इसी के तहत ब्रिटिश शासकों ने इस पहाड़ी के खिसकने की दर पर सतत नजर रखने की व्यवस्था की थी। इसके लिए पहाड़ी पर विभिन्न स्थानों पर पिलर लगाए थे और लोक निर्माण विभाग इनके अपने स्थान से विस्थापन का नियमित वार्षिक लेखा जोखा और आवश्यक सावधानी रखता था। साठ के दशक के बाद यह व्यवस्था बंद कर दी गई हालांकि ये पिलर इस पहाड़ी पर चंद वर्ष पूर्व तक भी बने हुए थे। आश्चर्य की बात है कि तकनीक के अभाव में भी ब्रिटिशर्स ने अद्भुत देसी तकनीक विकसित कर रखी थी और आज सेटेलाइट युग में इस पर नजर रखने की कोई व्यवस्था नहीं है जबकि खतरा कई गुना बढ़ गया है।
लापरवाही का इससे बड़ा उदाहरण क्या होगा कि माल रोड के किनारे खड़े स्ट्रीट लाइट के पोल दशकों से खिसक कर झील की ओर झुक कर 2004 में गिर गए थे लेकिन शासन प्रशासन ने इसकी अनदेखी की। दो दशक पूर्व इंटैक, इंडियन नेशनल ट्रस्ट फ़ॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज ने भूगर्भ विशेषज्ञ मनोज कुमार से विस्तृत सर्वे करवाया था।
उन्होंने लाइब्रेरी से बोट स्टैंड तक के क्षेत्र को बहुत संवेदनशील बताते हुए झील के किनारों को सपोर्ट दिए जाने की जरूरत बताते हुए इसके लिए डिजाइन भी तैयार किया था पर उस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। पर्यावरणविद प्रो. अजय रावत का कहना है कि ब्रिटिश शासक 1865 में हुए पहले रिकार्डेड भूस्खलन के तुरंत बाद सतर्क हो गए थे और इसे ध्यान में रखकर उन्होंने निर्माण व अन्य कार्यों के नियम बनाए। लेकिन हम हादसे दर हादसे के बाद भी सचेत नहीं हुए हैं जिसका परिणाम सामने है।
पहाड़ी पर कभी भी गंभीर हादसा तय : कोटलिया
कुमाऊं विश्वविद्यालय के भूगर्भ विज्ञान विभाग के वैज्ञानिक प्रो. बीएस कोटलिया का दावा है कि डीएसबी कैंपस के गेट से झील की सतह से होते हुए जहां माल रोड ध्वस्त हुई है वहां से ग्रैंड होटल के पीछे से सात नंबर तक एक फाल्ट है जो अब सक्रिय हो गया है। इसी फाल्ट के कारण दो दशक पहले डिग्री कॉलेज के निकट भारी भूस्खलन हुआ था और अब माल रोड भी इसी कारण ध्वस्त हुई है। प्रो. कोटलिया का दावा है कि वर्तमान में इसके सक्रिय होने के कारण जहां से यह गुजर रहा है उसके ऊपर दरारें चौड़ी हो रही हैं। उनमें पानी भर रहा है ऐसे में इसके ऊपर स्थित क्षेत्र में कभी भी गंभीर हादसा होना तय है।