ब्रह्मपुत्र नदी से बाढ़ का हो सकता है बहाव :-
ब्रह्मपुत्र नदी के बाढ़ से होने वाला तहस-नहस पहले के अनुमान से और अधिक हो सकता है। ये खुलासा सात सदियों से नदियों के बहाव को लेकर हुए अध्ययन से हुआ है। वैज्ञानिकों का तो यहां तक मानना है कि जलवायु परिवर्तन को लेकर जो भी इंतजाम किए गए हैं या प्रयास हुए हैं उसका भी नदियों के बहाव पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा। नेचर कम्युनिकेशन जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार भारत, तिब्बत, उत्तरपूर्व, बांग्लादेश से होते हुए जो नदियां अलग-अलग नामों से होकर गुजरती हैं उनमें पहले की तुलना में पानी की क्षमता और अधिक होने का अनुमान है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ब्रह्मपुत्र नदी से जो बाढ़ का आकलन किया गया है वो भविष्य में और भयावह हो सकती है। अमेरिका के कोलंबिया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक और प्रमुख शोधकर्ता प्रो. मुकुंद पलत राव का कहना है कि बाढ़ का जो अनुमान हमने अभी लगाया है उससे अधिक का सामना करने के लिए हमें तैयार रहना होगा। शोध के अनुसार जिन नदियों के आसपास लाखों लोगों के घर है वहां जुलाई से सितंबर के बीच मॉनसून में लगातार बाढ़ आने की संभावना है। वैज्ञानिकों का कहना है कि बाढ़ से बचना है तो भूमि के प्रयोग की नीति बनानी होगी तभी कुछ चीजें नियंत्रित हो सकती हैं।
अधिक तापमान भी होगा घातक
वैज्ञानिकों के अनुसार बाढ़ इसलिए आएगी क्योंकि हिंद महासागर से नमी युक्त हवा हिमालयी क्षेत्रों से अपने साथ बारिश लेकर आएगी और इससे तटीय क्षेत्रों पर बुरा असर पड़ेगा। वैज्ञानिकों के अनुसार अधिक तापमान के कारण महासागर के पानी से भाग की मात्रा बढ़ेगी। इसका सीधा असर भारी बारिश के रूप में दिखेगा। नतीजतन नदियों का जलस्तर बढ़ेगा और लोगों का जनजीवन अस्त व्यस्त होगा।
नदियों का बहाव बदल रहा रहा है
डॉ. राव की टीम ने अपने इस अध्ययन में उत्तरी बांग्लादेश में नदियों के बहाव के रिकॉर्ड का अवलोकन किया। इसमें पता चला कि वर्ष 1956 से 1986 के बीच 41,000 क्यूबिक मीटर जल प्रति सेकंड बह रहा था। 1987 से वर्ष 2004 बहाव की दर 43 हजार क्यूबिक मीटर दर्ज किया गया। अध्ययन में 1998 में बांग्लादेश में आए सबसे भयावह बाढ़ का भी जिक्र है जब देश का 70 फीसदी हिस्सा जलमग्न हो गया था।
बहाव का आकलन सटीक नहीं
वैज्ञानिकों के अनुसार नदियों का जो अभी जो बहाव है उस आधार पर भविष्य में उनके बहाव का आकलन कर बाढ़ या नुकसान का अंदाजा लगाना मुश्किल है। मौजूदा स्थिति के आकलन के अनुसार भविष्य के खतरे को 24 से 38 फीसदी तक कम आंका जा रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि मानव से जलवायु परिवर्तन को जो समय-समय पर नुकसान हो रहा है उसका अनुमान और नदियों के बहाव के स्तर का पता लगा पाना मुश्किल है।