भारत के हितों से वाकिफ हैं राष्टपति जो बाइडन :-
डोनाल्ड ट्रंप के झांसे और धमकी के बावजूद जो बाइडन अमेरिका के नए राष्ट्रपति चुने गए हैं। भारत के लिए इसका मतलब अमेरिकी नीति में थोड़ा-सा बदलाव हो सकता है, जिसे ठहरकर देखने की जरूरत है। ऐतिहासिक रूप से भारत और अमेरिका के लंबे संबंध को देखते हुए हम एक अन्य अमेरिकी डेमोक्रेट राष्ट्रपति रूजवेल्ट को याद कर सकते हैं, जिन्होंने 1940 के दशक में भारत को स्वतंत्रता प्रदान किए जाने का समर्थन किया था और ब्रिटिश अधिकारियों के असहज होने के बावजूद उनके समक्ष इस विचार को प्रोत्साहित किया था। उस समय के इतिहास पर एक सरसरी नजर डालने से पता चलता है कि कई भारतीय नेता, जो स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई कर रहे थे, वे अमेरिकी नेताओं, खासकर डेमोक्रेट के साथ लगातार संपर्क में थे। रूजवेल्ट और महात्मा गांधी के बीच पत्रों का आदान-प्रदान अब ऐतिहासिक महत्व का दस्तावेज बन गया है, जो डेमोक्रेट के बीच प्रचलित मानव स्वतंत्रता से जुड़ी गहन उदार परंपरा और मूल्यों पर प्रकाश डालता है। जब स्वामी विवेकानंद अमेरिका गए थे, तब उन्होंने उनके बारे में काफी पढ़ा और सुना था।
जो बाइडन भी डेमोक्रेट हैं, जो बाद के वर्षों में उसी वातावरण में राजनेता के रूप में तैयार हुए हैं। एक सीनेटर के रूप में 36 वर्षों के लंबे कार्यकाल के दौरान उन्होंने बढ़ते हुए भारत को प्रभावित करने वाली अमेरिकी नीति पर काफी असर डाला है, खासकर तब, जब बाइडन सीनेट की विदेश संबंधी समिति के सदस्य और इसके अध्यक्ष के रूप में कार्य कर रहे थे। फिर वह ओबामा के कार्यकाल में उप राष्ट्रपति बने और इस प्रकार चार दशकों से ज्यादा समय तक उन्होंने न्यायपालिका और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था समेत विभिन्न क्षेत्रों में अमेरिकी नीति के विकास में सीधे भागीदारी की।वह जॉर्ज बुश और बराक ओबामा के प्रशासन की नीतियों पर अमल से करीब से जुड़े थे, खासकर तब, जब इन दोनों ने भारत के राष्ट्रीय हितों के लिए गुंजाइश बनाई और शेष चिंताओं को स्वीकार किया।’ उनकी सतर्क निगरानी में भारत के ‘व्यापार और निवेश के महत्वपूर्ण मुद्दे, अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा पर सहयोग, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में प्रवेश, व्यापार और निवेश मंचों में उन्नत प्रतिनिधित्व (वर्ल्ड बैंक, आईएमएफ, एपीईसी), बहुपक्षीय निर्यात नियंत्रण व्यवस्थाओं में प्रवेश (एमटीसीआर, वासेनार समझौता, ऑस्ट्रेलिया समूह) और परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह में प्रवेश के लिए समर्थन और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के जरिये संयुक्त विनिर्माण’ को आगे बढ़ाया गया, जिसके चलते अमेरिका-भारत और करीब आए।
यदि बाइडन ईरान के खिलाफ सीएटीएसएए के तहत लगे प्रतिबंधों को विवादित होने के कारण उठा लेते हैं, तो वह भारत के हित में ही होगा। इसके अलावा, चीन के बारे में भारत की चिंताओं को भारत-अमेरिकी रक्षा संबंध के तहत उठाया गया है, जो बाइडन की जानकारी में है और उससे उनके पीछे हटने की संभावना नहीं है। लेकिन कुछ ऐसे मुद्दे हैं, जिसका भारत पर प्रभाव हो सकता है और जिन्हें राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा अपनी कार्यकारी वीटो शक्ति का उपयोग करते हुए छोड़ दिया गया होगा। अमेरिकी चुनाव में रूसी हस्तक्षेप की जांच और सीएटीएसएए कानून उनमें से एक है।
