आज तुलसी विवाह जानें पूजा विधि क्या,क्या है मान्यताएं
आज देवउठनी एकादशी है. इस दिन तुलसी जी का विवाह होता है. कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को तुलसी विवाह किया जाता है. इस एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है. इस दिन शालिग्राम संग तुलसी 7 फेरे लेंगी. इस दिन से तुलसी विवाह के साथ ही विवाह के शुभ मुहूर्त आरंभ होते हैं.
इस वर्ष देवउठनी एकादशी 25 नवंबर दिन बुधवार को शुरू होकर 26 तारीख को समाप्त होगी. इस साल 25 या 26 नवंबर को होगा तुलसी विवाह होगा. इसे लेकर लोग भ्रमित हो रहे है. क्योंकि एकादशी तिथि दो दिन पड़ रहा है. जो लोग एकादशी उदया तिथि को मनाते हैं वे 26 को करेंगे और जो उदया तिथि को नहीं मानते वे 25 को कर लेंगे. इस दिन तुलसी का विवाह विधिपूर्वक भगवान शालिग्राम के साथ किया जाता है. मान्यता है कि जो व्यक्ति तुलसी विवाह का अनुष्ठान करता है उसे कन्यादान के बराबर पुण्य फल मिलता है. आइए जानते हैं तुलसी विवाह की तारीख, शुभ मुहूर्त और इसका धार्मिक महत्व |
भगवान विष्णु की पूजा में किसी भी तरह से तामसिक चीजों का प्रयोग वर्जित माना गया है. इसलिए जहां पर भी तुलसी का पौधा लगा हो वहां पर कभी मांस मदिरा का सेवन भूलकर भी नहीं करना चाहिए |
– तुलसी का पौधा कभी भी दक्षिण दिशा में नहीं होना चाहिए. ये आपके लिए अशुभ फलदायक हो सकती है. तुलसी के पौधे को हमेशा पूर्वोत्तर या उत्तर दिशा में लगाना चाहिए |
– तुलसी को हमेशा गमले में ही लगाना चाहिए. मान्यता है कि जमीन पर लगा हुआ तुलसी का पौधा अशुभ फल देता है |
आज के दिन भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप का तुलसी से विवाह हुआ था. तुलसी को भी माता लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है. इसलिए यह दिन विवाह के लिए उत्तम दिन माना गया है. इस दिन देवी तुलसी और शालिग्राम की कथा का पाठ करना बहुत ही शुभ फलदायी होता है | आज शालीग्राम के साथ तुलसी जी सात फेरे लेंगी. वहीं, आज से तुलसी विवाह के बाद मांगलिक कार्यक्रम शुरू हो जाएंगे |
देवउठनी एकादशी पर पूजा के स्थान को गन्नों से सजाते हैं. इन गन्नों से बने मंडप के नीचे भगवान विष्णु की मूर्ति रखी जाती है. साथ ही पूरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर भगवान विष्णु को जगाने की कोशिश की जाती है. इस दौरान पूजा में मूली, शकरकंदी, आंवला, सिंघाड़ा, सीताफल, बेर, अमरूद, फूल, चंदन, मौली धागा और सिंदूर और अन्य मौसमी फल चढ़ाए जाते |
पहले तुलसी विवाह पर्व पर पूरे दिन भगवान शालीग्राम और तुलसी की पूजा की जाती थी. परिवार सहित अलग-अलग वैष्णव मंदिरों में दर्शन के लिए जाते थे. तुलसी के 11, 21, 51 या 101 गमले दान किए जाते थे और आसपास के घरों में तुलसी विवाह में शामिल होते थे. इसके बाद पूरी रात जागरण होता था |
