मथुरा में गोवर्धन पूजा के लिए देश विदेश से आते है लाखों श्रद्धालु :-
उत्तर प्रदेश के मथुरा में गोवर्धन पूजा के दिन हर साल देश विदेश से लाखों श्रद्धालु यहां आकर कृष्ण भक्ति में तल्लीन हो जाते है।उत्तर प्रदेश के मथुरा में गोवर्धन पूजा के दिन हर साल देश विदेश से लाखों श्रद्धालु यहां आकर कृष्ण भक्ति में तल्लीन हो जाते है।
स्वामी भक्ति वेदान्त नारायण महराज के शिष्य एवं केशव गौड़ीय मठ के वर्तमान महन्त भक्ति वेदान्त गोस्वामी डाॅ0 माधव महराज ने शुक्रवार को यहां बताया कि मथुरा में गोवर्धन पूजा के दिन हर साल देश विदेश से लाखों श्रद्धालु यहां आकर कृष्ण भक्ति में तल्लीन हो जाते है। उन्होंने बताया कि हर साल दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा पर देश के कोने कोने से लाखों श्रद्धालु गोवर्धन की सप्तकोसी परिक्रमा करते हैं। इस परिक्रमा का लाभ उन्हें ही मिलता है जो पूर्ण भक्ति भाव से परिक्रमा करते हैं।
उन्होंने बताया कि उनके गुरू ने विदेशियों के मन में कृष्ण भक्ति का जो भाव भर दिया था उसी से हर साल गोवर्धन में गौड़ीय मठ से विदेशी कृष्ण भक्त पुरूष और महिलाएं अपने अपने सिर पर प्रसाद एवं भोग की सामग्री को रखकर शोभायात्रा के रूप में हरगोकुल मन्दिर जाते हैं।
गोवर्धन कस्बे में कृष्ण भक्ति की ऐसी गंगा प्रवाहित होती है जिसमें भावपूर्ण आराधना से मुंहमांगी मुराद पूरी हो जाती है।
केशव गौड़ीय मठ के पूर्व महन्त स्व0 भक्ति वेदान्त नारायण महराज ने इस रहस्य को समझा और जब उन्होंने इसका रहस्योदघाटन विदेश में किया तो विदेशी कृष्ण भक्त भी चमत्कार को देखने की आशा से यहां आने लगे। उन्होंने ठाकुर का आशीर्वाद दिलाने के लिए उन्हें गोवर्धन पूजा करने के लिए प्रेरित किया तो विदेशियों को यह इतना रास आया कि वे ठाकुर के रंग में ही रंग गए।
महन्त माधव महराज ने बताया कि कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण विदेशी कृष्ण भक्तों की शोभा यात्रा और गिर्राज जी के अभिषेक करने का कार्यक्रम इस बार शूक्ष्म रूप में ही आयोजित किया जाएगा। वैसे इस दिन दानधाटी, मुखारबिन्द, मुकुट मुखारबिन्द, हरगोकुल मन्दिरों समेत छोटे बड़े मन्दिरों में गिर्राज जी का अभिषेक कर श्रद्धालु सप्तकोसी परिक्रमा करते हैं। इस दिन हजारों भक्त गिर्राज जी की धारा परिक्रमा भी करते हैं।धारा परिक्रमा में परिक्रमार्थियों के आगे धूपबत्ती या अगरबत्ती को लगातार जलाते है जिससे धारा परिक्रमा के आगे का पर्यावरण शुद्ध रहे। इसके पीछे धारा परिक्रमा करनेवाला श्रद्धालु किसी ऐसे पात्र में दूध लेकर चलता है जिसमें छेद हो तथा जिससे लगातार दूध की धारा निकलती रहे। हर समय दूध की उपलब्धि के लिए साथ में रिक्शे या साइकिल पर एक मन दूध रखकर अन्य व्यक्ति चलता है जो समय समय पर उस पात्र में दूध भरता रहता है जिससे धारा परिक्रमा हो रही होती है। धारा परिक्रमा वास्तव में छोटी परिक्रमा जहां से शुरू होती है उससे से लगभग 50 कदम आगे चलकर लक्ष्मीनारायण मन्दिर से शुरू की जाती है और इसी मन्दिर में समाप्त की जाती है।
मदन मोहन मन्दिर के सहायक मुखिया सुनील के अनुसार इस दिन गोवर्धन में मेला सा लग जाता है और विभिन्न भंडारों में सकड़ी प्रसाद और कढ़ी चावल का प्रसाद वितरित किया जाता है। प्रसाद में अन्नकूट का बड़ा महत्व है तथा बाजरे को कूटकर उसको उबाल लिया जाता है और बाजरा, कढ़ी तथा खड़ी मूंग का प्रसाद मंदिरों में तथा परिक्रमा मार्ग में वितरित किया जाता है। जो लोग पूरे भक्ति भाव से परिक्रमा करते हैं उनकी दुनिया ही बदल जाती है। शाम को लोग अपने घरों के बाहर गोबर के गोवर्धन बनाकर पूजा करते हैं। उन्होंने बताया कि गोबर के गोवर्धन को गोवर्धन गोप भी कहा जाता है जो कंस के दरबार में दरबारी था तथा जिसने ठाकुर से अपनी पूजा कराने का आशीर्वाद मांगा था। उसी आशीर्वाद से लोग गोबर के गोवर्धन की पूजा करते हैं। कुल मिलाकर गोवर्धन पूजा के दिन गिर्राज तलहटी जन जन की आस्था का केन्द्र बन जाती है तथा भक्ति आनन्दित होकर नृत्य करने लगती है।
महन्त ने बताया कि जहां पर कई मन दूध, दही, खंडसारी, शहद, घी मिश्रित पंचामृत से गिर्राज जी का उसी प्रकार अभिषेक करते हैं जिस प्रकार सुरभि गाय ने श्यामसुन्दर का उस समय अभिषेक किया था जब कि उन्होंने अपनी सबसे छोटी उंगली पर सात दिन सात रात गोवर्धन पर्वत को धारण कर ब्रजवासियों की इन्द्र के प्रकोप से रक्षा की थी। सुरभि गाय के अभिषेक के प्रतीक के रूप में इस दिन गोवर्धन महराज का दुग्धाभिषेक करने की होड़ लग जाती है।