पहली नजर में देश के पश्चिमी राज्य गुजरात की आर्थिक राजधानी सूरत किसी दूसरे भारतीय शहर जैसा ही दिखाई देता है। करीब से देखने पर शहर की चमक आंखों में भर जाती है। भारत के डायमंड केंद्र के रूप में जाना जाने वाला सूरत दुनिया के 80 फीसदी हीरों की पॉलिश करता है। यहां लगभग 7,50,000 मजदूर हीरा चमकाने के कारखानों में काम करते हैं। कटारगाम के इलाके में हीरा चमकाने वाली मशीनों की आवाज शहर की आवाज में घुल-मिल जाती है। हीरा पॉलिश करने वाले मजदूर केतन 4 दूसरे मजदूरों के साथ एक मशीन पर हीरे चमका रहे हैं। वे हाल ही में उत्तरी गुजरात के अपने गांव से सूरत आए हैं। हालांकि लॉकडाउन के बाद जून से कारखाने खुलने लगे हैं लेकिन केतन का मानना है कि हीरा मजदूरों का भविष्य अच्छा नहीं है। उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा कि मेरी आय लॉकडाउन से पहले जितनी थी उससे आधी रह गई है। इस साल मैं दिवाली पर अपने बच्चों के लिए नए कपड़े भी नहीं खरीद सकता। जो दोस्त गांव वापस चले गए हैं, वे शहर में वापस नहीं आना चाहते हैं। केतन को लगता है कि राज्य सरकार ने हीरा उद्योग को बेसहारा छोड़ दिया है। मार्च में राष्ट्रव्यापी तालाबंदी के लागू होने के बाद हीरा उद्योग को अपने हाल पर छोड़ दिया गया। केतन ने कहा कि हमने डायमंड मजदूरों के साथ मिलकर सूरत के कलेक्टर से कई बार मदद की गुहार की है, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ है। केतन बताते हैं कि हमने सत्ता में आने के लिए भारतीय जनता पार्टी को वोट दिया। सरकार को किसी तरह हमारी मदद करनी चाहिए। लेकिन मुझे नहीं लगता कि वे हमारी बात सुनेंगे, वे सिर्फ चुनाव के समय हमारा इस्तेमाल करते हैं। संपन्न उद्योग और नदारद सरकारी मदद जब भारत की केंद्र सरकार ने राष्ट्रव्यापी तालाबंदी लागू की तो 19.5 अरब यूरो के हीरा उद्योग को कोई भी सरकारी सहायता नहीं मिली। स्थानीय व्यापारियों के संगठन सूरत डायमंड संघ के बाबूभाई कथीरिया ने कहा कि सरकार को पता है कि हीरा उद्योग बहुत पैसा कमाता है इसलिए उन्होंने हमारी मदद नहीं की। हमने मेडिकल कैंप लगाने और 4,00,000 लोगों को राशन किट देने के लिए खुद ही धन इकट्ठा किया। डायमंड पॉलिशर वसंत का मानना है कि सरकार जितनी मदद करती है, उससे कहीं ज्यादा समस्याएं पैदा करती है। सूरत नगर निगम ने जून में हीरे के कारखानों को फिर से खोलने की अनुमति दी, लेकिन कहा है कि मशीन पर एकसाथ केवल 2 डायमंड पॉलिशर बैठ सकते हैं। पॉलिश किए गए हीरे के दैनिक कोटा को पूरा करने के लिए कम से कम 5 लोगों को एकसाथ काम करने की जरूरत है। हम सिर्फ 2 लोगों के साथ ये काम कैसे करें? बाबूभाई कथीरिया के अनुसार अगर प्रतिबंध जारी रहा तो उद्योग पर इसका दीर्घकालिक प्रभाव पड़ेगा। उन्होंने कहा कि लंबे समय में कोरोनावायरस हमारे लिए एक बड़ी परेशानी है। इस व्यवसाय में काम करने के लिए लोगों को एक-दूसरे के करीब बैठने की जरूरत होती है। हीरे को चमकाने वाली मशीनें महंगी होती हैं, इसलिए मशीन पर काम करने के लिए सिर्फ 2 लोगों को मजबूर करने का मतलब है कि कारखाना मालिक का नुकसान होगा। उन्होंने कहा कि जून में कारखानों के फिर से खुलने के बाद श्रमिकों के बीच वायरस के कई मामले सामने आए, क्योंकि कारखानों ने नियमों को धता बता दिया था और नगर निगम ने कारखानों को सील कर दिया। अब हीरा कारोबारियों ने नगर निगम के साथ समझौता किया है कि वायरस के मामले आने पर वे सिर्फ फ्लोर को सील करेंगे, पूरे कारखाने को नहीं ताकि मजदूर बेरोजगार न हों। कहीं दूसरी जगह भी काम नहीं सूरत में करीब 5,000 हीरे के कारखाने हैं, जो मुख्य रूप से 2 प्रकार के श्रमिकों को रोजगार देते हैं। एक वे जो मोटे बिन तराशे हीरे का व्यापार करते हैं और दूसरे जो हीरे को तराशने और आकार देने का काम करते हैं। लॉकडाउन का ज्यादातर खामियाजा हीरे तराशने वाले मजदूरों