डोनाल्ड ट्रंप के इस तरह अचानक बीमारी की चपेट में आने से कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं. सबसे बड़ा सवाल है कि क्या अमेरिकी चुनाव टल जाएगा? क्योंकि अब मतदान को 30 दिन से भी कम बचे हैं. अमेरिकी मीडिया में छपी रिपोर्ट्स बताती हैं कि अभी पहला असर पूरे कैंपेन पर हुआ है, जो ना सिर्फ रिपब्लिकन बल्कि डेमोक्रेट्स के लिए भी मुश्किल भरा है.
डोनाल्ड ट्रंप ने अपना पूरा कैंपेन अभी रद्द कर दिया है और उपराष्ट्रपति माइक पेंस जिम्मेदारी संभाल रहे हैं. पहली प्रेसिडेंशियल डिबेट हो गई है, इसी हफ्ते वाइस प्रेसिडेंशियल डिबेट होगी. लेकिन दूसरी प्रेसिडेंशियल डिबेट 15 अक्टूबर को होगी, ऐसे में कम ही चांस हैं कि डोनाल्ड ट्रंप इसमें शामिल हों. हालांकि, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए वो शामिल हो सकते हैं लेकिन वो ट्रंप की तबीयत पर निर्भर करेगा.
अगर चुनाव की तारीख की बात करें तो ये अभी नहीं टलेगा. उसका कारण ये है कि अभी तक लाखों अमेरिकी अपना वोट डाल चुके हैं, यानी चुनाव शुरू हो चुका है. कोरोना संकट के कारण इस बार मेल-इन वोट ज्यादा पड़ रहे हैं ऐसे में वोटिंग शुरू हो गई है.
1850 के आसपास से ही अमेरिकी चुनाव की तारीख नवंबर के पहले हफ्ते में रहती है, जो अब कानून का हिस्सा है. ऐसे में वोटिंग को सिर्फ व्हाइट हाउस टाल नहीं सकता है, उसके लिए अमेरिकी संसद की मंजूरी, संविधान में संशोधन जैसी जरूरतें पड़ेंगी. जो मुश्किल लग रहा है. यानी अमेरिकी राष्ट्रपति की बीमारी से इतर चुनावी प्रक्रिया जारी रहेगी.
दुनिया के अधिकतर लोकतांत्रिक देशों की तरह ही अमेरिका में भी ‘ट्रांसफर ऑफ पावर’ का विकल्प है. अगर देश का राष्ट्रपति अधिक बीमार हो, शासन करने की स्थिति में ना हो या फिर संसद या कैबिनेट का भरोसा खो चुका हो तो उसे पद से हटाकर किसी और को जिम्मेदारी दी जा सकती है.
अमेरिकी संविधान के 25वें संशोधन के तहत इस काम को पूरा किया जा सकता है. ऐसी परिस्थिति में सीधे सरकार की सारी शक्ति उपराष्ट्रपति के हाथ में चली जाएगी. अगर डोनाल्ड ट्रंप को लगता है कि वो सरकार चलाने की हालत में नहीं हैं तो वो इस बारे में सीनेट लीडर, डेमोक्रेट्स लीडर को सूचित करेंगे और माइक पेंस के हाथ में देश की कमान चली जाएगी.
ऐसी परिस्थिति अमेरिका में पहले भी बनी है, 1985 में जब रोनाल्ड रीगन की सर्जरी होनी थी तो उन्होंने उपराष्ट्रपति जॉर्ज बुश को कमान सौंपी थी. इसके अलावा जॉन कैनेडी की हत्या के बाद तब के उपराष्ट्रपति को कमान सौंपी गई थी. हालांकि, अभी अमेरिका में ऐसी परिस्थिति लागू नहीं हुई है और सत्ता डोनाल्ड ट्रंप के हाथ में ही है.
क्योंकि अमेरिकी चुनाव के लिए मतदान 3 नवंबर को होगा, फिर दिसंबर में सभी प्रतिनिधि राष्ट्रपति को चुनेंगे और 20 जनवरी को नया राष्ट्रपति शपथ लेगा, तब तक यही प्रशासन सत्ता में रहेगा.