नामी-गिरामी कंपनियों के नाम पर नकली सामग्री निर्माण करनेवाले सरगना दिन दूनी रात चौगुनी प्रगति के पथ पर हैं। पुलिस की गतिविधियों पर नजर रखनेवाले नक्काल गिरोह के सदस्य छापामारी की सूचना लीक होने से साफ तौर पर बच जाते हैं। नकली सामग्री के खिलाफ छापेमारी मामलों में फैक्ट्री में काम करनेवाले गरीब तबके के लोग ही गिरफ्तार कर जेल भेज दिए जाते हैं।
हाल ही में चार दिसंबर को दीदारगंज थाना के फतेहपुर में मुंगेर मेड पिस्टल निर्माण के दौरान पुलिस ने फैक्ट्री में काम करनेवाले आधा दर्जन कारीगरों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। फैक्ट्री का दोनों सरगना आजतक गिरफ्त से दूर है। अनुमंडल के मेहंदीगंज , खाजेकलां, चौक, बाईपास, मालसलामी, आलमगंज, सुलतानगंज क्षेत्र में डेढ़ दशक के दौरान सौ से अधिक नकली सामग्री निर्माण की फैक्ट्री का उद्भेदन पटना पुलिस द्वारा किया गया। अधिकतर मामलों के उद्भेदन कम्पनी के निगरानी अधिकारियों की सूचना के बाद ही हुआ। पटना पुलिस से सरगनाओं की गिरफ्तारी के संबंध में पूछे जाने पर एक जुमला वर्षों से सुनने को मिल रहा है कि छापेमारी जारी है शीघ्र गिरफ्तारी होगी। सबके जेहन में एक ही सवाल कौंधता है कि आखिर सरगना को आसमान उड़ा ले गया या जमीन निगल गई?
सूत्रों ने बताया कि नक्कालों के खिलाफ छापेमारी के बाद सरगना से लेन-देन का दौर आरंभ होता है। मैनेज होने के बाद एक सम्मानित राशि भुगतान के बाद सरगना सामने रहकर भी संबंधित थाना को नजर नहीं आता है। उस समय सबके जेहन में एक ही सवाल कौंधता है कि आखिर सरगना के साथ नजर का फेर क्यो?
वर्ष 2004 में मेहंदीगंज थाना क्षेत्र में चार करोड़ के नकली स्टांप पकड़े जाने मामले में सरगना आज भी गिरफ्त से दूर है। वहीं आलमगंज थाना में वर्ष 2005 में नकली नोट मामले में उत्तर प्रदेश के सरगना को पुलिस नहीं खोज सकी। वर्ष 2007 में सुलतानगंज थाना के शाहगंज में 40 लाख के नकली पुस्तक बरामदगी मामले में सरगना आजतक पुलिस गिरफ्त से दूर है। कई उदाहरण हैं जिनमें नकली सामान की बरामदगी तो होती है लेकिन सरगना दूसरी जगह अपना धंधा चलाकर दिन दुनी रात चौगुनी कमाई करते हैं। नक्कालों की करतूत ने जहां कई परिवारों की जिदंगी तबाह कर दी है वहीं एक तबका आबाद है।