करवा चाैथ व्रत की ऐसे करें तैयारी, जानें पूजा थाली की साम्रगी में क्या क्या होता है कथा और पूजन विधि:-
करवा चौथ का व्रत सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु की मनोकामना के साथ रखती हैं। ज्योतिषाचार्य डॉक्टर त्रिलोकी नाथ के मुताबिक यह व्रत सुबह 4 बजे से शाम जब तक चन्द्रोदय न हो जाये तबतक किया जाता है। चन्द्रोदय के बाद पति के हाथों से पत्नी निवाला खाकर अपना उपवास खोलती है। हालांकि क्षेत्रीय स्तर पर यह व्रत देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग तरीके से किया जाता है। कुछ जगहों पर यह व्रत पूर्ण निर्जल रखा जाता है वहीं कुछ जगहों पर दिन में एक बार जल ग्रहण की प्रथा है। करवा चौथ दिन स्नान आदि करने के बाद पूरे दिन व्रत रखने का संकल्प करें। इस दिन व्रती को झूठ आदि बोलने से बचना चाहिए और बड़ों का आशीर्वाद लेना चाहिए।
करवा चाैथ की पूजा करने से पहले उसकी थाली तैयार करना जरूरी होता है जिससे कि बार-बार पूजा से न उठना पड़े। पूजा की थाली में छलनी, मिट्टी का टोंटीदार करवा और उसे ढकने के लिए मिट्टी का ढक्कन, दीपक, फूल, फल, सिंदूर, मेवे, रुई की बत्ती, कांसे की 7, 9 या फिर 11 तीलियां, कलावा, मिठाई, चावल, आटे का दीपक, अगरबत्ती, पूड़ी, पुआ, हलुवा, चावल के आटे के मीठे लड्डू, तांबे या फिर स्टील का लोटा आदि रखना चाहिए। पूजा की थाली में गाय के गोबर से बनी गाैर भी रखी जाती है। अगर गाैर न हो तो मिट्टी के पांच छोटे-छोटे टुकड़ों को गाैर मानकर रख लेना चाहिए। इसके अलावा पूजा की थाली में कुछ पैसे भी रखने चाहिए।
करवा चाैथ के दिन शाम के समय दीवार पर गेरू से करवा बनाए। गेरू नहीं है तो पिसे चावल से भी इसे बनाया जा सकता है। इस दाैरान एक गाैरी बनाकर उन्हें आसन दें और चुनरी ओढ़ाएं। इसके बाद करवा की पूजा करते बिंदी, सिंदूर, आलता जैसी सुहाग सामग्री से मां गौरी का श्रृंगार करें। फिर मिट्टी का टोंटीदार करवा लें और उसमें जल भरें। करवे पर ढक्कन रखें और करवे पर रोली से स्वास्तिक बनाएं। इसके बाद परंपराओं के अनुसार उसमें सामान चढ़ाएं और गौरी-गणेश और चित्रित करवा पूजा करते हुए पति की दीर्घायु की कामना करें। पूजन और कथा सुनने के बाद छन्नी से चंद्र दर्शन अर्घ्य दें। इसके बाद बड़ों का आशीर्वाद लेकर व्रत तोड़ें।
बहुत समय पहले की बात है, एक साहूकार के सात बेटे और एक बेटी थी। बेटी का नाम करवा था। साहूकार के सभी बेटे अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। पहले उसे खाना खिलाते और बाद में स्वयं खाते थे। शादी के बाद एक बार जब उनकी बहन मायके आई तो चतुर्थी के व्रत वाले दिन शाम को जब भाई खाना खाने बैठे तो उन्होंने अपनी बहन से भी खाने का आग्रह किया। इस पर जब बहन ने बताया कि उसका आज उसका व्रत है और वह खाना चंद्रमा को अर्घ्य देकर ही खा सकती है। इस पर उसके भाई परेशान हो गए कि कैसे उनकी बिना खाए रहेगी। इस पर सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं जाती और वह दूर पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। जो देखने में एकदम चतुर्थी का चांद जैसा था। इस पर उनकी बहन करवा उसे अर्घ्य देकर खाना खाने बैठ जाती है। जैसे ही वह पहला टुकड़ा मुंह में डालती है उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और तीसरा टुकड़ा मुंह में डालती है तभी उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। इस पर वह बेहद दुखी हो जाती है।
इसके बाद उसकी भाभी सच्चाई बताती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं। इस पर करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं करेगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। इस तरह से वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है। उसकी देखभाल करती है। उसके ऊपर उगने वाली सूईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है। एक साल बाद फिर चौथ का दिन आता है, तो वह व्रत रखती है और शाम को सुहागिनों से अनुरोध करती है कि ‘यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो’ लेकिन हर कोई मना कर देती है। आखिर में एक सुहागिन उसकी बात मान लेती है। इस तरह से उसका व्रत पूरा होता है और उसके सुहाग को नए जीवन का आर्शिवाद मिलता है। इसी कथा को कुछ अलग तरह से सभी व्रत करने वाली महिलायें पढ़ती और सुनती हैं। क्षेत्रीय स्तर पर करवा चाैथ की और भी कई कथाएं प्रचलित हैं।