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24 माह बाद लौटेगी मप्र की साख :-

करीब दो साल पहले तक देश में सुशासित और विकसित राज्यों की श्रेणी में आने वाले मप्र की साख पिछले 24 माह में इस कदर गिरी है कि वह एक बार फिर से फिसड्डी राज्यों की श्रेणी में आ गया। इसका खुलासा हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न विकास मापदंडों पर राज्यों के मूल्यांकन में हुआ है। केंद्र सरकार ने सुशासन के 10 मापदंडों के पैमानों पर राज्यों की स्थिति का आकलन किया है। उसके बाद उनकी रैंकिंग की हैं। इस रैंकिंग में जहां तमिलनाडु 62.6 प्रतिशत अंक के साथ पहले पायदान पर है, वहीं मप्र 56.4 प्रतिशत के साथ आठवें स्थान पर है। लेकिन उपचुनाव के बाद मप्र में शिवराज सरकार के मजबूत होने से यह संभावना बढ़ गई है कि प्रदेश जल्द ही अग्रणी राज्य बन जाएगा। नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमिताभ कांत कहते हैं कि मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आत्मनिर्भर मप्र का रोडमैप 2023 जारी कर यह संकेत दे दिया है कि तीन साल में मप्र देश का अग्रणीय राज्य बनेगा।

Shivraj Singh Chauhan says MP byelection should be Matter of reputation of  bjp government | MP में BJP की सरकार बनी रहे ये हमारे लिए साख की बात-शिवराज  सिंह चौहान

गौरतलब है कि 2018 तक मप्र कई क्षेत्रों में देश का अग्रणी राज्य था। लेकिन दिसंबर 2018 में कमलनाथ सरकार के गठन के बाद से प्रदेश सुशासन के मापदंड़ों पर पिछड़ता गया। जिसका परिणाम यह हुआ कि केंद्र के सुशासन मापदंडों के पैमानों पर मप्र खरा नहीं उतरा। कमलनाथ के 15 माह के कार्यकाल और उसके बाद कोरोना संक्रमण के कारण प्रदेश में विकास की गति मंथर गति से चल रही थी। ऐसे में केंद्र सरकार ने देश के सभी राज्यों की स्थिति का आकलन-कृषि एवं उससे जुड़े क्षेत्र, वाणिज्य एवं उद्योग, मानव संसाधन विकास, जन स्वास्थ्य, सार्वजनिक बुनियादी ढांचा, आर्थिक सुशासन, समाज कल्याण एवं विकास, न्यायिक एवं जनसुरक्षा, पर्यावरण और जल संसाधन प्रबंधन आदि पैमानों की कसौटी पर किया है। इन सभी रैंकिंग को एक साथ लेकर विकास की स्थिति का आकलन करने पर यह तथ्य सामने आया है कि कुछ राज्य दशकों से अविकसित हैं जबकि कुछ राज्य तेजी से विकास दर्ज कर रहे हैं। मप्र ने भी पिछले एक दशक में तेजी से विकास किया, लेकिन 2019 में यहां तेजी से गिरावट भी दर्ज की गई। लेकिन मई 2020 के बाद स्थितियां एक बार फिर अनुकूल हुई हैं।

