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नोटबंदी के पूरे हुए चार साल आये एक बार फिर याद करे नोटबंदी की यादें

आज 8 नवंबर है, और नोटबंदी के पूरे चार साल हो गए. विपक्ष लगातार नोटबंदी को सरकार का गलत फैसला ठहराता आया है. जबकि सरकार का मानना है कि नोटबंदी का सकारात्मक असर रहा. हालांकि, जिस उम्मीद के साथ सरकार ने नोटबंदी का फैसला लिया था, उतने बेहतर परिणाम नहीं मिले.

दरअसल, नोटंबदी की चर्चा आज भी होती है, क्योंकि इससे हर एक भारतीय का सामना हुआ था. 8 नवंबर 2016 को रात 8 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अचानक 500 और 1000 के नोटों को बंद करने की घोषणा की थी. साथ ही 200, 500 और 2000 रुपये के नए नोट जारी किए गए थे.

नोटंबदी की चर्चा आज भी होती है

देश में लोग नोटबंदी से हुई परेशानी को अब तक भूले नहीं हैं. नोटबंदी का सबसे ज्‍यादा प्रभाव उन उद्योगों पर पड़ा, जो ज्‍यादातर कैश में लेनदेन करते थे. इसमें अधिकतर छोटे उद्योग शामिल होते हैं. नोटबंदी के दौरान इन उद्योगों के लिए कैश की किल्‍लत हो गई. इसकी वजह से उनका कारोबार ठप पड़ गया. लोगों की नौकरियां गईं.

नोटबंदी की कड़वी यादें

अचानक नोटबंदी के फैसले से पूरे देश में अफरा-तफरी का माहौल बन गया था, सबसे ज्यादा नोटबंदी का प्रभाव संगठित और असंगठित क्षेत्रों के कारोबार पर पड़ा. हालात को काबू में करने के लिए नोटबंदी से जुड़े नियम हर रोज बदले जा रहे थे. विपक्ष का आरोप था कि नोटबंदी को लेकर सरकार की कोई तैयारी नहीं थी.

इसलिए लाई गई नोटबंदी

नोटबंदी लाने की मोदी सरकार ने कई वजहें बताईं. इसमें कालेधन का खात्मा करना, सर्कुलेशन में मौजूद नकली नोटों को खत्म करना, आतंकवाद और नक्सल गतिविधियों पर लगाम कसने समेत कैशलेस इकोनॉमी को बढ़ावा देने जैसे कई वजहें गिनाई गई थीं.

करीब 99.30 पुराने नोट बैंक में जमा

सरकार का तर्क है कि नोटबंदी के बाद टैक्स कलेक्शन बढ़ा और कालेधन में इस्तेमाल होने वाला पैसा सिस्टम में आ चुका है. लेकिन इससे जुड़े आंकड़े चार साल के बाद भी सामने नहीं आए हैं. आरबीआई के आंकड़े कहते हैं कि नोटबंदी के दौरान बंद हुए 99.30 फीसदी 500 और 1000 के पुराने नोट बैंक में वापस आ गए.

 विकास दर पर असर

नोटबंदी के बाद जीडीपी को झटका लगा, जिससे देश अभी तक नहीं उबर पाया है. नोटबंदी की घोषणा के बाद की पहली तिमाही में जीडीपी वृद्ध‍ि दर घटकर 6.1 फीसदी पर आ गई थी. जबकि इसी दौरान साल 2015 में यह 7.9 फीसदी पर थी. विपक्ष का कहना है कि नोटबंदी की वजह संकट में घिरी इकोनॉमी फिर सुधर पाई.

86 फीसदी नकदी हो गई थी बेकार

गौरतलब है कि पीएम मोदी ने 8 नवंबर, 2016 के अपने ऐतिहासिक संबोधन से पहले अपने कुछ चुनिंदा अफसरों को छोड़कर देश में किसी को भनक नहीं लगने दी थी. प्रधानमंत्री ने नोटबंदी जैसे ऐतिहासिक कदम के लिए अपने कुछ ऐसे भरोसेमंद अफसरों को चुना, जिन्हें देश के वित्तीय हलके में कम लोग ही जानते थे. पीएम मोदी के इस कदम से रातों-रात देश की 86 फीसदी नकदी बेकार हो गई थी. सरकार के इस कदम के बाद विपक्ष की तरफ से तमाम आरोप लगे, लोगों को लाइन में लगना पड़ा और अर्थव्यवस्था मुश्किल में पहुंचने के दावे किए गए.

डिजिटल लेन-देन बढ़ा

सरकार का दावा है कि नोटबंदी के बाद लोग कैश के साथ जीने की आदत कम कर रहे हैं. लोग अब कार्ड का इस्तेमाल भी ज्यादा कर रहे हैं. नोटबंदी की वजह से डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा मिला है, अब हर काम में लोग कैशलेस का विकल्प अपना रहे हैं. इसके लिए नोटबंदी का फैसला भी सकारात्मक साबित हुआ.

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