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पोंगल का चौथा व आखिरी दिन आज जाने पूजा-अर्चना के बारे में। ….

आज पोंगल का चौथा और आखिरी दिन है. इसे कन्नुम पोंगल कहा जाता है. कन्नुम पोंगल के दिन पूरा परिवार साथ एकत्र होकर स्वादिष्ट भोजन का लुत्फ़ उठाता है और सब एक दूसरे से मिलने जाते हैं.

तमिलनाडु में मनाया जाने वाला पोंगल का त्योहार चार दिनों तक चलता है. यह त्योहार साल की शुरुआत में मनाया जाता है जब धान की फसल की रोपाई की जाती है. आइए जानते हैं कन्नुम पोंगल के बारे में ख़ास बातें.

पोंगल त्योहार के चौथे और आखिरी दिन कन्नुम पोंगल पूरे हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है. तमिल भाषा के शब्द ‘कन्नुम पोंगल’ का शाब्दिक अर्थ है यात्रा करता.

ऐसे में कन्नुम पोंगल के दिन लोग अपने करीबियों और रिश्तेदारों के घर जाते हैं और एक दूसरे को शुभकामनाएं भी देते हैं. यही वजह है कि पोंगल के आखिरी दिन कन्नुम पोंगल की काफी महिमा है.

दक्षिण भारत में मनाए जाने वाले कन्नुम पोंगल को ‘तिरुवल्लुवर दिवस’ भी कहा जाता है. कन्नुम पोंगल ‘तिरुवल्लुवर’ नाम के एक प्राचीन और प्रसिद्ध तमिल लेखक, कवि और दार्शनिक की याद के रूप में मनाते हैं.

तिरुवल्लुवर अपनी किताब ‘थिरुकुरल’ के लिए काफी मशहूर था. तमिल में मनाए जाने वाले त्योहार कन्नुम पोंगल और कन्नी पोंगल दोनों एक ही दिन पड़ते हैं लेकिन दोनों को मनाने का तरीका बिल्कुल अलग है.

कन्नुम पोंगल में जहां लोग एक दूसरे के घर जाकर मिलते हैं और शुभकामनाएं देते हैं वहीं कन्नी पोंगल का त्योहार फसल की अच्छी पैदावार की ख़ुशी को व्यक्त करने के लिए मनाया जाता है.

कन्नुम पोंगल के लिए तमिलनाडु के कुछ गांवों में किसान 7 कुंवारी देवी की पूजा-अर्चना करते हैं. इन्हें सप्त कनिमार भी कहते हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सप्त कनिमार की पूजा अर्चना करने

से किसानों की कृषि भूमि पर देवी की कृपा और आशीर्वाद बना रहता है पूजी जाने वाली ये कंवारी देवियां दरअसल, अविवाहित लड़कियां होती हैं. इन्हें वस्त्र और गहने भी भेंट किए जाते हैं.

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