मप्र टॉप-5 से बाहर
मप्र दो साल पहले तक केंद्र के सुशासन मापदंडों के पैमानों की कसौटी पर खरा उतरता रहा है। मप्र कई सालों तक टॉप-5 राज्यों में शामिल रहता था, लेकिन इस बार वह आठवें नंबर पर है। प्रशासनिक सूत्रों का कहना है कि प्रदेश में पिछला दो साल राजनीति उठापटक में बीता है। पहले चुनाव, फिर सरकार बचाने और गिराने का खेल चलता रहा, जिसके कारण विकासात्मक कार्यों पर ध्यान नहीं दिया गया। इस कारण मप्र की साख गिरी है। गौरतलब है कि 2005 में शिवराज सिंह चौहान ने जब मप्र की कमान संभाली थी तब मप्र देश के सबसे गरीब और पिछड़े राज्यों में शामिल था। लेकिन अपनी विकासात्मक नीति और नियत से शिवराज सिंह चौहान और उनकी सरकार ने प्रदेश की तस्वीर और तकदीर बदल दी है। इस बार की रैंकिंग में मप्र टॉप टेन से बाहर होने से इसलिए बच गया कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की नीति काम आई और प्रदेश में इस बार गेहूं की रिकार्ड खरीदी की गई। इससे प्रदेश की साख कुछ हद तक बच गई। गौरतलब है कि इस रैंकिंग के पीछे तर्क यह है कि यह राज्यों के बीच उनकी विकास प्राथमिकताओं को ठीक करने के लिए प्रतिस्पर्धा की भावना पैदा करेगा। इसके अलावा, इनमें से अधिकांश मूल्यांकन किसी विशेष विकास लक्ष्य के हिसाब से एक राज्य को रैंकिंग देते हैं। उदाहरण के लिए जल संसाधनों का विकास। इन राज्यों के भीतर, 200 एस्पिरेशनल जिलों या देश के सबसे गरीब लोगों के लिए विकास का एक सूचकांक भी है। सरकार का ध्यान सबसे गरीब जिलों पर रहा है। उनके प्रदर्शन को विकास लक्ष्यों के आधार पर नियमित रूप से सूचीबद्ध करके केंद्र सरकार विकास योजनाओं के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करना चाहती है।

सुशासन के दस मापदंडों पर राज्यों की स्थिति
केंद्र सरकार ने अपने सुशासन मापदंडों पर राज्यों की स्थिति का आंकलन किया तो यह तथ्य सामने आए कि सूचकांक में 15 राज्यों ने राष्ट्रीय औसत से नीचे स्कोर किया है। खराब प्रदर्शन करने वालों की सूची में सभी 8 पूर्वोत्तर राज्यों के साथ-साथ दिल्ली, झारखंड, उत्तरप्रदेश, बिहार और ओडिशा जैसे राज्य भी शामिल हैं। देश का औसत स्कोर 50.33 प्रतिशत रहा है। राज्यों के 10 प्रमुख क्षेत्रों- कृषि एवं उससे जुड़े मामले, व्यापार एवं उद्योग, मानव संसाधन विकास, सरकारी निर्माण, समाज कल्याण विकास, जल संसाधन प्रबंधन, आर्थिक संरचना, न्यायिक एवं जल सुरक्षा, जन स्वास्थ्य और पर्यावरण आदि के प्रदर्शन के आधार पर रैकिंग आधारित है। जिसमें 100 से अधिक संकेतक हैं। जानकारों का कहना है कि कमलनाथ सरकार के शासनकाल के दौरान विकासात्मक कार्यों के खराब प्रदर्शन के बावजुद मप्र टॉप टेन में इसलिए शामिल हो सका, क्योंकि शिवराज सिंह चौहान के शासनकाल में प्रदेश का आधार मजबूत हो गया था। अब जब एक बार फिर से शिवराज की सरकार मजबूत स्थिति में है तो प्रदेश आने वाले दिनों में बेहतर प्रदर्शन करेगा।

देश के टॉप-10 सुशासित राज्य
रैंकिंग राज्य स्कोर
1 तमिलनाडु 62.6
2 महाराष्ट्र 59.9
3 हिमाचल प्रदेश 59.5
4 गुजरात 58.6
5 आंध्रप्रदेश 58.5
6 कर्नाटक 57.4
7 हरियाणा 56.5
8 मध्यप्रदेश 56.4
9 छत्तीसगढ़ 55.4
10 केरल 54.6