अमेरिकी संसद ने इस कानून को दो अगस्त, 2017 को ही पारित कर दिया था और राष्ट्रपति ट्रंप ने हालांकि सावधानीपूर्वक इस पर सहमति जाहिर की थी। अधिनियम की धारा 231 अमेरिकी राष्ट्रपति को रूसी रक्षा और खुफिया क्षेत्रों के साथ ‘महत्वपूर्ण लेनदेन’ में लगे लोगों पर 12 सूचीबद्ध प्रतिबंधों में से कम से कम पांच को लागू करने का अधिकार देती है, जिसका उल्लेख अधिनियम की धारा 235 में किया गया है। इन प्रतिबंधों में से दो सबसे सख्त निर्यात लाइसेंस प्रतिबंध हैं, जिनके द्वारा अमेरिकी राष्ट्रपति हथियारों से संबंधित निर्यात लाइसेंस, दोहरे उपयोग और परमाणु संबंधी वस्तुओं के निर्यात को निलंबित करने; और प्रतिबंधित व्यक्ति की इक्विटी / ऋण में अमेरिकी निवेश पर प्रतिबंध लगाने के लिए अधिकृत हैं।
अमेरिकी प्रशासन को भारत के बारे में इसे खारिज करने के लिए मनाया गया था, जो रूस से एस-400 वायु रक्षा हथियार और अतिरिक्त एसयू-30 की खरीद को प्रभावित करता। लेकिन ये मुद्दे सरकार को प्रभावित करने वाले तत्वों के दबाव में फिर से सिर उठा सकते हैं। वास्तव में यही वह समूह है, जिसने अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों को प्रभावित करने में रूसी प्रयास के मुद्दे को उठाने में प्रमुख भूमिका निभाई थी और जो डोनाल्ड ट्रंप को इस हद तक डराने में सफल रहा कि उन्होंने एफबीआई के निदेशक को हटा दिया। लेकिन राष्ट्रपति बाइडन रूसियों के बारे में संस्थागत स्मृति के आधार पर एक अलग दृष्टिकोण अपना सकते हैं।
कुछ भारतीय टिप्पणीकारों को इस बात का भी डर है कि बाइडन के नेतृत्व में अमेरिकी प्रशासन भारत के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और जम्मू-कश्मीर में वैध रूप से चुनी हुई सरकार को खारिज करने के बारे में बहुत ही विपरीत विचार रख सकता है। हालांकि भारतीय विदेश मंत्रालय ने अमेरिकी विदेश विभाग के सदस्यों को बहुत ही सूक्ष्मता और स्पष्टता के साथ समझाया और ऐसी कार्रवाई करने की विधायी शक्ति के बारे में तर्क दिया था। लेकिन अमेरिकी मानवाधिकार समूह इस मुद्दे को फिर से उठाने के लिए प्रशासन पर दबाव बना सकता है। हालांकि इन सभी कार्यों को पाकिस्तान के प्रति अमेरिकी प्रशासन के रवैये से सीधे तौर पर जोड़ा जा सकता है और यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि पाकिस्तान के अपने आतंकवादी समूहों से निपटने और आर्थिक कार्य बल (एफएटीएफ) द्वारा जांच के तहत इन समूहों को धन का प्रवाह रोकने के लिए वह किस तरह काम करता है। ऐसी संभावना है कि भारत के खिलाफ पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के मद्देनजर बाइडन प्रशासन उस देश के प्रति अपना नजरिया नहीं बदलेगा। पर हम अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा इस वास्तविकता के प्रति प्रतिक्रिया की अनदेखी नहीं कर सकते कि भारत के प्रधानमंत्री ने खुलेआम राष्ट्रपति चुनाव में प्रवासी भारतीयों को संबोधित करते हुए नारा लगाया था कि ‘अबकी बार ट्रंप सरकार’।