हाई कोर्ट ने की ‘राइट टु बी फॉरगॉटन’ की बात, जानें हमसब के लिए क्यों है बहुत जरूरी :-
हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में तकनीक के बढ़ते हस्तक्षेप से बहुआयामी बदलाव की जरूरत महसूस हो रही है। इसी क्रम में ओडिशा हाई कोर्ट ने भी एक बदलाव का सुझाव दिया। उसने कहा कि प्रतिशोध या ब्लैकमेलिंग के लिए इंटरनेट पर डाले गए उस तरह के कंटेंट को हमेशा के लिए इस आभासी प्लैटफॉर्म (इंटरनेट) से हटा दिए जाने के अधिकार (राइट टु बी फॉरगॉटन) का प्रावधान होना चाहिए। इसे आसान शब्दों में कहें कि अगर कोई आपत्तिजनक वीडियो या तस्वीर इंटरनेट पर डाली गई हो तो पीड़ित के पास यह अधिकार होना चाहिए कि वो उसे वहां से हमेशा के लिए हटाने की मांग कर सके और हटवा सके।
‘आर्टिकल 21 में ही शामिल हो सकता है राइट टु बी फॉरगॉटन’
चूंकि इस अधिकार को लेकर देश में अभी कोई कानून नहीं है, इसलिए हाई कोर्ट ने सुझाव दिया कि इसे संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिले ‘निजता के अधिकार’ का ही अंग बनाया जा सकता है। ध्यान रहे कि कई यूरोपीय देशों ने अपने नागरिकों को राइट टु फॉरगॉटन दे रखा है और ओडिशा हाई कोर्ट भारत की पहली ऐसी संवैधानिक अदालत है जिसने भारतीय नागरिकों को भी यह अधिकार प्रदान करने की जरूरत बताई।
जस्टिस एसके पाणीग्रही ने कहा, ‘कोई भी व्यक्ति, खासकर कोई महिला, अपने चरित्र के दागदार पहलुओं का प्रदर्शन नहीं करना चाहेगी… उन्हें अपने खिलाफ आपत्तिजनक सामग्री परोसे जाने पर राइट टु फॉरगॉटन को इस्तेमाल करने का अधिकार मिलना चाहिए।’ उन्होंने कहा कि राइट टु बी फॉरगॉटन को राइट टु प्राइवेसी के अंदर ही रखा जाना चाहिए जो संवैधानिक अनुच्छेद 21 के तहत मिले सम्मानजनक जीवन के अधिकार भारत के हर नगारिक को प्रदान करता है। सुप्रीम कोर्ट ने के पुट्टास्वामी केस में इसकी व्याख्या की है।
रिवेंज पॉर्न के बढ़ते चलन से चिंता
ओडिशा हाई कोर्ट ने यह काफी महत्वपूर्ण सुझाव उस व्यक्ति की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया जिसने अपनी महिला मित्र के साथ सहमति से शारीरिक संबंध बनाते हुए चुपके से रिकॉर्ड कर लिया था। जस्टिस पाणीग्रही ने उसे जमानत देने से इनकार करते हुए कहा, ‘अगर ऐसे मामलों में राइट टु बी को मान्यता नहीं दी गई तो कोई भी व्यक्ति महिला की इज्जत तार-तार कर देगा और फिर उसका साइबरस्पेस में अबाधित दुरुपयोग करेगा।’ ध्यान रहे कि महिला मित्र के साथ बिताए गए निजी क्षणों की तस्वीरें या वीडियोज इंटरनेट पर डालने का चलन लगातार बढ़ रहा है। साइबर वर्ल्ड में इस तरह की सामग्री को ‘रिवेंज पॉर्न’ (प्रतिशोध में परोसी गई अश्लील सामग्री) कहा जाता है।
‘अधिकार मिले लेकिन निगरानी भी हो’
भारत इस मामले में यूरोप के अनुभवों से सीख सकता है। यूरोपियन डेटा प्राइवेसी लॉ, द जीडीपीआर, नागरिकों को फेसबुक, यूट्यूब समेत किसी भी संस्था से बोलकर या लिखकर संबंधित कंटेंट हटाने का आग्रह करने का अधिकार देता है। इस आग्रह पर ऑनलाइन प्लैटफॉर्म विचार करेगा कि क्या वह कंटेंट हटाने को बाध्य है या नहीं। हालांकि, ऐसे कानून की कड़ी निगरानी की भी दरकार होगी। उदाहरण के तौर पर गूगल ने फ्रांस की डेटा अथॉरिटी सीएनआईएल के खिलाफ दायर याचिका पर कहा कि राइट टु बी फॉरगॉटन का अबाधित इस्तेमाल सूचना प्राप्त करने के नागरिकों के अधिकार का हनन कर सकता है।