कृषि ने बचाई मप्र की लाज
प्रशासनिक सूत्रों का कहना है की केंद्र सरकार द्वारा बनाई गई सुशासित रैंकिंग में मप्र की स्थिति अभी भी कई अन्य बड़े राज्यों से बेहतर इसलिए है कि कृषि एवं उससे जुड़े क्षेत्रों में मप्र का प्रदर्शन अच्छा रहा है। इस बार प्रदेश में गेहूं की बंपर पैदावार और खरीदी हुई है। सरकार ने इस साल देश में सबसे अधिक 129 लाख मीटिक टन से अधिक गेहूं खरीदा है। वहीं 13 राज्यों का स्कोर इस क्षेत्र में राष्ट्रीय औसत से कम है। खराब प्रदर्शन करने वालों की सूची में 5 पूर्वोत्तर राज्यों के साथ दिल्ली, तेलंगाना, गोवा, केरल और पंजाब शामिल हैं। इस क्षेत्र में कृषि और उससे जुड़े क्षेत्र की विकास दर, खाद्यान्न उत्पादन की वृद्धि दर, बागवानी उत्पादन की वृद्धि दर, दुग्ध उत्पादन की वृद्धि दर, मांस उत्पादन की वृद्धि दर तथा फसल बीमा के आधार पर राज्यों का आंकलन किया गया है। मप्र सभी मापदंडों पर देश में अन्य राज्यों से बेहतर रहा। इसलिए वह 7.3 स्कोर के साथ पहले पायदान पर है। जबकि राजस्थान दूसरे, छत्तीसगढ़ तीसरे, बिहार चौथे और आंध्रप्रदेश और हरियाणा 5वें स्थान पर है। प्रदेश के कृषि मंत्री कमल पटेल कहते हैं कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के मार्गदर्शन में खेती-किसानी को लाभदायद बनाने की दिशा में काम चल रहा है। इसी दिशा में प्रदेश में किसानों के खेत में उत्पादित एक-एक दाने को खरीदने की कोशिश की गई। वह कहते हैं कि आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश अभियान से प्रदेश की स्थिति और मजबूत होगी।

वाणिज्य एवं उद्योग…
यह क्षेत्र राज्य की अर्थव्यवस्था के विकास की चाबी है और इसका रोजगार और लोगों के कल्याण पर प्रभाव पड़ता है। किसी राज्य में इस क्षेत्र की वृद्धि उपलब्ध संसाधनों, नीतियों और कानूनों पर निर्भर करती है। मप्र इस श्रेणी में गुजरात, हरियाणा, प.बंगाल के साथ चौथे स्थान पर है। वहीं सुशासन रैंकिंग में 11 राज्यों का स्कोर राष्ट्रीय औसम से कम है। खराब प्रदर्शन करने वाले राज्यों की सूची में 7 पूर्वोत्तर राज्यों के साथ दिल्ली, केरल, पंजाब और गोवा शामिल हैं। इसमें औद्योगिक विकास, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों जैसे उद्योग और वाणिज्य को कवर करने वाले क्षेत्रों के पहलुओं को शामिल किया गया है। प्रशासनिक सूत्रों का कहना है कि मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने पूर्ववर्ती शासनकाल में औद्योगिक विकास के क्षेत्र में जो प्रयास किया था, उसी का परिणाम है कि आज भी प्रदेश की स्थिति वाणिज्य एवं उद्योग के क्षेत्र में अच्छी है। उनका कहना है कि पिछले 24 माह के दौरान इस क्षेत्र में कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं हुए हैं। इस कारण मप्र, गुजरात, हरियाणा, प. बंगाल के साथ 9.2 स्कोर करके चौथे स्थान पर है। जबकि आंधप्रदेश पहले, झारखंड दूसरे, छत्तीसगढ़, तेलंगाना तीसरे और कर्नाटक तथा उत्तराखंड पांचवें स्थान पर हैं।