को उठाना पड़ा है। वे अभी भी समस्याओं का सामना कर रहे हैं। सूरत में एक प्रशिक्षण केंद्र अरिहंत डायमंड इंस्टीट्यूट के संस्थापक अल्पेश सांघवी ने डीडब्ल्यू को बताया कि बिन तराशा हीरा विदेशों से आता है। जब तालाबंदी शुरू हुई, तो व्यापार बंद हो गया इसलिए व्यापारी कच्चा हीरा नहीं खरीद पाए। इससे उत्पादन रुक गया, कारखाने पूरी तरह बंद हो गए और मजदूरों के पास काम नहीं रहा। वे कहते हैं कि गुजरात, उत्तरप्रदेश और बिहार के बहुत से श्रमिक कारखानों के फिर से खुलने के लिए सूरत में 2 महीने तक इंतजार करते रहे, लेकिन भुखमरी की स्थिति आने पर वे अपने घर चले गए। अब काम एक सीमित पैमाने पर शुरू हो गया है, लेकिन श्रमिकों ने काम की गारंटी ना मिलने पर वापस आने से मना कर दिया है। केतन जैसे डायमंड पॉलिशर, जो छोटे कारखानों में काम करते हैं, काम पर वापस आ रहे हैं क्योंकि उन्हें कहीं और काम नहीं मिल रहा था। मैं खेत पर काम नहीं कर सकता, क्योंकि इस साल बहुत ज्यादा बारिश होने के कारण फसल तबाह हो गई है। मेरे पास एक बहुत ही खास हुनर है, इसलिए मैं शहर में किसी और क्षेत्र में काम की तलाश भी नहीं कर सकता। मैं इस समय लॉकडाउन से पहले जितना कमाता था, उसका लगभग 50 फीसदी कमा रहा हूं। लेकिन मुझे इसी से काम चलाना होगा, क्योंकि मेरे पास कोई विकल्प नहीं है। केतन के कारखाने में हालात मुश्किल हैं। लगभग 50 मजदूर के लिए एक ही वॉशरूम है। मजदूरों को मिलने वाला पानी फिल्टर भी नहीं होता है। नाम ना बताने की शर्त पर फैक्टरी मालिक ने कहा कि महामारी से पैदा हुई आर्थिक कठिनाइयों ने उसे स्वच्छता पर समझौता करने के लिए मजबूर किया है। उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया कि मेरे पास अभी कई समस्याएं हैं। मेरे कामगार काम पर वापस आने से इंकार कर रहे हैं। मैं 3 श्रमिकों को इस निजी गारंटी पर वापस लाया हूं कि अगर वे कोरोनावायरस से पीड़ित होते हैं तो मैं उनके इलाज का खर्च उठाउंगा। मैं बाजार की मांग पूरी करने के लिए खुद हीरे पॉलिश कर रहा हूं। ऐसी हालत में मैं पीने का पानी कैसे खरीद सकता हूं? छोटे कारखाने, बड़े मसले डायमंड पॉलिश करने वालों की चिंता पिछले महीने तब और बढ़ गई, जब मजदूर संघ के एक प्रमुख नेता जयसुख गजेरा ने आत्महत्या कर ली। गजेरा के परिवार का मानना है कि डायमंड पॉलिशिंग उद्योग की मौजूदा स्थिति और उनकी खुद की वित्तीय परेशानियों ने उन्हें ऐसा कदम उठाने के लिए मजबूर कर दिया। गजेरा के भाई ने डीडब्ल्यू को बताया कि लॉकडाउन के दौरान कई डायमंड पॉलिश करने वालों की नौकरी चली गई और उन्हें मार्च महीने के लिए मेहनताना नहीं मिला। उन्होंने कारखाने के कर्मचारियों के साथ मिलकर उन्हें उनका वेतन दिलाने और यहां तक कि राशन किट बांटने के लिए संघर्ष किया। वे वास्तव में हीरा पॉलिश करने वालों की गंभीर परिस्थितियों से परेशान थे। मार्च से लेकर अब तक 13 हीरा पॉलिशरों ने आत्महत्या कर ली है। हीरे के लिए सबसे बड़े निर्यात बाजारों में से एक चीन के साथ भारत के तनाव और देश में आर्थिक मदी की आशंका के बीच हीरा श्रमिकों की स्थिति विकट दिख रही है। स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता धार्मिक पटेल के अनुसार हीरा मजदूरों के काम करने की स्थिति भी बहुत खराब है। उन्होंने कहा कि श्रमिकों पर बहुत दबाव है कि वे वापस आएं और कारखानों में काम शुरू करें। पटेल कहते हैं कि छोटे कारखानों के मालिक मजदूरों के वापस न आने पर नौकरी से निकालने की धमकी दे रहे हैं। बड़े कारखाने कम से कम सीधे अपने हीरे निर्यात कर सकते हैं, इसलिए वे श्रमिकों को भुगतान कर सकते हैं लेकिन छोटे कारखानों को ये सुविधा नहीं है। उन्होंने पिछले 3 महीनों में कोई कारोबार नहीं किया है। कई श्रमिक वर्तमान में बिना पगार के काम कर रहे हैं।
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