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बड़ी खबर : जीएसटी काउंसिल की महत्वपूर्ण बैठक होगी आज

वस्तु एवं सेवा कर काउंसिल की आज यानी सोमवार को फिर बैठक होने जा रही है. आज की बैठक भी काफी हंगामेदार रहने की आशंका है, क्योंकि सिर्फ 20 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश ने केंद्र सरकार के मुआवजा प्रस्ताव को स्वीकार किया है. कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के शासन वाले ज्यादातर राज्यों ने केंद्र की पेशकश को ठुकरा दिया है.

आज की बैठक जुलाई 2017 में जीएसटी व्यवस्था की शुरुआत के बाद की सबसे हंगामेदार बैठक हो सकती है. राज्य करीब 2.35 लाख करोड़ रुपये का जीएसटी का बकाया मुआवजा देने की केंद्र सरकार से मांग कर रहे हैं. इसके बदले में केंद्र ने उन्हें उधार लेने के दो विकल्प दिये हैं. लेकिन केंद्र की इस पेशकश को लेकर राज्य बंटे हुए हैं.

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सूत्रों का कहना है कि अगर​ विपक्ष शासित राज्यों ने केंद्र के प्रस्ताव पर अपना विरोध जारी रखा तो इस मसले पर वोटिंग करानी पड़ सकती है, जिससे कि परंपरागत रूप से बचा जाता रहा है. करीब 20 राज्यों ने केंद्र सरकार के प्रस्ताव को स्वीकार किया है जिसमें से ज्यादातर बीजेपी शासित राज्य हैं.

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राज्यों का करीब 2.35 लाख करोड़ रुपये का जीएसटी मुआवजा बकाया है, लेकिन केंद्र सरकार का गणित यह है ​कि इसमें से करीब 97,000 करोड़ रुपये का नुकसान ही जीएसटी लागू होने की वजह से है, बाकी करीब 1.38 लाख करोड़ रुपये का राजस्व नुकसान कोरोना महामारी और लॉकडाउन की वजह से है.

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अगस्त महीने में केंद्र सरकार ने राज्यों को इस संकट से निपटने के लिए दो विकल्प दिये थे. पहला विकल्प यह था कि वे 97,000 करोड़ रुपया एक खास विंडो से उधार लें, जिसकी व्यवस्था रिजर्व बैंक करेगा. दूसरा विकल्प यह है कि वे पूरे 2.35 लाख करोड़ रुपये की रकम को उधार लें.

केंद्र ने आश्वासन दिया है कि इस उधारी को चुकाने के लिए लग्जरी और कई अन्य तरह की वस्तुओं पर लगने वाले कम्पेनसेशन सेस को 2022 से भी आगे बढ़ा दिया जाएगा. नियम के मुताबिक यह जीएसटी लागू होने के बाद सिर्फ पांच साल तक लगना था.

केंद्र के प्रस्ताव का विरोध करने वाले राज्यों में दिल्ली, केरल, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु शामिल हैं. उन्होंने इसके विरोध में केंद्र सरकार को लेटर लिखा है. उनका कहना है कि जीएसटी को लाने वाले संविधान संशोधन के मुताबिक केंद्र सरकार राज्यों को मुआवजा देने के लिए बाध्य है

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अगर इस मसले पर वोटिंग हुई तो काफी कुछ इस पर निर्भर करेगा कि ओडिशा और आंध्र प्रदेश जैसे गैर बीजेपी शासित राज्य क्या रुख अख्तियार करते हैं. नियम के मुताबिक किसी भी तरह के प्रस्ताव को पास कराने के लिए कम से कम 20 राज्यों की सहमति जरूरी है.

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