मानव संसाधन विकास
शिक्षा की गुणवत्ता, लिंग समानता सूचकांक, प्राथमिक स्तर पर रिटेंशन दर, एससी और एसटी का नामांकन अनुपात, कौशल प्रशिक्षण की स्थिति और प्लेसमेंट अनुपात के साथ स्वरोजगार के आधार पर राज्यों की स्थिति का आकलन कर स्कोरिंग की गई है। मानव संसाधन विकास के कई संकेतकों पर मप्र की बुरी स्थिति में है। आर्थिक विकास के साथ-साथ सामाजिक विकास में भी राज्य की गति अच्छी नहीं है। यही नहीं प्रदेश में असंतुलित विकास देखने को मिल रहा है। इस क्षेत्र में सुशासन रैंकिंग में 16 राज्यों का स्कोर राष्ट्रीय औसत से कम है। खराब प्रदर्शन करने वाले राज्यों की सूची में सभी 8 पूर्वोत्तर राज्यों के साथ झारखंड, मध्यप्रदेश, प. बंगाल और राजस्थान हैं। मध्यप्रदेश 15वें नंबर पर है। इस क्षेत्र में राष्ट्रीय औसत 5.63 प्रतिशत है, जबकि मप्र की औसत 4.1 प्रतिशत है।

जन स्वास्थ्य
मप्र में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने पूर्ववर्ती शासनकाल में स्वास्थ्य सुविधाओं पर हर साल बड़ा बजट खर्च किया है। इससे प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्थाएं कुछ हद तक सुधरी हैं। लेकिन कोरोना के इस संक्रमण के दौर में स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की पोल खुल गई है। इसका परिणाम यह हुआ है कि जन-स्वास्थ्य के मामले में मप्र की स्थिति चिंताजनक है। इस श्रेणी में भारतीय औसत 5.36 प्रतिशत है। राष्ट्रीय सूचकांक में 12 राज्यों का स्कोर राष्ट्रीय औसत से कम है। खराब प्रदर्शन करने वालों की सूची में 3 पूर्वोत्तर राज्यों के साथ उप्र, मप्र, ओडिशा, राजस्थान और छत्तीसगढ़ हैं। मप्र 16वें स्थान पर है और उसका स्कोर 2.7 प्रतिशत है। राज्यों की जन-स्वास्थ्य की स्थिति की रंैकिंग के लिए वहां कि शिशु मृत्यु दर, मातृ मृत्यु दर, कुल प्रजनन दर, टीकाकरण की उपलब्धि, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ की उपलब्धता, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर 24 घंटे सुविधाओं का संचालन आदि के आधार पर आंकलन किया गया है।

सार्वजनिक बुनियादी ढांचा
राज्यों के सार्वजनिक बुनियादी ढांचे का आंकलन पीने योग्य पानी तक पहुंच, खुले में शौचमुक्त घोषित शहर, ग्रामीण आवासों के लिए संपर्क, स्वच्छ खाना पकाने के लिए ईंधन की पहुंच, बिजली आपूर्ति, 24 घंटे बिजली आपूर्ति, आवश्यकता के अनुरूप ऊर्जा उपलब्धता और प्रति व्यक्ति बिजली खपत में वृद्धि के आधार पर आंकलन किया गया है। इसमें जल आपूर्ति, सीवेज प्रबंधन, सडक़ एवं राजमार्ग जैसे सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली बुनियादी सेवाएं शामिल हैं। सतत विकास के लिए एक कुशल भौतिक बुनियादी ढांचे की उपलब्धता आवश्यक है। गौरतलब है कि इस क्षेत्र के लिए कई प्रमुख कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, जिनमें स्मार्ट सिटी और सांसद आदर्श ग्राम योजना शामिल है। सुशासन रैंकिंग में 16 राज्यों का स्कोर राष्ट्रीय औसत से कम है। खराब प्रदर्शन करने वालों की सूची में 8 पूर्वोत्तर राज्य के साथ ओडिशा, छत्तीसगढ़, झारखंड और पश्चिम बंगाल भी शामिल हैं। इस श्रेणी में मप्र दसवें पायदान पर है। लेकिन आज भी यहां की अधिकांश आबादी सार्वजनिक बुनियादी सुविधाओं से वंचित है। हालांकि प्रदेश में 15 माह बाद सत्ता में आने के बाद शिवराज सरकार ने इस दिशा में फिर से योजना बनाकर काम शुरू कर दिया है। वर्तमान समय में सार्वजनिक बुनियादी ढांचा में तमिलनाडु नंबर वन राज्य है। वहीं गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब दूसरे, दिल्ली तीसरे और मप्र 5.8 स्कोर के साथ दशवें नंबर पर है।

