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पहली किसान रेल से अब तक के सफर को लेकर किसानों ने साझा किया अपना अनुभव

महाराष्ट्र में सोलापुर जिले के किसान बालकृष्ण मारुति येलपले अनार की खेती करते हैं। पहले इनके अनार मुंबई, विजयवाड़ा, हैदराबाद, पुणो जैसे 500-600 किमी. दूर तक के ही बाजारों में जा पाते थे। क्योंकि इससे दूर भेजने में उपज के सड़ जाने या खराब हो जाने का खतरा तो था ही, फसल की कीमत से ज्यादा तो भाड़ा ही लग जाता था। पिछले कुछ महीनों से सोलापुर के सांगोला तालुका से पश्चिम बंगाल के शालीमार के बीच चल रही किसान रेल ने उनकी मुसीबतें दूर कर दी हैं। अब कम भाड़े में अपने अनार वह बंगाल के बाजारों तक पहुंचा रहे हैं। अच्छी गुणवत्ता का उत्पाद वहां तक सुरक्षित पहुंच जाने से उन्हें कीमत भी अच्छी मिल रही है। सीधे शब्दों में कहें तो किसान रेल ने जिंदगी को एक नई राह दिखा दी है।

बालकृष्ण की मानें तो ट्रक से माल भेजने में हजार दिक्कतें थीं। एक तो ट्रक वाले कम माल ले जाने को तैयार ही नहीं होते थे। माल कितना भी भेजो उनका भाड़ा तो निश्चित ही रहेगा। ज्यादा भाड़ा कमाने के चक्कर में ट्रक वाले दूसरों का माल भी उसी ट्रक में लादते थे। इससे सड़ने वाले फल दब कर खराब होने लगते थे। सड़क मार्ग से जाने में समय तो ज्यादा लगता ही है। ड्राइवर सो गया, या ट्रक में कोई खराबी आ गई तो नुकसान ही नुकसान। अब बालकृष्ण जैसे हजारों किसान किसी भी मात्र में अपने फल या सब्जियां किसान रेल से बुक करवाकर भेज सकते हैं। यह माल उक्त रेल मार्ग के किसी भी निर्धारित स्टेशन पर उतारा जा सकता है।

सांगोला-शालीमार के बीच फिलहाल सप्ताह में दो किसान ट्रेनें रवाना होती हैं और महाराष्ट्र के विभिन्न हिस्सों से अन्य राज्यों के लिए चार किसान ट्रेनें चल रही हैं। दो दिन पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सांगोला से शालीमार के लिए चलने वाली किसान रेल की 100वीं फेरी को हरी झंडी दिखाई। यह ट्रेन 2,132 किमी. की दूरी तय करने में सिर्फ 40 घंटे का समय लेती है। इस ट्रेन से सांगोला के अनार, नागपुर के संतरे, जेऊर, बेलवंडी एवं कोपरगांव के खरबूजों की सीधी पहुंच पश्चिम बंगाल एवं पूवरेत्तर के बाजारों तक हो गई है। अब महाराष्ट्र से ऐसी एक नहीं, चार किसान ट्रेनें चल रही हैं। सांगोला के ही एक अन्य किसान का कहना है कि इस ट्रेन ने तो किसानों की किस्मत ही बदल दी है।

