कोरोना के बिगड़ते हालात को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को लगाई फटकार
कोरोना की बिगड़ी स्थिति को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को फटकार लगाई है। शुक्रवार को कोर्ट ने निराशा जताते हुए कहा कि कोरोना संक्रमण के लिए राज्यों की तरफ से ठोस उपाय नहीं अपनाए जाने से पिछले तीन हफ्ते में हालात बद से बदतर हो गए हैं।
हालांकि केंद्र सरकार ने अपने जवाब में कोर्ट से कहा कि सरकार हालात पर लगातर नजर बनाए हुए है और हालात से निपटने के लिए लगातार गाइडलाइंस भी जारी कर रही है, लेकिन राज्यों की तरफ से इन गाइडलाइंस का ठीक से पालन नहीं किए जाने की वजह से स्थिति यहां पहुंच गई।
केंद्र ने अपने हलफनामें में सर्वोच्च अदालत को बताया कि 10 राज्यों में कोविड-19 के लगभग 77 फीसदी सक्रिय मामले हैं जबकि कुल सक्रिय मामलों में से 33 फीसदी महाराष्ट्र और केरल के हैं। हलफनामे में कहा गया कि दुनिया के अधिकतर देशों में कोविड-19 के मामले फिर से बढ़ रहे हैं और भारत की घनी आबादी को देखते हुए देश ने संक्रमण के प्रसार पर अंकुश लगाने में उल्लेखनीय काम किया है। केंद्र ने कहा कि 24 नवंबर तक भारत में कोविड-19 के 92 लाख मामले थें, जिसमें 4.4 लाख से अधिक सक्रिय मामले हैं।
सरकार ने अपने हलफनामे में कहा, ‘हमारी स्वस्थ दर 93.76 फीसदी हो गई है और करीब 86 लाख लोग महामारी से उबर चुके हैं। पिछले 8 हफ्तों में प्रतिदिन के औसतन मामलों में 50 फीसदी की कमी आई है। वर्तमान में केवल दो राज्यों में 50 हजार से अधिक मामले हैं और वे पूरे सक्रिय मामलों का करीब 33 फीसदी हैं।’ हलफनामे में बताया गया कि भारत का ‘केस फेटलिटी रेट’ (सीएफआर) 1.46 फीसदी है जबकि वैश्विक औसत 2.36 फीसदी है। केंद्र ने कहा कि सरकार सीएफआर को कम करने का प्रयास जारी रखेगी और इसे एक फीसदी से नीचे लाएगी और पॉजिटिविटी दर को कम करने के प्रयास तेज करेगी जो वर्तमान में 6.9 फीसदी है।
केंद्र ने कहा, ’10 राज्यों में देश में सक्रिय मामलों का 77 फीसदी है। ये राज्य हैं महाराष्ट्र (18.9%), केरल (14.7%), दिल्ली (8.5%), पश्चिम बंगाल (5.7%), कर्नाटक (5.6%), उत्तरप्रदेश (5.4%), राजस्थान (5.5%), छत्तीसगढ़ (5%), हरियाणा (4.7%) और आंध्रप्रदेश (3.1%)।’ इसने कहा कि भारत अब प्रतिदिन औसतन 11 लाख नमूनों की जांच कर रहा है और अप्रैल में 6 हजार नमूनों की जांच से बढ़कर यहां तक पहुंचना एक उल्लेखनीय बढ़ोत्तरी है। केंद्र ने 170 पन्नों का हलफनामा सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया और कहा कि महामारी जिस भयावता से बढ़ी उससे बाध्य होकर विभिन्न देशों ने कड़े कदम उठाए। इसने जीवन के लगभग हर पहलू को प्रभावित किया है और भारत इसका अपवाद नहीं है।
जस्टिस अशोक भूषण, आरएस रेड्डी और एमआर शाह की बेंच ने कहा- बीते तीन हफ्तों के दौरान बढ़ते कोरोना केसों के संदर्भ में राज्यों ने कोई ठोस उपाय नहीं किए जिसकी वजह से स्थिति बद से बदतर होती चली गई। राज्यों को राजनीति से ऊपर उठकर स्थिति को सुधारने का काम करना चाहिए। केंद्र सरकार का गाइडलाइंस जारी करके यह कहना कि मास्क पहनिए और सोशल डिस्टेंसिंग फॉलो कीजिए, ठीक है। लेकिन जमीन पर देखिए कि हो क्या रहा है। लोग या तो मास्क नहीं पहन रहे हैं या फिर गलत ढंग से पहन रहे हैं। हालात को सुधारने के लिए और कड़े कदम उठाए जाने की जरूरत है।
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को गुजरात के राजकोट के एक कोविड अस्पताल में आग लगने की घटना में 6 मरीजों की मौत होने को स्तब्ध कर देने वाली घटना बताया। इस घटना पर नाराजगी जताते हुए न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अगुवाई वाली बेंच ने इसे ‘स्तब्ध कर देने वाला’ करार दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि गुजरात सरकार को जवाबदेह देना चाहिए। बेंच ने कहा कि मामले में सिर्फ जांच और रिपोर्ट नहीं हो सकती। वहीं, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, ‘जो लोग जिम्मेदार हैं, उन्हें कठघरे में लाना चाहिए।’ सुप्रीम कोर्ट ने कोविड-19 रोगियों के समुचित इलाज और अस्पतालों में शवों की गरिमा को बनाए रखने के संबंध में स्वत: संज्ञान लेकर मामले की सुनवाई के दौरान ये टिप्पणियां कीं।