आर्थिक सुशासन
सुशासन रैंकिंग में 14 राज्यों का स्कोर राष्ट्रीय औसत 5.02 से कम है। खराब प्रदर्शन करने वाले उत्तर पूर्व के 6 राज्यों के साथ पंजाब, झारखंड, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश शामिल हैं। आर्थिक सुशासन का आंकलन राज्य के प्रतिव्यक्ति सकल घरेलू उत्पादन में वृद्धि (जीएसडीपी), जीएसडीपी के प्रतिशत के रूप में राजकोषीय घाटा, राज्य का अपना कर राजस्व, जीएसडीपी को ऋण के आधार पर आंकलन किया गया। पिछले 20 महिने में प्रदेश हर क्षेत्र में देश के दूसरे प्रदेशों की तुलना में काफी पिछड़ा है। राज्य की सामाजिक आर्थिक विकास की समीक्षा करने पर स्थिति स्पष्ट है कि प्रदेश मानव विकास के मानकों पर देश एवं समान परिस्थितियों वाले राज्यों की तुलना में पिछड़ रहा है। गरीबी उन्मूलन आकड़े और स्वास्थ्य सूचकांकों को राष्ट्रीय स्तर के समकक्ष लाना एक प्रमुख चुनौती है। सर्वेक्षण के अनुसार शिक्षा और पोषण के क्षेत्र मे भी राज्य की स्थिति बेहतर नहीं है। इस श्रेण में मप्र 11वें स्थान पर है। प्रदेश में प्रति व्यक्ति आय देश एवं समान परिस्थिति वाले राज्यों की तुलना में कम है। मप्र को कम प्रति व्यक्ति आय वाले राज्यों की श्रेणी में रखा जाता है। देश के प्रमुख राज्यों में बिहार, झारखंड, ओडि़सा और उत्तर प्रदेश को छोडक़र शेष राज्यों की प्रति व्यक्ति आय मप्र से अधिक है। देश में गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाले व्यक्तियों का अनुपात 21.92 प्रतिशत और मप्र में 31.65 प्रतिशत है। देश में उत्तर प्रदेश और बिहार राज्यों को छोडक़र मप्र में सर्वाधिक लोग गरीबी रेखा के नीचे है, जिनकी संख्या दो करोड़ 34 लाख है।

समाज कल्याण एवं विकास
इस श्रेणी में जहां छत्तीसगढ़ पहले स्थान पर है, वहीं मप्र दूसरे स्थान पर। यह इस बात का संकेत है कि मप्र में इस दिशा में बेहतर काम हुआ है। इस क्षेत्र की रैंकिंग में 14 राज्यों का स्कोर राष्ट्रीय औसत से कम है। खराब प्रदर्शन करने वाले उत्तर पूर्व के 4 राज्यों के साथ दिल्ली, हरियाणा, गोवा और बिहार शामिल हैं। सुशासन की रैंकिंग जन्म के समय लिंग अनुपात, स्वास्थ्य बीमा कवरेज, ग्रामीण रोजगार गारंटी, बेरोजगारी अनुपात सभी के लिए घर, महिलाओं का आर्थिक सशक्तिकरण, एससी, ओबीसी और अल्पसंख्यकों का सशक्तिकरण तथा न्यायालयों द्वारा एससी-एसटी अत्याचार मामलों का निपटान के आधार पर की गई है।