एक चौकी पर तुलसी का पौधा और दूसरी चौकी पर शालिग्राम को स्थापित करें. इसके बाद बगल में एक जल भरा कलश रखें और उसके ऊपर आम के पांच पत्ते रखें. तुलसी के गमले में गेरू लगाएं और घी का दीपक जलाएं. फिर तुलसी और शालिग्राम पर गंगाजल का छिड़काव करें और रोली, चंदन का टीका लगाएं. तुलसी के गमले में ही गन्ने से मंडप बनाएं. अब तुलसी को सुहाग का प्रतीक लाल चुनरी ओढ़ा दें. गमले को साड़ी लपेट कर, चूड़ी चढ़ाएं और उनका दुल्हन की तरह श्रृंगार करें. इसके बाद शालिग्राम को चौकी समेत हाथ में लेकर तुलसी की सात बार परिक्रमा की जाती है. इसके बाद आरती करें. तुलसी विवाह संपन्न होने के बाद सभी लोगों को प्रसाद बांटे | हिन्दू धर्म में तुलसी विवाह का खास महत्व है. तुलसी विवाह हर साल कार्तिक माह शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि के दिन किया जाता है. इस बार एकादशी तिथि 25 नवंबर को प्रारंभ होगी और 26 को समाप्त होगी. वहीं 26 नवंबर को तुलसी विवाह का आयोजन किया जाएगा. कई जगह द्वादशी के दिन भी तुलसी विवाह किया जाता है. इस एकादशी तिथि को देवउठनी एकादशी भी कहते हैं |
एकादशी तिथि प्रारंभ 25 नवंबर दिन बुधवार की सुबह 2 बजकर 42 मिनट पर
एकादशी तिथि समाप्त 26 नवंबर दिन गुरुवार की सुबह 5 बजकर 10 मिनट पर
द्वादशी तिथि प्रारंभ 26 नवंबर दिन गुरुवार की सुबह 05 बजकर 10 मिनट पर
द्वादशी तिथि समाप्त 27 नवंबर दिन शुक्रवार की सुबह 07 बजकर 46 मिनट पर
तुलसी के पौधे के चारो ओर मंडप बनाएं.
– तुलसी के पौधे के ऊपर लाल चुनरी चढ़ाएं.
– तुलसी के पौधे को शृंगार की चीजें अर्पित करें.
– श्री गणेश जी पूजा और शालिग्राम का विधिवत पूजन करें.
– भगवान शालिग्राम की मूर्ति का सिंहासन हाथ में लेकर तुलसीजी की सात परिक्रमा कराएं.
– आरती के बाद विवाह में गाए जाने वाले मंगलगीत के साथ विवाहोत्सव पूर्ण किया जाता है |
जलंधर जब भी युद्ध पर जाता था तो वृंदा पूजा अनुष्ठान करने बैठ जातीं थी. वृंदा की विष्णु भक्ति और साधना के कारण जलंधर को कोई भी युद्ध में हरा नहीं पाता था. एक बार जलंधर ने देवताओं पर चढ़ाई कर दी, जिसके बाद सभी देवता जलंधर को परास्त करने में असमर्थ हो रहे थे. तब हताश होकर सभी देवता भगवान विष्णु की शरण में गये और जलंधर के आतंक को खत्म करने पर विचार करने लगे |
भगवान विष्णु ने अपनी माया से जलंधर का रूप धारण कर लिया और छल से वृंदा के पतिव्रत धर्म को नष्ट कर दिया. इससे जलंधर की शक्ति कम होती गई और वह युद्ध में मारा गया. जब वृंदा को भगवान विष्णु के छल का पता चला तो उन्होंने भगवान विष्णु को शिला यानी पत्थर बन जाने का श्राप दे दिया. भगवान को पत्थर का होते देख सभी देवी-देवताओं में हाहाकार मच गया. फिर माता लक्ष्मी ने वृंदा से प्रार्थना की तब जाकर वृंदा ने अपना श्राप वापस ले लिया और खुद जलांधर के साथ सती होकर भस्म हो गईं |
वृंदा की शरीर के राख से एक पौधा निकला जिसे भगवान विष्णु ने तुलसी नाम दिया और खुद के एक रूप को पत्थर में समाहित करते हुए कहा कि आज से तुलसी के बिना मैं कोई भी प्रसाद स्वीकार नहीं करूंगा. इस पत्थर को शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जायेगा. तभी से कार्तिक महीने में तुलसी जी का भगवान शालिग्राम के साथ विवाह भी किया जाता है |