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लखनऊ SGPGI के डॉक्टर ने किया कमाल अब जाने कितने में होगी कैंसर की जांच

शरीर में गांठ हैं। गांठ कैंसरस है या नहीं, सिर्फ यह पता करने में ही तीमारदारों की चप्पलें घिस जाती हैं। जांच बड़े अस्पतालों में होती है, इसलिए पैसा भी काफी खर्च होता है। लखनऊ स्थित एसजीपीजीआई के डॉ. गौरव अग्रवाल की एक खोज अब इस प्रक्रिया को बहुत आसान बनाने जा रही है और कीमत भी महज 22 रुपये आएगी।

फ्लोरोसेंट डाई की मदद से होने वाली इस जांच को प्रशिक्षण के बाद छोटे अस्पताल भी आसानी से कर सकेंगे। इस संबंध में डॉ. अग्रवाल का शोधपत्र ‘वर्ल्ड जर्नल ऑफ सर्जरी’ के अक्टूबर के अंक में प्रकाशित हुआ है। इस खोज के लिए सीएम योगी आदित्यनाथ उन्हें सम्मानित भी कर चुके हैं।

इंडोक्राइन ब्रेस्ट कैंसर के डॉ. गौरव अग्रवाल ने बताया कि अमूमन ब्रेस्ट कैंसर की जांच के लिए गामा प्रोब मशीन की जरूर होती है जो टिश्यू में कैंसर सेल्स का पता करती है। मशीन की कीमत 7.50 लाख रुपये है। हमने फ्लोरेसेंट डाई के जरिए संभावित कैंसर सेल्स का पता लगाने की कोशिश की। हम यह डाइ ब्रेस्ट कैंसर के ट्यूमर में इंजेक्ट करते हैं। ब्रेस्ट कैंसर जब फैलता है तो अक्सर लिंफनोड आर्मपिट तक पहुंच जाता है। इससे हाथ में सूजन तक आ जाती है।

यह डाई इंजेक्ट होने के बाद उन सेल्स तक पहुंच जाती है, जहां तक कैंसर फैला होता है। इसके बाद हम चीरा लगाकर ब्लू लाइट डालते हैं। ब्लू लाइट में यह डाई चमकती है। इससे हमें कैंसर प्रभावित संभावित हिस्से का पता चल जाता है। दूसरी जांच के बाद हम उन लिंफनोट को निकाल देते हैं।

डॉ. गौरव ने बताया कि पहले हम इस जांच में कमर्शल डाई का प्रयोग करते थे, जो विदेश से मंगवाई जाती थी। उसकी कीमत 6 हजार रुपये प्रति मरीज होती थी। इसके बाद भाभा एटॉमिक सेंटर से हमे डाई मिलने लगी, जिसकी कीमत 700 से 800 रुपये प्रति मरीज पड़ने लगी। इसके बाद अपनी रेडियोफार्मास्यूटिकल डाई बनाई जिसका खर्च 50 रुपये प्रति मरीज आने लगा।

उस डाई के प्रयोग के बाद भी न्यूक्लियर मेडिसिन और गामा प्रोब जैसी मशीनों की जरूरत पड़ती थी। इससे जांच का खर्च बढ़ जाता था। इसके बाद हमने फ्लोरोसेंट डाई का प्रयोग शुरू किया। इसका खर्च महज 22 रुपये प्रति मरीज आता है। इस प्रक्रिया में न्यूक्लियर मेडिसिन और गामा प्रोब मशीन की जरूरत भी नहीं पड़ती है।

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