रियल एस्टेट को दिए पैकेज से अर्थव्यवस्था को वाकई ताकत मिलेगी या सिर्फ वित्तीय जादूगरी है :-
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने गुरुवार को अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए एक और राहत पैकेज का ऐलान किया है। इसी साल मार्च से देश में कोविड 19 महामारी जब फैलनी तो लॉकडाउन लागू किया गया। इसकी वजह से अर्थव्यस्था बुरी तरह से चरमरा गई है। इकोनॉमी को इस मुश्किल दौर से निकालने की कोशिश में सरकार ने कई किस्तों में राहत पैकेजों का ऐलान गुजरे कुछ महीनों में किया है।
हालिया राहत पैकेज में सरकार का फोकस प्रोविडेंट फंड स्कीम के तहत रजिस्टर्ड कर्मचारियों को सब्सिडी देने पर है। इसके अलावा स्ट्रेस में बने हुए सेक्टरों को क्रेडिट मुहैया कराने, प्रोडक्शन लिंक्ड इनसेंटिव्स के जरिए मैन्युफैक्चरिंग में तेजी लाने, सरकारी टेंडरों में अर्नेस्ट मनी को कम करने और किसानों को सब्सिडी पर खाद मुहैया कराने जैसी चीजों पर भी सरकार ने इस राहत पैकेज में कदम उठाए हैं।
हालांकि, अर्थव्यवस्था को फिर से खड़ा करने के लिए किए गए फैसले सही दिशा में दिखाई देते हैं, लेकिन आंकड़ों के लिहाज से देखें तो यह एक वित्तीय जादूगरी लगती है और इसमें अर्थव्यवस्था को कम वक्त में फायदा दिलाने के लिए किसी नई सोच का अभाव दिखाई देता है। जबकि मौजूदा हालात में ऐसे ही नए और बोल्ड आइडियाज की जरूरत थी।
इसी राहत पैकेज में रियल्टी सेक्टर में डिमांड बढ़ाने के लिए एक ऐलान किया गया है। इसके तहत 2 करोड़ रुपये की कीमत तक का पहली बार घर खरीद रहे बायर्स को तथाकथित “आयकर में राहत” मुहैया कराई गई है। यह राहत डिवेलपर्स को भी मिलेगी। यह एक अहम शॉर्ट टर्म के लिए किया गया बदलाव है जिससे बायर्स और डिवेलपर्स दोनों को बिना वजह के टैक्स से मुक्ति मिलेगी। लेकिन, ये राहत महज 30 जून 2021 तक के लिए ही है।
इसे ऐसे समझते हैं- आयकर सिस्टम में कई तरह के अवास्तविक टैक्स मौजूद हैं। ये टैक्स लोगों पर ऐसी कमाई के लिए लगाए जाते हैं जो उन्हें हुई ही नहीं है। साथ ही, अगर प्रॉपर्टी खरीद-फरोख्त की कोई डील मौजूदा सर्किल रेट से कम कीमत पर हो रही है तो सेक्शन 43CA और सेक्शन 56(2)(x) के तहत डिवेलपर और प्रॉपर्टी के बायर की आय मानी जाती है। इसी सर्किल रेट के आधार पर राज्य सरकारें स्टांप ड्यूटी वसूलती हैं।
इसके अलावा, आयकर अधिनियम के सेक्शन 50C में किसी बदलाव का प्रस्ताव नहीं किया गया है। यह सेक्शन प्रॉपर्टी बेचने वाले पर लागू होता है जिसमें बिक्री को कैपिटल गेन के तौर पर दर्ज किया जाता है। इन सेक्शंस में मार्केट के हालातों को नजरअंदाज किया जाता है और अक्सर इनकी वजह से आयकर विभाग और टैक्स पेयर्स के बीच में कानूनी विवाद पैदा हो जाते हैं।
इस संशोधन के बाद प्रॉपर्टी बायर पर सर्किल रेट और खरीदारी की कीमत के बीच मौजूद अंतर पर होने वाली डीम्ड इनकम पर कोई टैक्स नहीं लगेगा। लेकिन, ऐसा तभी होगा जबकि यह अंतर 20 फीसदी की तय की गई सीमा के भीतर होगा।
पिछले कुछ वर्षों से रियल एस्टेट सेक्टर सुस्ती के दौर में है और कमर्शियल रियल ऐस्टेट पर कोविड-19 महामारी फैलने के बाद सबसे बुरी मार पड़ी है। ऐसे में कमर्शियल रियल ऐस्टेट सेक्टर और रीसेल मार्केट की प्रॉपर्टीज को इस तथाकथित फायदे से दूर रखना इस संशोधन के आकर्षण को कम कर देगा और इससे ऐसे नतीजे मिलना भी मुश्किल हो जाएंगे जिनकी उम्मीद सरकार कर रही है।
इस बदलाव की बजाय सरकार के लिए ज्यादा समझदारी वाला कदम यह होता कि वह राज्य सरकारों को ऐसे इलाकों में सर्किल रेट घटाने की सलाह देती जहां पर प्रॉपर्टी की कीमत सर्किल रेट से नीचे चली गई है। साथ ही सरकार को रेजिडेंशियल और कमर्शियल दोनों तरह की प्रॉपर्टीज खरीदने के लिए हासिल किए गए लोन पर लगने वाले ब्याज पर अतिरिक्त टैक्स बेनेफिट देने चाहिए थे। सरकार को प्रॉपर्टी की बिक्री पर होने वाले कैपिटल गेन्स में कटौती करनी चाहिए थी। इससे प्रॉपर्टी के खरीदार और बेचने वाले दोनों को फायदा होता। ये कदम शॉर्ट और लॉन्ग टर्म दोनों में ही रियल ऐस्टेट सेक्टर में जान फूंकने में काफी मददगार साबित हो सकते थे।