आइये जानते है क्या है करवा चौथ के त्योहार का विशेष महत्व
करवा चौथ हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है हिंदू धर्म में करवा चौथ के त्योहार का विशेष महत्व होता है बतादे की नवरात्रि से त्योहारों का सिलसिला शुरू हो जाता है 25 अक्टूबर को दशहरा के बाद करवा चौथ,फिर दिवाली और फिर भइया दूज का त्योहार मनाया जाएगा करवा चौथ के दिन सुहागिनें पति की लंबी आयु की कामना के लिए निर्जला व्रत रखती हैं सुहागिनों के लिए यह व्रत सबसे स्पेशल होता है
करवा चौथ का व्रत हर साल कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है करवा चौथ का व्रत सूर्योदय से चांद निकलने तक रखा जाता है चांद को अर्घ्य देने और दर्शन करने के बाद ही व्रत को खोलने का नियम है चंद्रोदय से कुछ समय पहले शिव-पार्वती और भगवान गणेश की पूजा की जाती है चांद निकलने के बाद महिलाएं पति को छलनी में दीपक रखकर देखती हैं और पति के हाथों जल पीकर उपवास खोलती हैं
शास्त्रों में चंद्रमा को आयु, सुख और शांति का कारक माना जाता है मान्यता यह भी है कि चंद्रमा की पूजा से वैवाहिक जीवन सुखी होती है और पति की आयु लंबी होती है।पौराणिक कथा के अनुसार, एक साहूकार के सात बेटे थे और उसकी एक करवा नाम की बेटी थी एक बार साहूकार की बेटी को करवा चौथ का व्रत मायके में पड़ा जब रात में सभी भाई खाना खा रहे थे तो उन्होंने अपनी बहन से भी खाना खाने के लिए कहा लेकिन करवा ने खाना खाने से इनकार कर दिया और कहा कि अभी चांद नहीं निकला है
वह चांद को अर्घ्य देने के बाद ही खाना खाएगी भाइयों से बहन की भूखी-प्यासी हालत देखी न गई तभी सबसे छोटा भाई दूर एक पीपल के पेड़ में दीपक प्रज्वलित कर चढ़ गया भाईयों ने करवा से कहा कि चांद निकल आया है और उसे अपना व्रत तोड़ने के लिए कहा। बहन को भाई की चालाकी समझ नहीं आई और उसने खाना खा लिया खाना खाते ही करवा को उसके पति के मौत की खबर मिली वह बौखला जाती है
और तभी उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत कराती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं और उन्होंने ऐसा किया है सच्चाई जानने के बाद फिर करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रही उसकी देखभाल करती रही उसके ऊपर उगने वाली सूईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है एक साल बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है।
उसकी सभी भाभियाँ करवा चौथ का व्रत रखती हैं। जब भाभियाँ उससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी से ‘यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो’ ऐसा आग्रह करती है, लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कह चली जाती है इस प्रकार जब छठे नंबर की भाभी आती है तो करवा उससे भी यही बात दोहराती है। यह भाभी उसे बताती है कि चूँकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था अतः उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सकती है,
इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे, उसे नहीं छोड़ना। ऐसा कह के वह चली जाती है सबसे अंत में छोटी भाभी आती है। करवा उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है, लेकिन वह टालमटोली करने लगती है।
इसे देख करवा उन्हें जोर से पकड़ लेती है और अपने सुहाग को जिंदा करने के लिए कहती है। भाभी उससे छुड़ाने के लिए नोचती है, खसोटती है, लेकिन करवा नहीं छोड़ती है अंत में उसकी तपस्या को देख भाभी पसीज जाती है और अपनी छोटी अँगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसके पति के मुँह में डाल देती है। करवा का पति तुरंत श्रीगणेश-श्रीगणेश कहता हुआ उठ बैठता है। इस प्रकार प्रभु कृपा से उसकी छोटी भाभी के माध्यम से करवा को अपना सुहाग वापस मिल जाता है
“हे श्री गणेश माँ गौरी जिस प्रकार करवा को चिर सुहागन का वरदान आपसे मिला है, वैसा ही सब सुहागिनों को मिले”
एक कथा ये भी। ….
एक बार पांडु पुत्र अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी नामक पर्वत पर गए। इधर द्रोपदी बहुत परेशान थीं। उनकी कोई खबर न मिलने पर उन्होंने कृष्ण भगवान का ध्यान किया और अपनी चिंता व्यक्त की तब कृष्ण भगवान ने कहा- बहन, इसी तरह का प्रश्न एक बार माता पार्वती ने शंकरजी से किया था तब उन्होंने करवा चौथ के बारे में बताया और कहा की करवा चौथ का व्रत नियम अनुसार पूजन कर चंद्रमा को अर्घ्य देकर फिर भोजन ग्रहण करो सोने, चाँदी या मिट्टी के करवे का आपस में आदान-प्रदान होता है जो आपसी प्रेम-भाव को बढ़ाता है।
पूजन करने के बाद महिलाएँ अपने सास-ससुर एवं बड़ों को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद लेती हैं।तब शंकरजी ने माता पार्वती को करवा चौथ का व्रत बतलाया। इस व्रत को करने से स्त्रियाँ अपने सुहाग की रक्षा हर आने वाले संकट से वैसे ही कर सकती हैं जैसे एक ब्राह्मण ने की थी जिसकी कथा ये है प्राचीनकाल में एक ब्राह्मण था। उसके चार लड़के एवं एक गुणवती लड़की थी।एक बार लड़की मायके में थी,
तब करवा चौथ का व्रत पड़ा। उसने व्रत को विधिपूर्वक किया। पूरे दिन निर्जला रही। कुछ खाया-पीया नहीं, पर उसके चारों भाई परेशान थे कि बहन को प्यास लगी होगी, भूख लगी होगी, पर बहन चंद्रोदय के बाद ही जल ग्रहण करेगी।भाइयों से न रहा गया, उन्होंने शाम होते ही बहन को बनावटी चंद्रोदय दिखा दिया। एक भाई पीपल की पेड़ पर छलनी लेकर चढ़ गया और दीपक जलाकर छलनी से रोशनी उत्पन्न कर दी।
तभी दूसरे भाई ने नीचे से बहन को आवाज दी- देखो बहन, चंद्रमा निकल आया है, पूजन कर भोजन ग्रहण करो। बहन ने भोजन ग्रहण किया।भोजन ग्रहण करते ही उसके पति की मृत्यु हो गई। अब वह दुःखी हो विलाप करने लगी, तभी वहाँ से रानी इंद्राणी निकल रही थीं। उनसे उसका दुःख न देखा गया।
ब्राह्मण कन्या ने उनके पैर पकड़ लिए और अपने दुःख का कारण पूछा, तब इंद्राणी ने बताया- तूने बिना चंद्र दर्शन किए करवा चौथ का व्रत तोड़ दिया इसलिए यह कष्ट मिला।अब तू वर्ष भर की चौथ का व्रत नियमपूर्वक करना तो तेरा पति जीवित हो जाएगा।
उसने इंद्राणी के कहे अनुसार चौथ व्रत किया तो पुनः सौभाग्यवती हो गई। इसलिए प्रत्येक स्त्री को अपने पति की दीर्घायु के लिए यह व्रत करना चाहिए। द्रोपदी ने यह व्रत किया और अर्जुन सकुशल मनोवांछित फल प्राप्त कर वापस लौट आया तभी से हिन्दू महिलाएँ अपने अखंड सुहाग के लिए करवा चौथ व्रत करती हैं।