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बिहार चुनाव में हार के बाद क्या अलग हो गई राजद और कांग्रेस की दोस्ती पढ़े क्या है पूरा मामला ?

राजनीति में नंबर गेम कितना महत्वपूर्ण होता है, यह शायद महागठबंधन से बेहतर कोई नहीं जान सकता. एनडीए से 15 सीटें कम जीतने के चलते उसे विपक्ष में बैठना पड़ रहा है. नतीजें आए हफ्ता गुजर गया, फिर भी वे हार पचा नहीं पा रहे हैं. और तो और विपक्ष में बैठाने के पीछे जब अपनों का ही हाथ हो तो क्या ही कहने.

अब तक आप समझ गये होंगे कि हम किसकी बात कर रहे हैं. हम बात कर रहे हैं 70 में 51 सीटों पर हार का मुंह देखने वाली कांग्रेस की. अगर दूसरे शब्दों में बात करें तो कांग्रेस ने महागठबंधन की लूटिया डूबो दी. कांग्रेस से कहीं बेहतर प्रदर्शन तो वामपंथी दलों ने किया जिनका जीत का स्ट्राइक रेट 63% रहा.

हार पर मंथन करने के बजाय बिहार कांग्रेस के नेता मदन मोहन झा, प्रेमचंद मिश्रा समेत कई लोग शिवानन्द तिवारी पर हमलावर हो गये. प्रेमचंद्र मिश्रा ने तेजस्वी यादव से कहा कि वे शिवानंद तिवारी पर लगाम लगाएं. कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी को लेकर गिरिराज सिंह और शाहनवाज हुसैन जैसी भाषा राजद नेता का बोलना हमें स्वीकार नहीं है.

वहीं, दूसरी तरफ तारिक अनवर ने भी शिवानन्द तिवारी के बयान पर निशाना साधते हुए कहा कि कांग्रेस राजद नहीं है. राजद एक क्षेत्रीय पार्टी है और उसके नेता बिहार तक ही सीमित हैं. राहुल गांधी ने कहा था कि जब भी जरूरत होगी वह बिहार आएंगे और उन्होंने ऐसा किया. वह राजद के नेताओं की तरह काम नहीं कर सकते.

राजद तो राजद कांग्रेस के शीर्ष नेता भी अपनी पार्टी को आत्ममंथन की सलाह दे रहे हैं. बिहार से कांग्रेस के एकमात्र लोकसभा सांसद तारिक अनवर ने कहा कि उनकी पार्टी के प्रदर्शन के चलते ही बिहार में महागठबंधन की हार हुई है. एक अन्य बड़े नेता कपिल सिब्बल ने एक अखबार से बातचीत करते हुए कहा है कि जनता कांग्रेस को मजबूत विकल्प के तौर पर नहीं देख रही है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने न सिर्फ बिहार चुनाव बल्कि देश के अन्य राज्यों में हुए उपचुनाव को भी पार्टी ने गंभीरता से नहीं लिया.

बाहरहाल, शिवानन्द तिवारी के बयान से तो राजद नेतृत्व ने किनारा करते हुए उनके बयान को उनका निजी बयान बता दिया. लेकिन राजद के साथ- साथ कांग्रेस में भी अंदरखाने उठती विरोध की लहर किस मुकाम तक जाएगी कहना मुश्किल है.

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