मध्य रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी शिवाजी सुतार बताते हैं कि पिछले बजट में जब वित्तमंत्री ने देश के विभिन्न हिस्सों से किसान रेल चलाने के संकेत दिए थे, तभी से इसके संभावित मार्गो पर विचार किया जाने लगा था। कोविड-19 लॉकडाउन शुरू हो जाने के कारण तैयारियों को कुछ झटका जरूर लगा, लेकिन काम नहीं रुका। चूंकि उत्तर महाराष्ट्र का नासिक क्षेत्र फल एवं सब्जियों के उत्पादन में आगे है। इसलिए पहली किसान रेल इसी क्षेत्र से चलाने की योजना बनी। नासिक के निकट का देवलाली स्टेशन इसकी शुरुआत के लिए चुना गया और सात अगस्त को देवलाली से बिहार के दानापुर के लिए पहली किसान ट्रेन को रेलमंत्री पीयुष गोयल एवं कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने हरी झंडी दिखाई। पहली ट्रेन से 10 पार्सल वैन में 92 टन के आसपास माल भेजा गया। दो सप्ताह के अंदर ही इस ट्रेन को दानापुर के बजाय मुजफ्फरपुर तक बढ़ा दिया गया। यह शुरू तो साप्ताहिक सेवा के रूप में हुई थी लेकिन जल्दी ही यह सप्ताह में दो दिन और फिर सप्ताह में तीन दिन चलने लगी है।

सांगोला के अनार उत्पादक किसानों की ओर से भी किसान ट्रेन की मांग उठी तो इसी ट्रेन की एक लिंक ट्रेन भी पहले सांगोला से चलाई गई। अब सांगोला से शालीमार के लिए पृथक ट्रेन ही शुरू हो चुकी है। देवलाली से चलनेवाली ट्रेन का सफल प्रयोग देख केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने अपने क्षेत्र नागपुर से दिल्ली के आदर्श नगर को जोड़नेवाली एक किसान ट्रेन भी शुरू करवा दी। इस ट्रेन से नागपुर के संतरे एक निश्चित समय सीमा के अंदर दिल्ली सहित उत्तर भारत के बाजारों तक पहुंचने लगे हैं। शिवाजी सुतार के अनुसार किसान ट्रेन की पहली फेरी से 100वीं फेरी तक 27 हजार टन फल एवं हरी सब्जियों की ढुलाई हो चुकी है। ये मल्टी कमोडिटी ट्रेनें फूल गोभी, शिमला मिर्च, पत्ता गोभी, सहजन की फली (ड्रमस्टिक), मिर्च, प्याज आदि सब्जियों के साथ-साथ अंगूर, संतरा, अनार, केला आदि फलों का परिवहन कर रही हैं। अधिक मात्र में तो किसान कितना भी माल बुक कर ही सकते हैं। कम मात्र में तीन किलो अनार एवं 17 दर्जन अंडे तक इस ट्रेन से बुक किए जा चुके हैं।

पिछले एक माह में 1100 टन से अधिक अनार का परिवहन पश्चिम महाराष्ट्र से पश्चिम बंगाल के लिए किया जा चुका है।सड़क मार्ग की तुलना में रेल मार्ग का किराया वैसे भी कम होता है। इसमें भी जल्दी खराब होने वाले फलों एवं सब्जियों की ढुलाई पर खाद्य प्रसंस्करण विभाग की ओर से किराए में 50 फीसद अनुदान भी दिया जा रहा है। शिवाजी सुतार के अनुसार सांगोला से शालीमार तक सड़क मार्ग से प्रति टन भाड़ा 6,700 रुपये होता है। वहीं एक टन माल रेल मार्ग से 5,050 रुपये में भेजा जा सकता है। अनुदान के साथ किसानों का खर्च सिर्फ 2,575 रुपये आ रहा है। जबकि नागपुर से शालीमार तक संतरा भेजने का खर्च तो अनुदान के साथ 1,730 रुपये प्रति टन ही आता है। चूंकि इन ट्रेनों का टाइम टेबल निश्चित है। इसलिए माल भी निर्धारित अवधि के अंदर ही पहुंच जाता है। रेलवे के मुताबिक बड़े स्टेशनों पर जहां ट्रेन ठहरती है, वहां के किसानों को कितना फायदा हो रहा है इसका आकलन अभी नहीं हुआ है। बावजूद इसके यह माना जा सकता है इससे भारत के अंदरूनी हिस्सों के किसानों की स्थिति सुधरेगी। डीजल की खपत कम होने से पर्यावरण का नुकसान भी कम होगा और विदेशी मुद्रा भी बचेगी।

 

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