आइये जानते है अरुण जेटली जयंती पर कुछ खास बाते। ….
पांच साल पहले भारतीय जनता पार्टी में इस बात को लेकर बहस जारी थी कि चुनावों में प्रधानमंत्री के चेहरे के रूप में किसका चेहरा चुना जाए, लालकृष्ण आडवाणी या नरेंद्र मोदी ?
तब आडवाणी और मोदी दोनों जिस व्यक्ति की राय का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे, कहा जाता है वो अरुण जेटली थे. जेटली ने मोदी के पक्ष में राय ज़ाहिर की और आडवाणी के साथ भी उनके संबंध हमेशा अच्छे बने रहे. कभी अटल बिहारी वाजपेयी के खासों में गिने गए जेटली, पहली मोदी सरकार में बेहद ताकतवर रहे.
अगर आपसे पूछा जाए कि पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री व भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी, पूर्व केंद्रीय मंत्री व कांग्रेस नेता माधवराव सिंधिया और जदयू नेता शरद यादव के बीच में कौन सा नाम है, जो कॉमन है.
आप याददाश्त पर ज़ोर डालेंगे तो याद आएगा कि अरुण जेटली जब वकालत करते थे, तो इन तीनों के लिए वकील रह चुके थे. इसी तरह, ये भी याद आएगा कि पेप्सी और कोक की गलाकाट प्रतिस्पर्धा के बीच जेटली ही पुल बने थे. आखिर जेटली सबसे अच्छे संबंध बनाए रखने में कैसे कामयाब रहे.
राजनीतिक गलियारों में 2014 के बाद ये चर्चा आम रही थी कि मोदी पीएम ज़रूर हैं, लेकिन असल में, सरकार जेटली चला रहे थे. वाजपेयी सरकार में जूनियर होने के बावजूद एक साल के भीतर कैबिनेट में जगह बनाने में सफल रहे जेटली पहली मोदी सरकार में रक्षा और वित्त दोनों मंत्रालय संभाल रहे थे.
उस समय एक सर्वे में ये दावा भी किया गया था कि मोदी के बाद जेटली ही देश के दूसरे सबसे ताकतवर व्यक्ति थे. इन तमाम कारणों से उस वक्त ‘जेटली सरकार’ जुमला सियासी हलकों में बड़ा चर्चित था.
जेटली का नाम विकिलीक्स विवादों में तब आया था जब एक राजनयिक के बयान के आधार पर कहा गया था कि जेटली ने भाजपा के ‘हिंदुत्ववादी राष्ट्रवाद’ को अवसरवादी करार दिया था. इस बयान ने ज़रा देर में ही विवाद का रूप ले लिया था और कई लोगों ने तात्कालिक टिप्पणी कर जेटली को कठघरे में खड़ा किया था.
यहां तक कि संघ ने भी जेटली पर आंखें तरेरी थीं. इसके बावजूद जेटली का भाजपा से कोई बाल बांका नहीं कर सका. कुछ ही समय में जेटली के साथ ही भाजपा खड़ी दिखाई दी और कहा गया कि जेटली के नाम से जारी किया गया यह बयान मनगढ़ंत था.
पहले तो कांग्रेस के दिग्विजय सिंह ने जेटली पर उंगली उठाई लेकिन बाद में, उन्होंने कहा कि केजरीवाल अगर सबूत दे सकते हैं तो दें, वरना आरोप लगाने से बचें.
इसके साथ ही, इस मामले में वीरेंद्र सहवाग, गौतम गंभीर और विराट कोहली जैसे दिग्गज क्रिकेटर भी जेटली के बचाव में आए थे और आखिरकार मोदी ने भी जेटली का पूरा साथ दिया था.
जेटली उन गिने-चुने नेताओं में शुमार रहे हैं, जिन्हें समर्थकों और विरोधियों का बराबर साथ या समर्थन मिलता रहा. जिन समाचार चैनलों को भाजपा का विरोधी भी माना जाता रहा, उनमें से भी कई ने मौके पर जेटली के समर्थन में कवरेज दिया.
सियासी हलकों में कहा जाता था कि सोनिया गांधी का मीडिया मैनेजमेंट बेहद ज़बरदस्त था. मीडिया ने शायद ही कभी सोनिया गांधी के खिलाफ कोई मुहिम छेड़ी हो. लेकिन, अगर आप गौर करें तो यही बात जेटली के लिए भी सटीक रही.