देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की पुण्यतिथि आज
देश के दूसरे प्रधानमंत्री और ‘जय किसान, जय जवान’ का नारा देने वाले लाल बहादुर शास्त्री की आज पुण्यतिथि है. 11 जनवरी 1966 को उनका निधन हो गया था.
अपनी साफ सुथरी छवि और सदागीपूर्ण जीवन के प्रसिद्ध शास्त्री ने प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद नौ जून 1964 को प्रधानमंत्री का पदभार ग्रहण किया था.
वो करीब 18 महीने तक देश के प्रधानमंत्री रहे. उनके नेतृत्व में भारत ने 1965 की जंग में पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी. ताशकन्द में पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के साथ युद्ध समाप्त करने के समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद 11 जनवरी 1966 की रात में रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई.
लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 मुगलसराय में हुआ था. उन्होंने काशी विद्यापीठ से अपनी पढ़ाई पूरी की. 1928 में उनका विवाह ललिता से हुआ. उनके कुल 6 बच्चे हुए. दो बेटियां-कुसुम और सुमन. चार बेटे-हरिकृष्ण, अनिल, सुनील और अशोक. उनके दो बेटों का निधन हो चुका है.
स्वतंत्रता संग्राम में लाल बहादुर शास्त्री कई बार शास्त्री भी गए. 1930 में हुए ‘नमक सत्याग्रह’ के चलते उन्हें ढाई साल जेल में रहने पड़ा. इसके बाद फिर स्वतंत्रता आंदोलन की वजह से उन्हें 1 साल जेल की सजा हुई.
1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उन्हें 4 साल तक जेल में रहने पड़ा. बाद में 1946 में उन्हें जेल से रिहा किया गया था. कुल मिलाकर करीब 9 बार शास्त्री जेल गए.
देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के निधन के बाद लाल बहादुर शास्त्री देश के दूसरे पीएम बने और उन्होंने देश को जय जवान जय किसान का नारा दिया.
पीएम नेहरू के बाद प्रधानमंत्री पद की दौड़ मे लाल बहादुर शास्त्री और मोरारजी देसाई का नाम सबसे आगे था लेकिन देश को शास्त्री जी प्रधानमंत्री के रूप में मिले और उन्होंने इस पद को बखूबी निभाया.
9 जून 1964 को लाल बहादुर शास्त्री ने भारत के प्रधानमंत्री की शपथ ली थी और अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने देश की विकास यात्रा को आगे बढ़ाने का काम किया.
पाकिस्तान से युद्ध के दौरान ही देश में अनाज की भारी कमी थी. तभी देश का हौसला बुलंद करने के लिए शास्त्री ने ‘जय जवान, जय किसान ‘ का नारा भी दिया था. अन्न की कमी से जूझ रहे देश को पटरी पर लाने के लिए उन्होंने एक समय भूखे रहने की अपील भी की थी जिसे पूरे देश ने माना.
1965 के युद्ध के दौरान शास्त्री राष्ट्रीय हीरो बन चुके थे. बाद में अमेरिका के हस्तक्षेप के बाद भारत पर युद्ध समाप्त करने के समझौते का दबाव पड़ने लगा. शास्त्री को रूस बुलवाया गया.
समझौता वार्ता के दौरान शास्त्री ने सारी शर्ते मानीं लेकिन वो पाकिस्तान को जमीन लौटाने को तैयार नहीं थे. उन पर दबाव बनाकर 10 जनवरी, 1966 को ताशकंद समझौते के दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करा लिये गए. इसके कुछ घंटे बाद 11 जनवरी 1966 की रात में ही उनकी मृत्यु हो गई.