पाकिस्तान में शौचालयों की कमी पूरी करेंगे जहाजी कंटेनरों में बने टॉयलेट :-
पाकिस्तान में शौचालयों की कमी से संघर्ष के बीच एक अभियान के जरिए कराची शहर को और स्वच्छ बनाने की कोशिश की जा रही है. देश में पहली बार एक निजी कंपनी पुराने जहाजी कंटेनरों को शौचालयों में बदल रही है. दक्षिणी पाकिस्तान के सिंध प्रांत की राजधानी में सक्रिय “साफ बाथ” अभियान के पीछे हैं सलमान सूफी और सामाजिक कल्याण के कार्य करने वाली उनकी संस्था सलमान सूफी फाउंडेशन (एसएसएफ). सलमान के अनुसार उनकी संस्था का ध्यान महिलाओं, विकलांगों और ट्रांसजेंडरों पर केंद्रित है |
संस्था ने ऐसे पहले टॉयलेट की व्यवस्था कराची के चहल पहल वाले ली मार्केट में एक बस अड्डे के पास की थी. हर टॉयलेट ब्लॉक दो भागों में विभाजित है – एक पुरुषों के लिए और एक महिलाओं के लिए. इसमें नीचे बैठने वाले शौचालय, हाथ धोने के लिए वॉश-बेसिन, साबुन, टॉयलेट पेपर और बिजली से चलने वाले हैंड ड्रायर हैं |
अंतरराष्ट्रीय संस्था वॉटरएड के मुताबिक पाकिस्तान की लगभग 21.2 करोड़ की आबादी में 40 प्रतिशत लोगों के पास ढंग के शौचालय उपलब्ध नहीं हैं. शौचालयों की कमी के साथ साथ दूसरी बड़ी समस्या है खुले में शौच करने का चलन. वॉटरएड के अनुसार 11 प्रतिशत से भी ज्यादा पाकिस्तानी खुले में ही शौच करते हैं. स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि खुले में शौच का डायरिया जैसी बीमारियों के फैलने से सीधा संबंध है |
एसएसएफ अपने कंटेनर टॉयलेटों के जरिए इन सभी चुनौतियों से लड़ने की कोशिश कर रहा है. हर टॉयलेट ब्लॉक को बनाने में बीस लाख पाकिस्तानी रुपयों की लागत आती है. एसएसएफ के अधिकारी शाहजेब नईम ने बताया कि हर ब्लॉक में रोशनी और वेंटिलेशन का अच्छा इंतजाम है, एग्जॉस्ट पंखे लगे हुए हैं, व्हीलचेयर के लिए रैंप बने हुए हैं और छोटे बच्चों के डायपर बदलने के लिए भी स्थान बने हुए हैं |
ली मार्केट में ही एक कार्गो कंपनी के दफ्तर में काम करने वाले मोहम्मद हनीफ ने बताया कि उस इलाके को किसी ऐसी साफ जगह की सख्त जरूरत थी जहां लोग शौच कर सकें. उन्होंने बताया, “मेरे पास यहां से कुछ दूर स्थित बदबूदार और अक्सर गीला रहने वाले सार्वजनिक शौचालय का इस्तेमाल करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था. ये नया शौचालय तो किसी पांच सितारा सहूलियत जैसा है |
दूसरों के घरों में काम करने वाली राखी मतान कहती हैं कि वो और उनके तीनों बच्चे पुराने सार्वजनिक शौचालयों में बिलकुल नहीं जाते. वो कहती हैं, “अगर हम पार्क में होते हैं और मेरे बच्चों को शौचालय जाने की जरूरत महसूस होती है तो वो घर वापस लौटने पर जोर देते हैं.” राखी यह भी कहती हैं कि महिलाओं को तो विशेष रूप से “सार्वजनिक स्थानों पर भी निजी स्थान” चाहिए क्योंकि वो “मर्दों की तरह कहीं भी शौच नहीं कर सकती हैं.” एसएसएफ के अधिकारी नईम अख्तर ने बताया कि ली मार्केट के अलावा झील पार्क में भी कंटेनर वाला टॉयलेट लगाया गया है. दोनों को रेकिट बेंकिजर कंपनी ने डोनेट किया था. इनके अलावा लाहौर में भी एक शौचालय लगाया गया है और इसके बाद एसएसएफ की योजना है कि अगले साल तक कराची में 50 शौचालय बना दिए जाएं. कराची के दक्षिणी जिले के डिप्टी कमिश्नर इरशाद सोधार ने इस पहल का स्वागत किया है |
उन्होंने कहा, “एसएसएफ को जगह चाहिए थी और शौचालयों की कहां जरूरत है यह समझने में मदद चाहिए थी.” इसके बावजूद खुले शौच की आदत को खत्म करने के लिए सिर्फ नए चमकदार शौचालय काफी नहीं है. ली मार्केट में एसएसएफ का शौचालय लग जाने के बाद भी पुरुषओं को अकसर ठीक उसके बगल में पड़े कूड़े के ढेर के पास खुले में शौच करते देखा जा सकता है. सोधर कहते हैं कि इस आदत को बदलना मुश्किल है |