न्यायिक एवं जनसुरक्षा
इस क्षेत्र में राष्ट्रीय औसत 3.76 प्रतिशत है। सुशासन रैंकिंग में 15 राज्यों का स्कोर राष्ट्रीय औसत से कम है। खराब प्रदर्शन करने वाले उत्तर पूर्व के 2 राज्यों के साथ बिहार, प. बंगाल, तेलांगना और उत्तर प्रदेश शामिल हैं। वहीं मप्र 8वें स्थान पर है। इस श्रेणी में अपराध दर, पुलिसकर्मियों की उपलब्धता, पुलिसकर्मियों में महिलाओं का हिस्सा, अदालती मामलों का निपटान, उपभोक्ता अदालतों में मामलों का निपटान, सार्वजनिक सुरक्षा, पुलिस प्रशासन, जेल और अग्नि सुरक्षा आदि के आधार पर राज्यों की रैंकिंग की गई है। मप्र में गवर्नेंस की हकीकत एनसीआरबी के आंकड़े हर साल बयां करते हैं। मुख्यमंत्री शिवराज हर मंच से प्रदेश में कानून-व्यवस्था को दुरूस्त करने का आश्वासन देते हैं, लेकिन एक बड़ा वर्ग मानता है कि प्रदेश में कानून-व्यवस्था की हालत कुछ ठीक नहीं है। प्रदेश में बलात्कर की घटनाएं ऐसा कलंक बन गई हैं कि उससे मुक्ति मिलना तो दूर की बात है उसमें लगातार बढ़ोतरी हो रही है। स्थिति यह है कि मुख्यमंत्री की धमकियां भी काम नहीं आ रही हैं। भ्रष्टाचार तो प्रदेश में शिष्टाचार बन गया है। एक बार फिर प्रदेश में सरकार ने जनसुरक्षा को प्राथमिकता में रखा है। इसके लिए पुलिस विभाग को फ्रीहैंड दे दिया गया है।

पर्यावरण
केंद्र सरकार ने सुशासित राज्यों की रैंकिंग के लिए वहां के पर्यावरण का भी आकलन किया है। इस श्रेणी की रैंकिंग में 4 राज्यों का स्कोर राष्ट्रीय औसत से कम है। खराब प्रदर्शन करने वाले राज्यों में गोवा, दिल्ली, आंध्रप्रदेश और तेलंगाना शामिल हैं। 6.3 प्रतिशत स्कोर के साथ प.बंगाल पहले नंबर पर, 5.9 प्रतिशत के साथ केरल दूसरे, 5.8 प्रतिशत के साथ तमिलनाडु तीसरे, 5.6 प्रतिशत के साथ बिहार-ओडिशा चौथे, 5.5 प्रतिशत के साथ गुजरात-झारखंड-कर्नाटक-पंजाब-राजस्थान-आंध्रप्रदेश और हिमाचल प्रदेश पांचवे स्थान पर, 5.4 प्रतिशत के साथ छग-हरियाणा-मप्र-महाराष्ट्र-उत्तराखंड छठे, 4.9 प्रतिशत के साथ तेलंगाना सातवे, 4 प्रतिशत के साथ आंध्रप्रदेश आठवें, 1.7 प्रतिशत के साथ दिल्ली नौवे, और 1.4 प्रतिशत के साथ गोवा 10वें स्थान पर है। इसके तहत राज्यों की रैंकिंग का आंकलन पर्यावरण संरक्षण, प्राकृतिक संसाधनों का सतत् विकास और नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने के आधार पर किया गया है। साथ ही जंगलों के आवरण में परिवर्तन के आधार पर भी आंकलन किया गया है।

