लोजपा प्रमुख चिराग पासवान ने चुनाव में ‘असंभव नीतीश’ का नारा दिया था। यह उनका पहला चुनाव था। बिना रामविलास पासवान के चुनावी रण में उतरे चिराग ने ‘बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट विजन डाक्यूमेंट’ के बल पर नीतीश कुमार को सत्ता से बेदखल करने का हुंकार भरा था, वह चुनाव के नतीजों के रुझानों में पूरी तरह से गायब होती दिख रही है। भाजपा-जदयू को रुझानों में अब तक बहुमत की ओर से बढ़त मिलती दिख रही है। इस बीच जो सबसे ज्यादा चौंकाने वाली खबर है, वह लोजपा को सिर्फ दो सीटों पर बढ़त मिलती दिखने की है। रोसड़ा और दिनारा सीट पर लोजपा उम्मीदवारों को मामूली बढ़त मिली है। दिनारा में राजेंद्र सिंह और रोसड़ा में यश राज शुरूआत से ही आगे चल रहे हैं।
रामविलास पासवान के बाद चिराग का यह पहला चुनाव था और राजग से अलग होकर अकेले चुनाव लडऩे का उनका बड़ा फैसला था। भाजपा और जदयू को निर्णायक बहुमत मिलता देख चुनाव विश्लेषक भी मानने लगे हैं कि भाजपा के साथ लोजपा की सरकार बनाने का दावा करने वाले चिराग अपने पहले चुनाव में राजनीतिक फैसला लेने में चूक गए। वे जनता का मन-मिजाज को भांप नहीं पाए और केवल नीतीश कुमार का विरोध करते रहे। यह बात मतदाताओं को नागवार गुजरी और एकबार फिर भाजपा-जदयू पर भरोसा जताया।
चिराग के विजन डाक्यूमेंट का भी मतदाताओं पर कोई खास असर नहीं रहा। हां, लोजपा ने जदयू को दो दर्जन सीटों पर नुकसान जरूर किया है। खास बात यह है कि लोजपा को चुनाव में अच्छे प्रदर्शन की जो उम्मीद थी, वह असफलता में बदल गई। चुनाव विश्लेषक कह रहे हैं कि लोजपा के इस खराब प्रदर्शन के पीछे जो बड़ी वजह मानी जा रही है, वह जनता के बीच ‘खुद’ का भरोसा न जगा पाना है। जनता के साथ वह इसे जोड़ भी नही पाई थी। लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान भी अपनी सभाओं में ज्यादातर समय नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जदयू पर सीधा हमला करते देखे गए।