जल संसाधन प्रबंधन
केंद्र सरकार ने राज्यों की रैंकिंग के लिए वहां के जल संसाधन प्रबंधन को भी आधार बनाया है। जल प्रबंधन तो इसके अंदर आता ही है, साथ ही साथ सतह एवं भू-जल के जल मानकों पर भी नजर रखी जाती है। पिछले कुछ वर्षों में भारत में भू-जल पुनर्भरण पर केंद्रित कई परियोजनाओं को लागू किया है, जो कृषि और सूक्ष्म सिंचाई जैसी प्रौद्योगिकियों के उपयोग के लिए जिम्मेदार हैं। सुशासन रैंकिंग में 14 राज्यों का स्कोर राष्ट्रीय औसत से कम है। खराब प्रदर्शन करने वाले उत्तरपूर्व के 7 राज्यों के साथ प. बंगाल, झारखंड और बिहार शामिल हैं। इसके तहत राज्यों की रैंकिंग का आंकलन स्रोत वृद्धि और जल निकायों की बहाली, वाटरशेड विकास, ग्रामीण पेयजल, शहरी जलापूर्ति और स्वच्छता तथा नीति और सुशासन के आधार पर किया गया है। मप्र इस श्रेणी में तीसरे स्थान पर है। फिर भी यहां कि अधिकांश नलजल परियोजनाएं या तो अधूरी हैं या बंद पड़ी है। वहीं फिर से सत्ता में आने के बाद शिवराज सरकार ने इस दिशा में काम शुरू कर दिया है।
प्रदेश में ग्रामीण परिवारों को पेयजल उपलब्ध कराने के लिए केंद्र सरकार ने जल जीवन मिशन के तहत 2020-21 के लिए 1280 करोड़ रुपए की मंजूरी दी है।

तीन साल में देश का अग्रणीय राज्य बनेगा मप्र
छह माह के लंबे मंथन के बाद शिवराज सरकार ने आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश का रोडमैप 2023 जारी किया है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का कहना है कि यह चुनौती को अवसर में बदलने का रोडमैप है। इसमें दावा किया गया है कि किसानों की आय दोगुनी करने के साथ रोजगार के मौके बढ़ाए जाएंगे। इसके लिए निवेश को बढ़ावा देने के साथ कृषि को प्रसंस्करण से जोड़ा जाएगा। मुख्यमंत्री के अनुसार चंबल (अटल प्रोग्रेस वे) एक्सप्रेस वे और नर्मदा एक्सप्रेस वे सिर्फ सडक़ ही नहीं बल्कि विकास के मार्ग होंगे। इनके दोनों ओर औद्योगिक पार्क विकसित किए जाएंगे। भोपाल-इंदौर एक्सप्रेस वे को आदर्श बनाया जाएगा। निवेश को बढ़ावा देने के साथ जरूरी धनराशि का इंतजाम बजट के बाहर से किया जाएगा। मुख्यमंत्री कहते हैं कि रोडमैप के क्रियान्वयन को लेकर लगातार समीक्षा होगी। प्रत्येक तीस दिन में विभागों को रिपोर्ट देनी होगी। इसके आधार पर मैं समीक्षा करूंगा। खेती को प्रसंस्करण से जोडक़र आर्थिक उन्नति लाई जाएगी। ओंकारेश्वर जलाशय में सोलर पैनल के माध्यम से बिजली बनाई जाएगी। सिंचाई के लिए जल की एक-एक बूंद का उपयोग करेंगे। किसानों को कल्याण निधि दी जाएगी। गरीबों का राज्य के संसाधन पर बराबरी का हक होगा। बजट में जिसकी जितनी आबादी, उसकी उतनी हिस्सेदारी का फार्मूला लागू किया जाएगा। स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के साथ महिला सशक्तिकरण पर ध्यान दिया जाएगा। मानसून में पर्यटन को बढ़ाने के लिए बफर में सफर को बढ़ावा दिया जाएगा। अमरकंटक, रामायण सर्किट, तीर्थंकर सर्किट, नर्मदा परिक्रमा, ग्रामीण सर्किट जैसी थीम पर पर्यटन सर्किट विकसित किए जाएंगे। नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमिताभ कांत कहते हैं कि जब सभी राज्यों का ध्यान कोरोना महामारी पर ही था, तब मप्र ने प्रदेश को आत्मनिर्भर बनाने का रोडमैप बनाया। इसके परिणाम हमें आने वाले दिनो में देखने को मिलेंगे। यह विकास का रोडमैप है। मप्र देश के केंद्र में है और यहां लॉजिस्टक हब तैयार किया जा सकता है। निजी क्षेत्र के सहयोग से विकास पर फोकस किया है। मुझे उम्मीद है कि तीन साल में रोडमैप को लागू करके प्रदेश देश के अग्रणी राज्यों में शुमार होगा।

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